-डॉ. मयंक चतुर्वेदी-
विश्व आज ऐसे समय में है, जिसमें कि दुनिया में सभी संप्रभु राष्ट्रों के हित किसी न किसी स्तर पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। निश्चित ही वर्तमान की वैश्विक दुनिया में कोई अपना अस्तित्व बिना किसी सहयोग के बनाए रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता। जैसे किसी व्यक्ति और समूह की परिस्थितियां सदैव एक समान नहीं रहती हैं, वैसे ही प्रत्येक राष्ट्र और राज्यों की व्यवस्थाएं भी एक समान नहीं बनी रहती हैं। वस्तुत: वर्तमान में इसीलिए देखा भी जा सकता है कि कल कभी जिस देश ने भारत को परतंत्र रखा है, वही देश आज हिन्दुस्तान से कई अपेक्षाएं रखता है। यह भी कहा जा सकता है कि बदलते इस दौर में हम भारतीय भी ब्रिटेन से अपने हित में बहुत कुछ चाहते हैं। ब्रिटेन में हाल ही में सम्पन्न चुनावों में यह स्थिति बनी है कि जिस राजनैतिक पार्टी की पिछली सरकार ने जो वायदे भारत के हित में किए थे, वह सत्ता में दौबारा वापसी करने में सफल रही है। ब्रिटेन में डेविड कैमरन का फिर से प्रधानमंत्री बनना तथा कंजरवेटिव पार्टी का सत्ता में बने रहना हर दृष्टि से आज भारत के लिए फायदेमंद है।
इस वर्ष जब मार्च महीने में लंदन में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ब्रिटेन के चांसलर जॉर्ज ओस्बोर्न के साथ मुलाकात की थी, तब दोनों देशों के प्रमुख नेताओं ने 2010 से अब तक के बीच आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर सहयोग में हुई बढ़ोतरी की समीक्षा करने के साथ एक-दूसरे की अर्थव्यवस्थाओं से अपने यहां हुए निवेश पर विचार-विमर्श किया था। उस वक्त चांसलर ओस्बोर्न ने ब्रिटेन एवं भारत की अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते महत्वपूर्ण रिश्तों की सराहना करते हुए कहा था कि भारत के साथ पहले से मजबूत रिश्तों को और मजबूत करना हमारी सरकार की प्राथमिकता है। हम दिल से भारत जैसे तेजी से बढ़ती-उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ नजदीकी संबंध चाहते हैं। इससे दोनों देशों को वृद्धि और रोजगार में लाभ होगा। इस दौरान ब्रिटेन की ओर से यहां तक कहा गया था कि हम भारत सरकार के साथ रिश्तों में और नजदीकी लाने पर काम करेंगे, जिससे दोनों देशों को आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी लाभ हो सके।
इससे और दो माह पीछे जाएं तब जनवरी माह में ‘मेक इन इंडिया’ पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा था कि मैं ब्रिटेन का भारत के साथ संबंधों की व्यापकता पर गौरवान्वित महसूस करता हूं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड, जीएसके, हिन्दुस्तान यूनिलीवर, बीपी और वोडाफोन अपना व्यवसाय भारत में दशकों से कर रहे हैं और टाटा, महिन्द्रा और सीआईपीएलए जैसी भारतीय कंपनियां ब्रिटेन और भारत में काम कर रही हैं, जिससे हमारे दोनों देश लाभान्वित हैं। उन सभी क्षेत्रों में जिनमें हम मिलकर काम कर रहे हैं, इस अभियान के जरिए मैं ऐसे और भी ‘ग्रेट’ सहयोग को बढ़ावा देने और उन्हें प्रदर्शित करने को इच्छुक हूं। यह प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया अभियान को हमारे समर्थन को रेखांकित करता है तथा ब्रिटेन और भारत द्वारा साथ मिलकर महान चीजों के निर्माण का हर्षोत्सव मनाता है।
तभी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से कहा गया था कि उन्हें इस बात की खुशी है कि ब्रिटेन की सरकार द्वारा समर्थित ब्रिटिश उद्योग ‘मेक इन इंडिया’ के हमारे आह्वान पर उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया दे रहा है। ब्रिटेन हमारा एक सबलतम आर्थिक साझेदार और भारत में एक अग्रणी निवेशक है। ब्रिटेन को तकनीक और अभिनव खोजों के क्षेत्र में उसकी क्षमता के लिए जाना जाता है। अपने बाजार, कुशल मानव संसाधन, प्रतिस्पर्धी आर्थिक वातावरण और अवस्थिति के जरिए भारत विशाल अवसर मुहैया करता है। साथ ही, हमारे व्यवसाय, हमारे समान लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था, कानून का शासन, भाषा और प्रबंधन व्यवहारों के बीच परिचालित होते हैं। दोनों देशों को विशाल फायदे दिलाने वाली सफल साझेदारी के निर्माण का यह एक ठोस और कारगर संयोजन का निर्माण करता है। उस समय उन्होंने उम्मीद जताई थी कि भारत का नया निवेश-वातावरण भारत में विनिर्माण आधारों की स्थापना के लिए बड़ी संख्या में ब्रिटिश कंपनियों को भी आकर्षित करेगा।
