राकेश कुमार आर्य
जरा विचार करो कि हमारे विषय में विदेशियों के ये अनुसंधान क्या कहते हैं? जून सन 1999 ई. ‘साइंस रिपोर्टर’ के कथनानुसार-
विश्व में पहला लेखन कार्य का प्रमाण 5500 वर्ष पूर्व हड़प्पा संस्कृति के अंतर्गत मिलता है। जबकि महर्षि बाल्मीकि को आदि कवि कहा जाता है, उनके ग्रंथ रामायण की अवधि तो लाखों वर्ष पूर्व की है, ‘‘अत: हमारे द्वारा लेखन कार्य लाखों वर्ष पूर्व से किया जाता रहा है हमारी तो यह मान्यता है।’’ परंतु हमारे छद्म धर्मनिरपेक्षी सज्जन इस सत्य को विश्व पटल पर नही उठा सकते।
‘फोकसबेस’ मैग्जीन जुलाई सन 1987 ई. के कथनानुसार-
संस्कृत विश्व की सबसे पहली भाषा है तथा यह सब यूरोपियन भाषाओं की जननी है। संस्कृत ही कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हेतु सबसे उपयुक्त भाषा है।
विश्व में शिक्षार्थ गुरूकुल शिक्षा पद्घति के आविष्कारक हम थे।
प्राचीनकाल से ही हमारे आचार्य विद्घज्जन नगरों और ग्रामों से दूर एकांत और शांत स्थान में अपने विद्यार्थियों को विद्यादान दिया करते थे। इस दिशा में संसार में पहले विश्वविद्यालय को हमने ही ‘तक्षशिला’ में स्थापित किया था, जो भारत में 700 ई. पूर्व स्थापित था। इतिहास साक्षी है कि यहां साढ़े दस हजार विद्यार्थी जो चौंसठ विषयों (कलाओं) का अध्ययन निरंतर किया करते थे।
संसार को राज्य की अवधारण हमने प्रदान की।
राजा को ईश्वर का स्वरूप स्वीकार किया। अत: उससे न्याय, दया, क्षमा जैसे गुणों वाले लोगों के साथ ही समयानुकूल कठोर होने व राष्ट्रहित में आततायियों के प्रति वज्रसम हो जाने की अपेक्षा की जाती थी।
ईश्वर के कर्मफल सिद्घांतानुसार राजा द्वारा दण्ड और न्याय का आश्रय लेने के रूप में प्रतिपादित किया गया। विश्व के शोधार्थी और विभिन्न विद्वान इस निष्कर्ष से अक्षरश: सहमत हैं। राज्य और शासन की यही आदर्श व्यवस्था है।
‘नीति चिंतामणि’ के कथनानुसार-
बारूद की खोज 8000 ई. पूर्व सर्वप्रथम भारत में हुई थी।
वनस्पति में जीवन स्वीकार करते हुए इसे सृष्टि का अभिन्न अंग स्वीकार करने वाले और इसका एक अलग शास्त्र बनाने वाले विश्व के सर्वप्रथम मनीषी हमारे ही ‘ऋषिगण’ थे।
अयोध्या, हस्तिनापुर जैसे शहर प्राचीनकाल से हमारी सुनियोजित आवासीय उत्कृष्ट सभ्यता के प्रमाण हैं। ‘मोहनजोदड़ो-हड़प्पा’ इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। विश्व के कितने ही शोधार्थियों और विद्वानों का यही निष्कर्ष है।
‘एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका’ के कथनानुसार-
अंकगणित का आविष्कार 200 ई. पूर्व भास्कराचार्य ने किया था। सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचने वाले प्रकाश की गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारत में ही की थी।
‘जूइश एन्साइक्लोपीडिया’ के कथनानुसार-
न्यूटन से भी पूर्व गुरूत्वाकर्षण का सिद्घांत भारत में ‘भास्कराचार्य’ ने ही प्रतिपादित किया था।
यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्व ही छठी शताब्दी में बोधायन ने ‘पाई’ के मान की गणना की थी, जो कि ‘पाइथागोरस’ के रूप में जाना जाता है।
5000 ई. पूर्व में ही हिंदुओं को 10 तक गणना लिखने का ज्ञान था जबकि आज भी 10 (टेन) तक ही गणना लिखी जाती है।
