सड़क किनारे खिले कमल में उगने लगे हैं कांटे!

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-लिमटी खरे

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में राजग सरकार की महत्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भज योजना के अभिन्न अंग बन चुके उत्तर दक्षिण गलियारे का भविष्य क्या होगा यह कोई नहीं जानता। किसी को यह पता नहीं कि यह मार्ग मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर जाएगा भी या नहीं। कयास तरह तरह के लगाए जा रहे हैं कि यह सिवनी से होकर जा भी सकता है और नहीं भी, भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाडा जो कि सिवनी जिले की पश्चिमी सीमा से सटा हुआ है, से होकर भी जा सकता है यह मार्ग। शेरशाह सूरी के जमाने का है यह एतिहासिक महत्व का मार्ग जिसे पूर्व में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात के नाम से जाना जाता था। देश के सबसे लंबे और भारी यातायात दबाव के व्यस्ततम मार्ग का एक बडा हिस्सा अब एनएचएआई द्वारा प्रस्तावित उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में तब्दील किया जाना प्रस्तावित है, जो सिवनी जिले में लखनादौन तहसील से आरंभ होकर प्रदेश की सीमा खवासा तक जा रहा है।

अटल सरकार की इस महात्वाकाक्षी योजना के इस मार्ग के निर्माण का काम युध्द स्तर पर जारी भी किया गया है। वर्ष 2008 में दिसंबर माह में सिवनी जिले में एक नाटकीय मोड के तहत तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी पिरकीपण्डला नरहरि ने आदेश क्रमांक 3266/फोले/2008 दिनांक 18 दिसंबर 2008 को जारी कर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) के सदस्य सचिव के पत्र क्रमांक 1-26/सीईसी/एससी/2008 – पी 1 दिनांक 15 दिसंबर 2008 जिसे सीईसी ने मुख्य सचिव मध्य प्रदेश शासन को लिखा था के हवाले से काम रूकवा दिया था।

जिला कलेक्टर के उक्त पत्र में सीईसी ने नेशनल हाईवे नंबर सात के चोडीकरण कार्य (न कि उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा) में ग्राम मोहगांव से खवासा तक पेंच टाईगर रिजर्व से लगे वन क्षेत्र और गैर वन क्षेत्रों में की जारी वृक्षों की कटाई पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अगामी आदेश तक रोक लगाने का अनुरोध करना भी उल्लेखित किया गया है। जिला कलेक्टर सिवनी ने अपने उक्त आदेश में इस प्रत्याशा के साथ कि राज्य शासन द्वारा इस मामले में अभी निर्देश प्राप्त होना है, उन समस्त आदेशों को जो कलेक्टर कार्यालय सिवनी द्वारा इस संबंध में पूर्व में जारी किए गए थे, को स्थगित कर दिया था। इसके उपरांत क्या राज्य शासन द्वारा इस मामले में कोई निर्देश दिए हैं या फिर नहीं इस मामले में जिला प्रशासन सिवनी ने अपना मुंह सिल रखा है।

मजे की बात तो यह है कि कलेक्टर सिवनी का दिसंबर 2008 का यह आदेश जुलाई 2009 में प्रायोजित तरीके से सिवनी की फिजां में तैराया गया। दिसंबर 2008 से जुलाई 2009 तक यह आदेश कैसे दबा रह गया यह बात आज भी यक्ष प्रश्न की भांति ही खडी हुई है। जुलाई 2009 में यह आदेश क्यों सामने लाया गया, यह भी एक पहेली ही बना हुआ है। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि जिला कलेक्टर के 18 दिसंबर 2008 के इस आदेश की प्रतिलिपि मुख्य सचिव म.प्र.शासन, मुख्य वन संरक्षक सिवनी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर एनएचएआई, सिवनी, संबंधित विभागों के साथ ही साथ जिला जनसंपर्क अधिकारी कार्यालय सिवनी को सभी स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए प्रेषित किया गया था।

कागजी खाना पूरी में तो सारी बातें बिल्कुल करीने से कायदे वाली की गईं हैं, जिला प्रशासन के समाचारों के लिए पाबंद जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा जारी अथवा नहीं जारी की जाने वाली दिसंबर की यह महात्वपर्ण खबर अखबारों से कैसे चूक गई यह शोध का ही विषय बना हुआ है। जिले के हिमायती बनने का ठेका लिए हुए आलंबरदारों ने को भी इस मसले पर कोई भनक नहीं लगना अपने आप में आश्चर्यजनक ही माना जा सकता है।