ब्रिटेन में हुए इस बार के चुनावों में यही देखा गया है कि वहां रह रहे भारतीय मूल के 40 लाख मतदाताओं पर सभी पार्टियों की भले ही नजर रही तथा उन्हें लुभाने की पूरी कोशिश भी की गई। कैमरन और मिलिबैंड नेताओं सहित अन्य दलों के लोग भारतीयों को साधने मंदिर और गुरुद्वारे भी गए, लेकिन जिन 99 सीटों पर भारतीयों के वोट निर्णायक साबित होते हैं, वहां अधिकांश पर भारतीयों ने कैमरन की कंजरवेटिव पार्टी के हित में अपना वोट दिया है, जो यह बताता है कि भारत को लेकर अभी तात्कालिक पार्टी का जो नजरिया है, उससे ब्रिटेन में रह रहे भारतीय भी अपनी सहमति रखते हैं।
ब्रिटेन चुनाव में एक बार फिर से प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की जीत भारत के लिए कई मायनों में इसीलिए भी अहम है, क्योंकि इस जीत ने ब्रिटेन में त्रिशंकु संसद बनने के भी आसार खत्म किए हैं। यदि संसद त्रिशंकु होती तो कई मामलों में भारत के हित प्रभावित होते, लेकिन अच्छा है कि ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की पार्टी ने 83 पृष्ठीय घोषणा-पत्र में भारत से मजबूत संबंधों की वकालत की थी, जबकि मुख्य विपक्षी दल लेबर पार्टी के मेनिफेस्टो में भारत को उतनी तवज्जो नहीं दी गई थी। इसलिए भी कैमरन सरकार का ब्रिटेन में वापस आना भारत के हित में रहा है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को लेकर कैमरन की पार्टी यहां भारत के साथ खड़ी दिखाई देती है। वह पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुकी है, तथा 14 अप्रैल 2015 को जारी पार्टी के घोषणा-पत्र में भी इसका उल्लेख किया गया था। भारत-ब्रिटिश के आपसी व्यापार को लेकर भी यह प्रबल संभावना बनी है कि ब्रिटेन ईयू-इंडिया ट्रेड डील भारत के साथ करना चाहता है। इसका मकसद है कि दोनों देश एक-दूसरे में निवेश करें।
दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद कैमरन तेजी के साथ इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे। ब्रिटेन आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत का साथ देगा, कैमरन की सरकार से हमें यह उम्मीद है। इसके अलावा, जब भारत दौरे पर कैमरन आए थे, तब उन्होंने जो प्रतिबद्धता दर्शाई थी, उसे देखकर कहा जा सकता है कि वे भारत की चीन के सायबर हमलों से बचने में भरपूर अपनी ओर से मदद करेंगे। वहीं, उम्मीद की जानी चाहिए कि कला-संस्कृति के क्षेत्र में भारत की कला-संस्कृति को बढ़ावा देने में भी कैमरन सहयोग करेंगे। मैनचेस्टर म्यूजियम में चुनिंदा देशों को स्थान दिया जाएगा, इनमें भारत भी एक है।
यहां इस बात को भी विशेष रूप से रेखांकित किया जा सकता है कि ब्रिटेन जी-20 के देशों में भारत में सबसे अधिक निवेश करने वाला देश है। इसी तरह ब्रिटेन में भारत का निवेश शेष यूरोपीय संघ में उसके निवेश से अधिक है। एफडीआई के लिहाज से देखें तो ब्रिटेन पहले से भारत में सबसे बड़ा जी-20 ‘निर्माता’ है। पिछले साल ब्रिटेन ने भारत 3.2 अरब डॉलर का निवेश किया, जो कि भारत में विनेश करने वाले जी-20 के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े निवेशकों के सम्मिलित निवेशों से अधिक है। पिछले पंद्रह वर्षों के रिकॉर्ड को देखा जाए तो सन् 2000 से भारत में हुए सभी निवेशों को जोड़ कर देखने से पता चलता है कि तब से अब तक ब्रिटेन सबसे बड़ा जी-20 निवेशक है, जो भारत में आने वाले एफडीआई के समग्र प्रवाह का 10 प्रतिशत मुहैया करता है। इसी तरह, भारतीय कंपनियां ब्रिटेन में लगभग सबसे बड़ी निवेशक हैं। इन आपसी सहयोगों के जरिए विकसित नवप्रवर्तन से दोनों ही देशों को बहुत लाभ पहुंचा है।
वस्तुत: नवप्रवर्तन और रचनात्मकता के क्षेत्र में यूके की मुख्य ताकत और भारत की बेमिसाल क्षमता, कुशल और प्रतिभाशाली कार्यबल तथा प्रगति की महत्वाकांक्षा ब्रिटेन और भारत को एक-दूसरे का स्वाभाविक सहयोगी साझेदार बनाता है। ब्रिटेन सरकार की तरफ से भारतीय पर्यटकों के लिए पहले ही एक ही (सिंगल) वीजा पर ब्रिटेन अनुमति दी जा चुकी है। इसके अलावा अभी तक के ब्रिटेन में अप्रवासियों को लेकर जितने भी अध्ययन हुए हैं, वे भी यही बताते हैं कि यहां आए भारतीय आप्रवासियों ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भले ही उन्हें ब्रिटिश नागरिकों के समान सुविधाएं नहीं मिली हों, किंतु उनका अर्थव्यवस्था सुधार में ब्रिटिश नागरिकों की तुलना में बहुत अधिक योगदान है। भारतीय वहां स्थानीय निवासियों की तुलना में समय पर अधिक टैक्स भी देते हैं।
अब आशा की जानी चाहिए कि आने वाला समय ब्रिटेन की ओर से भारत के लिए अच्छा होगा। डेविड कैमरन की सरकार प्रमुखता से उन सभी बातों पर ध्यान देने में सफल हो सकेगी, जिन्हें लेकर उनकी कंजरवेटिव पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भारत को लेकर वायदे किए हैं। इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ डेविड कैमरन को ब्रिटेन की सत्ता मे दौबारा आने के लिए सभी भारतीयों की ओर से शुभकामनाएं ।