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पहले वितरण प्रणाली सुधारे सरकार

गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले देश के लगभग 6.52 करोड परिवारो को अब तीन रूपये किलो की दर से हर माह 35 किलो गेहूं और चावल पाने का हक होगा। इस कानून को कानूनी रूप प्रदान करने के लिये अधिकार प्राप्त मंत्रियो के समूह (जीओएम) की बैठक में आज यानि सोमवार 02 मई 2011 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर विचारविमशर किया जायेगा जिस के मसौदे को पूरी तरह तौयार करने के लिये कुछ मंत्रियो की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (ईजीओएम) ने 18 मार्च 2010 को मंजूरी भी दे दी थी। पर क्या सरकार कि ये योजना कामयाब हो पायेगी कितने फीसदी सरकार इस योजना में सफल रहेगी। क्या इस योजना को कामयाब करने के लिये सरकार ने उन तमाम भ्रष्ट कर्मचारियो, अफसरो की लिस्ट तैयार की है जो ऐसी तमाम योजनाओ को गरीबो तक पहुॅचने से पहले ही डकार जाते है।
आज देश में लगभग 5,03,070 उचित मूल्य की दुकानो द्वारा शहरो और गॉवो में सरकार द्वारा सब्सिडीकृत अनाज और मिटटी का तेल गरीबी रेखा से नीचे व गरीबी रेखा से ऊपर जीवन जी रहे देश के नागरिको को पहुॅचाया जाता है। परन्तु कई राज्यो में उचित ट्रांसपोर्ट व्यवस्था न होने की वजह से इन उचित मूल्य की दुकानो पर राशन समय पर नही पहुच पाता जिस कारण वितरण व्यवस्था का लाभ सरकार द्वारा चाह कर भी जरूरतमंदो तक अक्सर नही पहुॅच पा रहा है। ऐसे में भारत जैसे विशाल देश में गरीबो को सही और ईमानदारी के साथ अनाज पहॅुचाने का काम सरकार के लिये मुश्किल ही नही नामुम्किन है। हमारे देश कि 80 फीसदी आबादी ग्रामीण है। आज सामान्य राशन,मिटटी का तेल जिस प्रकार से राष्ट्रीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गॉवो और शहरो में वितरण के लिये पहुॅचता है वह प्रकि्रया केवल त्रृटिपूर्ण ही नही, भारतीय वितरण प्रणाली के संदर्भ में इसे पूरी तरह विफल कहा जा सकता है।
देश के सब से बडे राज्य उत्तर प्रदेश में फर्जी राशनकार्डोर के जरिये सरकार द्वारा जनवितरण प्रणाली के तहत बटने वाले गरीबो के राशन पर कुछ भ्रष्ट नेताओ सरकारी कर्मचारियो और कुछ रसूखदार लोगो ग्राम पंचायत, अधिकारी पंचायत, सचिव और ग्राम प्रधानो द्वारा डाका डाला जा रहा है। पिछले तीन वर्षो के दौरान आठ लाख से अधिक फर्जी राशनकार्डो को निरस्त किया जा चुका है जिन में ज्यादातर बीपीएल और अंत्योदय श्रेणी के कार्ड थे। अकेले प्रदेश की राजधानी में ही 96 हजार 369,व औघोगिक नगरी गाजियाबाद में करीब 20 हजार राशनकार्ड फर्जी पाये गये। यह कहने या बताने की जरूरत नही की इन सब घोटालो में जिला पूर्ति अधिकारी कितना लिप्त होगा। क्यो की जनवितरण प्रणाली कि आज अधिकतर दुकाने विधायको नगर पालिका सदस्यो तथा अन्य जनप्रतिनिधियो के तमाम रिश्तदारो को ही शासन द्वारा अवंटित होती है। वर्ष 2008 में जारी योजना आयोग की एक रिर्पोट के मुताबिक इस प्रणाली के तहत 42 प्रतिशत सब्सिडीकृत अनाज और मिटटी का तेल ही लक्षित वर्ग तक पहुॅता है। राजीव गॉधी के शब्दो में अगर इसे कहा जाये तो 58 प्रतिशत अनाज और मिटटी का तेल भ्रष्टाचार की भेट च जाता है। क्यो कि इस अनाज और मिटटी के तेल का वितरण जिला पूर्ति कार्यालयो से जिस प्रकार राशन डीलरो को किया जाता है। अधिकतर राशन डीलरो द्वारा सरकार द्वारा प्राप्त राशन का बंदरबाट कर राशन और मिटटी का तेल केवल कागजो में बाटा जाता है। सरकार द्वारा कैबिनेट में पारित खाघ सुरक्षा विधेयक को देश के बुद्विजीवियो द्वारा शंका की दृष्टि से देखना एकदम स्वाभाविक है।
