Tag: नक्सलवाद

समाज

कम्युनिस्ट और नक्सलवाद

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उदाहरण के रूप में रूस में साम्यवादी क्रांति (1917) होते ही 1921 में अकाल पड़ा तो उसमें लगभग पौने तीन करोड़ लोग प्रभावित हुए थे उसमें सरकारी प्रबंधन से कुपित होकर 16000 नाविकों ने विद्रोह कर दिया था। जिसे रूस के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति लेनिन ने अपने 60000 सैनिकों की तैनाती कर निर्ममता से कुचलवा दिया था और 16000 नाविकों को स्वर्ग लोक पहुंचा दिया था। इसके पश्चात रूस में जब स्टालिन का शासन आया तो वहां दो करोड़ से अधिक लोगों की हत्याएं कर दी गयीं थीं। उनका अपराध केवल यह था कि वे साम्यवादी विचारधारा की क्रूरता के सामने बोलने का साहस कर रहे थे।

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विविधा

‘अपने ही लोगों ‘ के सामने घुटने टेकने को मजबूर है सरकार

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केंद्र सरकार को चाहिए कि वो नक्सलवाद के उन्मूलन की दिशा में गंभीरता से सोचे, सिर्फ बैठकें कर लेने और मीडिया के सामने बयानबाजी कर देने से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला है । ठोस कार्रवाई वक्त की मांग है। देश के मंत्रीगण – राजनेता और आला – अधिकारी किसी बड़े नक्सली हमले के बाद शहीदों के शवों पर श्रद्धाञ्जलि के नाम पर फूलों का बोझ ही तो बढ़ाने जाते हैं ? और नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए लम्बी – चौड़ी मगर खोखली बातें करते हैं । लेकिन जब नक्सलवाद के खिलाफ ठोस रणनीति या कार्रवाई करने का समय आता है तो हमारे नेता ” गांधीवादी राग ” अलापने लगते हैं।

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विविधा

हर हमले से मजबूत होते हैं हम

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फिर भी लफजों की फेर-फार के बगैर यह कहना ठीक होगा कि नक्सलवाद के अलाव की आंच उनके अपने ही दुष्कर्मों से धीमी पड़ रही है तब हमारे हुक्मरानों की एक भी गलती इस ठंडी पड़ती आग में घी का काम कर सकती है। आइपीएस एसआरपी कल्लूरी साहब बस्तर आईजी के तौर पर नक्सलियों के लिए मेन्स किलर साबित हो रहे थे लेकिन कुछ समय के लिए विपक्ष ने घडिय़ाली आंसू और मानवाधिकार के ठेकेदारों ने मिमियाना क्या शुरू किया, नौवातानुकूलित चेम्बरों में बैठे लोगों ने तिकड़मबाजी कर कल्लूरी साहब की घर-वापसी करवा दी। अब ये मानव अधिकार के अलंबरदार कहां हैं?

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