किसान-आंदोलन: कुछ अच्छी पहल

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को बधाई कि उन्होंने अपने किसानों की सुध ली। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने तो किसी आंदोलन का इंतजार किए बिना ही किसानों को बिना ब्याज के 32 हजार करोड़ रु. के कर्ज की माफी की घोषणा कर दी। उत्तरप्रदेश सरकार ने तो पहले ही 30000 करोड़ रु. का किसानी कर्ज माफ कर दिया है।

यदि भाजपा के ये चार मुख्यमंत्री ऐसा किसानपरस्त कदम उठा सकते हैं तो दूसरे भाजपाई मुख्यमंत्री किसके इशारे का इंतजार कर रहे हैं ? क्या उनके प्रांतों में किसान नहीं रहते हैं या क्या उनके सभी किसान मालदार हैं ? यह ठीक है कि इस तरह की कर्ज माफी बैंकों के लिए बहुत बोझिल हो जाएगी और यदि सभी किसानों का कर्ज माफ होगा तो वह लाखों-करोड़ रुपयों में जाएगा। इसके अलावा यह उन किसानों को गलत रास्तों पर चलने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा, जो कर्ज तो खेती के नाम पर लेते हैं लेकिन उसे खर्च खाने-पीने, विवाह-शादी और एशो-आराम में करते हैं।

कर्ज माफी का एक नुकसान यह भी है कि कहीं यह किसानों की एक लत ही न बन जाए लेकिन फिर भी कम से कम एक बार तो किसानों को यह तात्कालिक राहत मिलनी ही चाहिए। किसानों को स्थायी राहत मिले, इस दिशा में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कुछ अच्छे कदमों की घोषणा की है। जैसे हर गांव और शहर में किसान बाजार बनाए जाएंगे, जहां किसान सीधे स्वयं अपनी चीजें बेच सकेंगे। अगर बिचौलिए नहीं होंगे तो जो प्याज़ उसे 5 रु. किलो बेचनी पड़ती है, उसके उसे 15 से 20 रु. किलो तक मिलेंगे।

फिर समर्थन मूल्य से कम पर किसी चीज़ का क्रय-विक्रय अपराध माना जाएगा। दूध के दाम बांधे जाएंगे। हर गांव में खेती सलाहकार केंद्र स्थापित किए जाएंगे। किसानों की बची हुई फसलों को सरकार खरीदेगी। उनकी जमीनें उनकी मर्जी के बिना नहीं ली जाएंगी। उनकी कर्जमाफी के लिए कोई उचित राह खोजी जाएगी। फसल-बीमे पर भी राज्य सरकारों को कोई ठोस पहल करनी चाहिए। किसानों के लिए उत्तम बीज, उचित खाद और उत्कृष्ट सिंचाई की व्यवस्था भी जरुरी है। उसके बिना किसानों का सिरदर्द दूर नहीं होगा।

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