यू तो हमारे देश की राष्ट्रीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली विश्व की सब से बडी वितरण प्रणाली है। प्राप्त संसाधनो और सरकारी नीतियो के कारण जो देश चार दशक पूर्व तक खाघान्नो के मामलो में आत्मनिर्भर था, वह देश फिर पराधीनता की ओर ब रहा है देश की 70 फीसदी जनता 20 रूपये प्रतिदिन पर अपना जीवन यापन कर रही है। वही सरकार द्वारा गरीबो के लिये चलाई जा रही तमाम योजनाओ के बावजूद लगभग 20 करोड लोग आज भी देश में खाली पेट सोने को मजबूर है। आज भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 88 देशो की सूची में 68वें स्थान पर है। देश के कुछ राज्य तो ऐसे है जहॉ भूख से होने वाली मौतो की संख्या सालो साल बती जा रही है। किसी राज्य में आकाल पडता है तो किसी राज्यो में अनाज इतना अधिक होता है की उस के संग्रहण की समुचित व्यवस्था न होने के कारण वो खुले आकाश के नीचे पडा पडा सडता गलता रहता है। ऐसे में सरकार द्वारा बनाये जा रहे गरीबो को अनाज का अधिकार देने वाले खाघ सुरक्षा विधेयक पर कितना यकीन किया जा सकता है। दूसरे अभी इस विधेयक की राह में कई प्रकार के रोडे हैं। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गॉधी के निर्देश पर मंत्रियो के अधिकार प्राप्त एक पूरे समूह ने 5 अप्रैल 2010 को विधेयक के कुछ खास पहलुओ पर दोबारा विचार विमशर किया। प्रस्तावित खाघ सुरक्षा कानून के तहत गरीब परिवारो को तीन रूपये किलो की दर से गेंहू अथवा चावल 25 किलो दिया जाये या 35 किलो तथा पात्रो तक और बेघर लोगो तक इसे कैसे पहुॅचाया जाये। इस विधेयक को कामयाब करने में सरकार के सामने सब से बडी जो समस्या आ रही है वो है बीपीएल परिवारो की संख्या। केंन्द्र सरकार अभी तक 6.8 करोड बीपीएल परिवारो को सस्ता अनाज मुहैय्या करा रही है। सरकार द्वारा कराई गई सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट मानने पर भी यह आकंडा 7.4 करोड तक ही पहुॅचता है।
खाद्य मंत्रालय इस मसले पर एनएसी और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमइएर्सी) के अध्यक्ष सी रंगनाथन की रिर्पोट को बैठक में पेश करेगा। एनएसी के पडताल के लिये बनी रंगराजन कमेटी की राय यू तो एनएसी के सुझावो से एकदम अलग है। एनएसी का सुझाव है कि आबादी के 75 प्रतिशत लोगो को खाद्य संबंधी अधिकार मिले जब कि रंगराजन कमेटी ने इस पर चिंता जाहिर की है। पर मेरा मानना है कि इन सब बातो से पहले सरकार को ऐसी नीतिया व कडे कानून बनाने होगे जिस के डर से गरीबो का अनाज सरकारी गोदामो से निकलकर भ्रष्ट अफसरो, राजनेताओ के पेटो में न जाकर सीधा गरीबो के पेट में चला जायें। देखना यह भी है कि खाघ सुरक्षा विधेयक देश के 6.52 करोड गरीब लोगो को सत्ता व सरकारी तंत्र में बैठे भूखे गिद्वो से बचाकर गरीबो के इस अनाज को किस प्रकार खाघ सुरक्षा प्रदान कर पायेगा।

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