सुरेश हिन्दुस्थानी
देश में हुए विधानसभा उपचुनावों के परिणामों ने जो राजनीतिक स्थितियां पैदा की हैं, उससे उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और राजस्थान में कांग्रेस को उल्लेखनीय सफलता मिली है। इसके अलावा गुजरात में भी कांग्रेस को खुशी मनाने लायक सीट प्राप्त हो गईं। यह परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए चौंकाने वाले कहे जा सकते हैं। इन परिणामों को देखकर कहा जासकता है कि भाजपा को आत्ममंथन करना चाहिए।
पूरे देश में 33 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के परिणाम के बाद कुछ दलों की अटक रही सांसों का प्रवाह एक लहर की भांति उफनता सा दिखाई दे रहा है। गैर भाजपा दलों के लिए यह उफान संजीवनी का काम करेगा या नहीं, यह तस्वीर भविष्य उजागर कर देगा, लेकिन इस जीत को जिस प्रकार से प्रचारित किया जा रहा है उससे तो ऐसा ही लगने लगा है कि सम्पूर्ण देश की राजनीतिक सत्ता कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को मिल गई है और भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। इन राजनीतिक परिणामों को देखकर राजनीतिक विश्लेषक निश्चित ही चिन्ताग्रस्त होंगे क्योंकि यह परिणाम वास्तविक धरातल पर वैसे कतई नहीं हैं जैसे प्रचारित किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन परिणामों में भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा सफलता प्राप्त हुई है और कांग्रेस, सपा का नम्बर उसके बाद आता है। इससे यह बात तो साफ हो जाती है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का ग्राफ अभी भी अन्य दलों से कहीं ज्यादा है। केवल एक राज्य में मिली जीत सम्पूर्ण भारत की जीत का परिचायक नहीं हो सकती। समाजवादी पार्टी के लिए यह बात जरूर मायने रखती है कि केवल उत्तरप्रदेश में उसने अपनी खोई जमीन प्राप्त करने में सफलता हासिल की है, परन्तु क्या सत्य नहीं है कि उप्र में कांगे्रस को एक भी सीट नहीं मिल सकी, इसी प्रकार विगत कई वर्षों से प्रदेश की राजनीतिक धुरी बनी रही बहुजन समाज पार्टी भी इस चुनाव में कोई कमाल नहीं कर सकी। इन सबको प्रचार माध्यमों ने संज्ञान में क्यों नहीं लिया? जहां तक समाजवादी पार्टी की बात है तो उसका प्रभाव केवल उत्तरप्रदेश तक ही सीमित रहा है, इसके बाद प्रदेश की दूसरी राजनीतिक ताकत के रूप में बसपा का ही बोलबाला था, गत लोकसभा चुनाव के बाद इनकी भूमिकाओं पर एक बहुत बड़ा प्रश्न उपस्थित हुआ था। इन उपचुनावों के परिणामों ने समाजवादी पार्टी के समक्ष उत्पन्न हुए सवाल का उत्तर दे दिया है, लेकिन बसपा के भविष्य पर अभी भी खतरे के बादल उमड़ रहे हैं। हम जानते हैं कि लगभग बीस वर्षों से उत्तरप्रदेश के राजनीतिक वातावरण में केवल सपा और बसपा ही प्रभावी भूमिका में रहे, और सत्ता भी इन्हीं दलों में अदल बदल होती रही। कांग्रेस और भाजपा का कहीं नामोनिशान नहीं था, लेकिन अब भाजपा प्रदेश में राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है, जिसका अहसास गैर भाजपा नेताओं के चेहरों पर साफ झलकता दिखाई देता है।
राज्यों के मुद्दे पर हुए इन चुनावों में जिस कातरता के साथ सपा और कांगे्रस जनता के बीच पहुंची, उससे जरूर जनता पिघली होगी, परिणामों के द्वारा ऐसा ही दिखाई दिया। यह सच है कि देश के राजनीतिक इतिहास में प्रत्येक चुनाव अलग अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं, जहां लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे प्रखर होते हैं वहीं विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता के साथ उछाला जाता है। लोकसभा चुनाव से पूर्व हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने जो परिणाम दिए, उसमें भाजपा को सफलता मिली। इन चुनाव परिणामों के बाद सभी दलों ने यही कहा कि लोकसभा के चुनाव में इन परिणामों का असर नहीं होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर होते हैं, लेकिन अब उप चुनावों के परिणाम के बाद इन सभी दलों के स्वर बदले हुए हैं। सब कह रहे हैं कि मोदी का जादू समाप्त हो गया है।
चार राजनीतिक ताकतों के प्रभाव क्षेत्र को प्रदर्शित करने वाले उत्तरप्रदेश में भाजपा उपचुनाव के परिणाम में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उपस्थित हुआ है। इतना ही नहीं पिछले चुनावों की तुलना में भाजपा का मत प्रतिशत जबरदस्त उछाल के रूप में सामने आया है। इन चुनावों से यह संकेत भी साफ तौर पर मिला है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा अन्य दलों के लिए एक बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती बनकर आई है। परिणामों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो इसमें भाजपा को सफलता ही मिली है, प्रादेशिक तौर पर जरूर कुछ अन्य दलों को संजीवनी मिली हो। वास्तविकता में देखा जाए तो उत्तरप्रदेश में कांगे्रस और बसपा का सूपड़ा साफ हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बात भी सफलता के पैमाने को प्रदर्शित करती है कि उसने पश्चिम बंगाल में अपने शून्य जनाधार को समाप्त कर एक नई राजनीतिक पारी खेलने के लिए उपस्थिति दर्ज कराई है। जो कम से कम भाजपा के लिए तो ऐतिहासिक विजय का सूत्रपात कही जा सकती है। यह भाजपा के विस्तार का संकेत है। हालांकि समस्त परिणामों को देखकर कहा जा सकता है कि कुछ राज्यों में भाजपा के लिए झटका तो हो सकता है लेकिन फिर भी सुखद बात यह है कि भाजपा अन्य दलों से सीट प्राप्त करने में आगे रही है।