बात बात पर जिले के विकास, जिले के साथ अन्याय का रोना पीटकर चीत्कार मचाने वाले विज्ञप्ति वीर कांग्रेस और भाजपा के सिपाहसलारों ने भी इस मामले में अपने आप को बरी ही रखा है। जिले का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जब भी सिवनी के साथ अन्याय हुआ है, वह अन्याय जनता के चुने हुए नुमाईंदों के द्वारा जनता को भ्रम में रखने के कारण ही हुआ है। मामला चाहे ब्राडगेज का हो, संभागीय मुख्यालय, सिवनी संसदीय सीट के विलोपन का या कोई और हर मर्तबा चुने हुए जनसेवकों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए सिवनी की जनता की भावनाओं के साथ तबियत से खिलवाड ही किया है।

फोरलेन मसले पर भी कमोबेश यही कुछ होता दिखा। जैसे ही जनता के सामने हकीकत आई, भगवान शिव की नगरी सिवनी की भोली भाली, सहनशील जनता का रोद्र रूप सामने आया। जनता का क्रोध देखने लायक था। इस समूचे मसले पर सियासी तंदूर के अंदर आग धधकती प्रतीत हुई जिसको जैसी रोटी बनी सेंक डाली गई। जनता के सामने हकीकत आने लगी। भारत गणराज्य के भूतल परिवहन मंत्री और सिवनी के पडोसी छिंदवाडा जिले के संसद सदस्य कमल नाथ पर शक की सुई जा टिकी। 21 अगस्त 2009 को सिवनी बंद को एतिहासिक सफलता मिली, और तो और लोग पान गुटके तक को तरस गए। सिवनी में जगह जगह पर कमल नाथ की अर्थियां निकली उनके पुतले जलाए गए, सिवनी में कमल नाथ के नाम पर राजनीति कर उनका परचम उठाने वाले किसी भी कांग्रेस के नेता ने इस मामले में कमल नाथ का पक्ष रखना ही मुनासिब नहीं समझा। कारण स्पष्ट था कि सिवनी के नागरिकों की जनभावनाएं बुरी तरह आहत हो गईं थी, कोई भी नागरिकों को भुलावे में रखकर उनके रिसते घावों पर मरहम लगाने का साहस नहीं कर पा रहा था।

मामला बिगडते देख और अपने आप को कटघरे में खडा पाकर कमल नाथ तब रक्षात्मक मुद्रा में आए, जब उन्हें लगा कि उनके सिवनी स्थित अनुयायी उनको इस मामले में बचाने में अपनी अपनी भूमिकाएं निभाने से कन्नी काट रहे हैं। 18 अगस्त 2009 की तिथि वाली कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र कार्यालय की विज्ञप्ति ने भी कमल नाथ के इस मामले में संलिप्त होने पर मुहर लगा दी। यह विज्ञप्ति कैसे और क्यों अस्तित्व में आई ये तो भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ही जानें, पर चुनावों के दौरान बार बार सिवनी एवं अन्य जिलों को गोद लेकर अपनी गोद को अनाथालय बनाने वाले कमल नाथ चाहते तो एक मर्तबा अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा से महज सत्तर किलोमीटर दूर स्थित सिवनी आकर अपना पक्ष साफ कर सिवनी वालों के रिसते घावों पर मरहम लगा सकते थे, वस्तुत: एसा हुआ नहीं।

भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार भारत सरकार के उत्तर दक्षिण कारीडोर कार्यक्रम के तहत मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा तक लिए 56 किलोमीटर लंबी सडक को स्वीकृति 20 फरवरी 2004 को दी गई थी। गौरतलब होगा कि मई 2004 में जब मनमोहन सिंह दुबारा प्रधानमंत्री बने उसके उपरांत ही कमल नाथ को भूतल परिवहन विभाग की जवाबदारी सौंपी गई थी। विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि राजमार्ग के इस भाग में 16 हेक्टेयर पेंच नेशनल पार्क और 56 हेक्टेयर वन भूमि पडती है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से इसकी अनुमति लेने के लिए कार्यवाही 09 सितंबर 2004 को आरंभ की गई। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पेंच नेशनल पार्क की जमीन को छोडकर शेष की अनुमति 9 मई 2006 को प्रदान कर दी गई।

गौरतलब है कि देश के भूतल परिवहन मंत्री के कार्यालय से जारी इस विज्ञप्ति में सिवनी से उत्तर दिशा में जबलपुर मार्ग पर बंजारी के पास के क्षेत्र की अनुमति का कोई जिकर ही नहीं किया जाना अपने आप में यह दर्शाता है भूतल परिवहन मंत्री की मंशा क्या है। बंजारी के पास वाले इलाके की अनुमति भी उस दौरान तक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नहीं दी गई थी। भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार अगस्त 2008 से लेकर 18 अगस्त 2009 तक केंद्रीय सशक्त समिति ने स्थल का मुआयना किया, सभी पक्षों को सुना और लगभग एक माह पहले (18 अगस्त 2009 से) सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत कर दीं।

भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार ”सूत्रों” के अनुसार इस समिति ने अपनी अनुशंसाओं में सिवनी नागपुर को बाहरी वाहनों के लिए स्थाई रूप से बंद करने की अनुशंसा की है और नरसिंहपुर छिंदवाडा मार्ग को वैकल्पिक मार्ग के रूप में सुझाव दिया है।” सुधि पाठकगठ स्वयं ही फैसला करें कि भारत गणराज्य के जिम्मेदार भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति में कमल नाथ को भी ‘सूत्रों’ का हवाला देना पडा रहा है।”

भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार सडक परिवहन मंत्रालय समिति की इस अनुशंसा से सहमत नहीं है और सुप्रीम कोर्ट में इस मंत्रालय का यह प्रयास रहेगा कि किसी भी हाल में सडक को बंद नहीं होने दिया जाएगा तथा पेंच नेशनल पार्क में पडने वाले आठ किलोमीटर को छोडकर शेष भाग में फोरलेन विकसित किया जाए। मजे की बात तो यह है कि सिवनी वासियों द्वारा कमल नाथ को लानत मलानत भेजने के बाद अस्तित्व में आई भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय कार्यालय की विज्ञप्ति के उपरांत आज तक कमल नाथ के मंत्रालय द्वारा इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट में क्या प्रयास किए गए हैं, इस बारे में एक साल का इतिहास पूरी तरह मौन ही है।

इस विज्ञप्ति की अंतिम लाईन सिगरेट की डब्बी और शराब की बोतल पर पर स्टार के साथ चेतावनी की तरह ही है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस बारे में जो आदेश दिए जाएंगे उनका पालन करना सरकार की मजबूरी होगा। सारी नूरा कुश्ती देखकर हमें एक बार फिर यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कमल नाथ की मंशा इस मामले में कतई साफ नहीं है, साथ ही साथ वे एसे जादूगर हैं, कि सिवनी में बैठे जिले के कथित तौर पर ठेकेदारों द्वारा अगर कमल नाथ के ”पे रोल” पर उनकी रणनीति के तहत कमल नाथ को बुरा भला कहकर कमल नाथ का ही हित साधा जा रहा हो तो कोई बडी बात नहीं।” अपने निहित स्वार्थों के लिए इन ठेकेदारों द्वारा अगर जिले को कमल नाथ के पास गिरवी रख दिया हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

इतनी राम कहानी हो जाने के बाद इस मामले में मध्य प्रदेश में सत्तारूढ भाजपा ने भी छलांग लगाई। कमल नाथ के उपर जब आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला आरंभ हुआ तब भाजपा हरकत में आई और भाजपा के आलंबरदारों ने इस मामले में अपनी जुबान खोलना आरंभ किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो सिवनी प्रवास के दौरान यह तक कहा था कि भले ही सूरज पश्चिम से उगने लगे पर यह मार्ग सिवनी होकर ही जाएगा। मुख्यमंत्री ने दिल्ली प्रवास के दौरान भी सिवनी वासियों के दर्द को वन एवं पर्यावरण मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री के सामने रखा था।

इस मसले में कुछ रोचक तथ्य हैं जिन्हें सिवनी जिले की जनता के साथ ही साथ देशवासियों के सामने रखना हम अपना फर्ज समझते हैं। सिवनी से नागपुर मार्ग की लंबाई 125 किलोमीटर है अगर इसे छिंदवाडा होकर ले जाया जाता है तो इसकी लंबाई बढकर 198 किलोमीटर हो जाती है। इस तरह छिंदवाडा होकर जाने में 73 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी बनेगी। गौरतलब है कि एनएचएआई की महात्वाकांक्षी परियोजना का पहला सूत्र ही दूरी को कम करना है।

सिवनी से होकर अगर यह मार्ग गुजरता है तो इसमें पेंच, दक्षिण सिवनी और महाराष्ट्र के वनों से होकर महज 34 किलोमीटर का हिस्सा गुजरेगा, किन्तु छिंदवाडा होकर ले जाने में यह 51 किलोमीटर हो जाता है। कहा जा रहा है कि पेंच और कान्हा के कारीडोर से होकर गुजरने के कारण इसका निर्माण रोकने के प्रयास जारी हैं। वह गैर सरकारी संगठन क्या इस बात पर गौर फरमाएगा कि पेंच से सतपुडा टाईगर रिजर्व का भी अघोषित करीडोर है, जिससे होकर वर्तमान में प्रस्तावित नरसिंहपुर छिंदवाडा नागपुर नेशनल हाईवे गुजरना है। सिवनी के वर्तमान अस्तित्व वाले मार्ग में महज पंद्रह से बीस मीटर की ही सडक को चौडा करना होगा, जबकि छिंदवाडा नेशनल हाईवे में तो साठ मीटर चौडा करना प्रस्तावित है।

सिवनी के मार्ग मे महज 181 हेक्टेयर का वनक्षेत्र ही आ रहा है, जबकि छिंदवाडा से ले जाने में 306 हेक्टेयर का वन क्षेत्र इसमें आ सकता है। वर्तमान में रोके गए मार्ग में लगभग सोलह हजार झाड ही काटने होंगे, जबकि छिंदवाडा से होकर गुजारने में 33 हजार झाड काटने होंगे, जिससे पर्यावरण पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पडेगा इस बारे में न तो केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश ही सोच रहे हैं और न ही भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ। अगर इसे छिंदवाडा से ले जाया जाता है तो एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन साठ लाख रूपए अर्थात एक माह में अठ्ठारह करोड रूपए तो एक साल में 220 करोड रूपए का अतिरिक्त तेल लगेगा।

सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि जब वन एवं पर्यावरण मंत्री हाल ही में मध्य प्रदेश की यात्रा पर आए तब न तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने, न ही विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह, और न ही परिसीमन के उपरांत समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद एवं जिला मुख्यालय सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, बरघाट विधायक कमल मस्कोले सहित लखनादौन विधायक श्रीमति नीता पटेरिया और सांसद बसोरी मसराम एवं के.डी देशमुख ने इस बारे में जयराम रमेश से चर्चा करना मुनासिब समझा। गौरतलब है कि एनएचएआई द्वारा निर्माणाधीन यह मार्ग सांसद बसोरी सिंह मसराम, के.डी.देशमुख सहित विधायक ठाकुर हरवंश सिंह, नीता पटेरिया, शशि ठाकुर और कमल मस्कोले के संसदीय और विधानसभा क्षेत्र से होकर गुजर रहा है।

चलो मान लिया जाए कि सिवनी के जनता के चुने हुए नुमाईंदों को सिवनी जिले की जनता के दुखदर्द से कोई सरोकर नहीं है, चार बार के विधायक ठाकुर हरवंश सिंह, दो शशि ठाकुर, कमल मस्कोले के आलवा परिसीमन में विलुप्त हुई सिवनी लोकसभा सीट की अंतिम सांसद तथा जिला मुख्यालय सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया को जनता के प्रति जवाबदारी का अहसास न हो, या वे जनता के दुखदर्द से ज्यादा अपने आकाओं के प्रति प्रतिबध्द हों, पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी आप तो भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश के निजाम हैं आप राजा हैं, आपको सिवनी जिला आपकी हुकूमत वाले मध्य प्रदेश का एक पिछडा जिला है।

शिवराज सिंह जी आप पर जवाबदारी आहूत होती है कि आप अपनी रियाया में से सिवनी जिले के निवासियों के साथ होने वाले अन्याय को देखते जानते बूझते हुए उससे मुंह न मोडें। राजनैतिक तौर पर आपकी बाध्यताएं और प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं, पर इन प्राथमिकताओं में सिवनी जिले की जनता का दुख दर्द भी शामिल होना चाहिए। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि अगर यही अन्याय शिवराज सिंह के विधानसभा क्षेत्र बुधनी की जनता के साथ हो रहा होता तो आप निश्चित तौर पर जमीन आसमान एक कर देते। शिवराज सिंह जी आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि आप बुधनी या अपने पुराने संसदीय क्षेत्र विदिशा नहीं वरन समूचे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

आज हालात यह हैं कि इस सडक का निर्माण कराने वाली मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी और सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा अपना अपना बोरिया बिस्तर लगभग समेट लिया गया है। क्या भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के अंदर इतना माद्दा है कि वह सद्भाव से आधिकारिक तौर पर यह पूछें कि पेंच और रक्षित वन को छोडकर खवासा में पांच सौ मीटर के टुकडे का निर्माण उसके द्वारा अब तक क्यों नहीं करवाया गया? क्या यह पूछने की जहमत भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ उठा सकते हैं कि सीलादेही के आगे फोरलेन मार्ग पर जो ट्रक वे लेन बनाई गई हैं, वहां रेस्तरां एवं अन्य सुविधाएं जो ठेके की शर्तों में थीं, उनका निर्माण क्यों नहीं किया गया है? क्या एनएचएआई से कमल नाथ जवाब तलब करेंगे कि क्या वजह है कि जिला मुख्यालय सिवनी में बनने वाले एनएचएआई के बायपास को जानबूझकर इतने विलंब से क्यों बनाया जा रहा है?

पर्यावरण के गरम तवे पर राजनीति करने वाले वन मंत्री जयराम रमेश क्या इस निर्माण में लगी एजेंसियों (एनएचएआई और उसके ठेकेदारों) से यह पूछ सकते हैं कि इस मार्ग पर कितने प्रजाति वाले कितनी आयु के वृक्ष कब कब काटे गए और उनके स्थान पर इन कंपनियों ने किस प्रजाति के कितने पौधों को कब कब कहां लगाया गया, और लगे हैं तो आज क्या वे जीवित हैं? पेड काटने और लगाने की अवधि के बीच के अंतर में होने वाला पर्यावरण्ा असंतुलन क्या उचित है? क्या यह पर्यावरण संतुलन बिगाडने में भारत गणराज्य की सरकार का एक प्रयास नहीं है?

इन सब का उत्तर या तो भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, या वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के पास है या फिर इस निर्माण को अंजाम देने वाली कंपनियों के पास। अफसोस तो तब होता है जब केंद्र में विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी इस मामले में अपनी मौन सहमति दे दी जाती है। एक दूसरे को जमकर कोसने वाली कांग्रेस और भाजपा की नूरा कुश्ती तब उजागर हो जाती है जब एक दूसरे पर अन्याय करने के आरोप लगाने वाली केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार और मध्य प्रदेश की भाजपा की शिवराज सरकार एक दूसरे के गले में बाहें डाले नजर आते हैं।

मध्य प्रदेश के लोक कर्म विभाग के मंत्री नागेंद्र सिंह नागोद एक दिन धन देने के मामले में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री की उदारता के लिए उनका भाटचारण करते हैं तो दूसरे ही दिन कमल नाथ द्वारा मध्य प्रदेश सरकार को सडक बनाने के लिए देश की सबसे उत्तम सरकार होने का प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। आखिर विरोध किसका और कौन कर रहा है। सब कुछ दिखावा ही है, लोग देख रहे हैं मदारी डमरू बजा रहा है, जनता और मतदाता मंत्रमुग्ध हैं, पर इस सबसे कुल मिलाकर मरण तो सिवनी जिले की जनता की ही होनी है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि दुर्भाग्य सिवनी की नियति बनकर रह गया है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

3 COMMENTS

  1. PATRAKARITA ki Aan, Maan or Shan ko barkarar rakhte hue apne apne Lekh ke Madyam Se Aaj Nikrast Raajniti karne wale Bahubali Raajnetao ki Pol kol di he. kisi Bhi Raajnitik Dal ka paksh Na lete Hue SEONI ki janta ke saath ho rahe Itne Bade Dokhe ko Ujagar karne ke liye Aap Badhai Ke hakdar he.

  2. क्‍या बात कही है खरे साहेब आपने मान गए, कमल नाथ जैसे नेताओं को तो समूचे देश को नमन करना चाहिए, जिन्‍होंने चुनाव के दौरान तो इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र के दावे को बखूबी भुनाया जाता रहा है पर जब देश सेवा की बात आती है तो ; ; ; ;

  3. kya bat kah de hai khare jee bhi vah man gaye. Kamal Nath jaise neta agar is desh main honge tu ho gaya desh ka banta dhar. Soniya n Rahul ko is article ko jaroor padhna chaheye ke unke congress ke mantri kitne manmarzi chala rahe hain, sivni vasiyon ka dard hum bahter samz sakte hain bhagvan kare 4 lane sivni se he hokar jaye, bahtreen jankare bhare aalek ke liye badhai

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