अंकों का आविष्कार 300 ई. पूर्व भारत में ही हुआ।
प्रो. ओ.एम. मैथ्यू, भवन्स जनरल के कथनानुसार-
शून्य का आविष्कार भारत में ब्रह्मगुप्त ने किया।
‘एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका’ के कथनानुसार-
बीजगणित का आविष्कार भारत में आर्यभट्ट ने किया।
‘जूइश एन्साइक्लोपीडिया’ के कथनानुसार-
सर्वप्रथम ग्रहों-उपग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने 499 ई. पूर्व में की थी।
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा में मिले अवशेषों के अनुसार-
भारतीयों को ‘त्रिकोणमितीय व रेखागणित’ का ज्ञान 2500 ई. पूर्व में भी था।
जर्मन लेखक डा. थामस आर्य के अनुसार-
सिंधु घाटी सभ्यता में मिले भारमापक यंत्र भारतीयों के दशमलव प्रणाली के ज्ञान को दर्शाते हैं।
समय और काल की गणना करने वाली विश्व का सबसे पहला कैलेंडर भारत में लीलावती ने 505 ई. पूर्व ‘सूर्य सिद्घांत’ नामक पुस्तक में वर्णित किया।
द करेंट साइंस के अनुसार-
लोहे के प्रयोग के प्रमाण वेदों में वर्णित है। अशोक स्तंभ भारतीयों के धातुज्ञान का स्पष्ट प्रमाण है।
नेशनल साइंस सैंटर नई दिल्ली की रिपोर्ट के अनुसार-
सिंधु घाटी सभ्यता से मिले प्रमाण सिद्घ करते हैं कि भारतीयों को 2500 ई. पूर्व ‘तांबे तथा जस्ते’ की जानकारी थी। विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं एवं रासायनिक रंगों का प्रयोग पांचवीं शताब्दी में भारत द्वारा किया जाता था।
विश्व का सबसे पहला विज्ञान भारतीय महर्षियों ने ‘आयुर्वेद’ के रूप में दिया जिनमें महर्षि चरक ने 2500 वर्ष पूर्व ‘औषधि विज्ञान’ को आयुर्वेद के रूप में संकलित किया।
लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स के अनुसार-
400 ई. पूर्व भारतीय महर्षि ‘सुश्रुत’ ने सर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोग किया।
राइट ब्रदर्स से भी अनेक वर्ष पूर्व ‘महर्षि दयानंद सरस्वती’ के पट्टशिष्य श्री बापू शिवकर जी तलपदे महाराष्ट्र निवासी ने मुंबई के चौपाटी नामक स्थान पर वैदिक विधि से वर्तमान युग का प्रथम विमान बनाकर उड़ाया था।
आर्यजगत ने 5 अक्टूबर सन 2003 ई. के अंक में वर्तमाल कमल ज्योति से साभार प्रकाशित कर इन बातों के प्रसंग में बड़ा ही तार्किक प्रश्न उपस्थित किया है। उसका कहना है कि जब हमारा ज्ञान-विज्ञान एवं इतिहास इतना गौरवशाली एवं समृद्घ रहा है तो भारत के छात्रों को इस जानकारी से वंचित क्यों रखा गया हे? विदेशी हमारे विषय में इतनी अच्छी राय रखते हैं और हम अपने साहित्य में टीवी पर रेडियो पर समाचार पत्रों के माध्यमों से उसे उजागर करन में भी परहेज करते हैं। स्वतंत्रता की प्रभात में इतिहास की इन उज्ज्वल घटनाओं को प्रचारित करना अपेक्षित था। दुर्भाग्य से प्रचार-प्रसार के स्थान पर ‘विश्वासघात’ का खेल प्रारंभ हो गया।
विश्वासघात किया है अवश्य ही कोई बात है।
स्वतंत्रता की संध्या है या उत्थान की प्रभात है।
विश्वासघात के इस खेल की समीक्षा के समय ने अब दस्तक दे दी है। राष्ट्र इस पीड़ा को अब और अधिक नही झेल सकता। निजता की उपेक्षा का यह खेल अब समाप्त होना चाहिए।
क्रमश: