अब राष्ट्रपिता का अपमान: आखिर क्यों ?

विगत सप्ताह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर दो बड़ी  घटनायें घटीं जिसमें एक घटना के अंतर्गत लंदन शहर के  पार्लियामेंट स्क्वायर में महात्मा गांधी की एक ऐतिहासिक  कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। गांधी जी की इस प्रतिमा के पास  ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विस्टन चर्चिल और नेल्सन मंडेला जैसे महान नेताओ की प्रतिमा भी लगी हुई हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर  भारत सरकार की ओर से वित्तमंत्री अरूण जेटली, फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और गांधी के पोते गोपाल  कृष्ण गांधी उपस्थित हुए। इस अवसर पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने कहाकि,“यह प्रतिमा विश्व राजनीति की सबसे महान  हस्तियों में से एक दो दी जाने वाली भव्य श्रद्धांजलि है और हम इस प्रसिद्ध चैक पर महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाकर हमने उन्हें अपने देश में एक शाश्वत जगह दी है।” इस घटना से यह  सत्य प्रतीत हो रहा है कि वर्तमान दौर का ब्रिटेन अब कितना बदल रहा है। एक प्रकार से उसने पूर्व के महापापों का प्रायश्चित करने का एक छोटा सा अभिनव प्रयोग करने का साहस किया है। हालांकि लगता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नोबेल शांति पुरस्कार के सबसे प्रबल हकदार तो थे लेकिन वह उन्हें आज तक क्यों नहीं मिल सका है।  वहीं महात्मा गांधी को लेकर भारत में भी एक बड़ा ही विवादित बयान आया वह भी एक बेहद विवादित किस्म के व्यक्ति द्वारा। सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज मार्कंडेय काटजू ने अपने ब्लाग सत्यं ब्रूयात में एक लम्बे ब्लाग में महात्मा गांधी का खुलकर अपमान कर डाला और उन्हें ब्रिटिश एजेंट और पाखंडी करार दिया। काटजू के बयान को लेकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा होना ही था। राज्सभा में वित्तमंत्री अरूण जेटली ने स्पष्ट रूप से निंदा करते हुए कहा, ”पता नहीं ऐसे  व्यक्ति क्यों  सुप्रीम कोर्ट में जज बन जाते हैं? “काटजू का मत है कि गांधी ने बांटो और राज करो की ब्रिटिश नीति को आगे बढ़ाया। राजनीति में धर्म को घुसाकर मुसलमानों को दूर किया वह हर भाषण में रामराज, ब्रहमचर्य, गोरक्षा, वर्णाश्रम व्यवस्था जैसे हिंदू विचारों का उल्लेख करते रहे वहीं जिसके कारण मुसलमान, मुस्लिम लीग जैसे संगठनों की ओर आकर्षित होने लगे। उनकी नजर महात्मा गांधी का झुकाव हिंदुओं की ओर था। काटजू के लेख से  स्पष्ट हो रहा है कि वह इस अवस्था मे आकर पूरी तरह से मानसिक रूप से अस्वस्थ हो चुके हैं। वह मुसलमानों के प्रति पता नहीं क्यों अचानक दयाभाव के साथ अपने आंसू बहा रहे हैं। उनके पास अब कोई काम नहीं रह गया है। सोचा था कि प्रेस काउंसिल के पद से रिटायर होने के बाद मोदी सरकार में कोई न कोई काम मिल ही जायेगा लेकिन वह भी सारी कोशिशों के बाद नाकाम हो गया।    अब वह गांधी जी के अपमान के सहारे हिंदुओं व प्रधानमंत्री मोदी की बहुमत की जीत को भी बदनाम कर रहे हैं। एक बयान से कई- कई तीर साधने का  अनोखा बौद्धिक प्रयास करते दिखाई पड़ रहे हैं। आज काटजू जैसे लोगों को इस देश की जनता भलीभांति समझने लग गयी है। यह केवल महात्मा गांधी का अपमान करके कुछ तथाकथित सेकुलर ताकतों को भी खुश करने का असफल प्रयास कर रहे है। अगर मान लिया जाये कि गांधीजी पाखंडी थे व ब्रिटिश एजेंट थे तो भी सबसे बड़ी ब्रिटिश एजेंट तो तबकी कांग्रेस पार्टी ही थीं। इतिहास गवाह है कि तत्कालीन पूरा का पूरा नेहरू परिवार किस प्रकार अंग्रेज सरकार की भक्ति में डूबा रहता था।  सबसे बड़े  ब्रिटिश एजेंट तो मोतीलाल नेहरू हुआ करते थे। वे अंग्रेजों के बड़े ही वफादार माने जाते थे।कई प्रसंगों में उन्होने अंग्रेजों के लिए मुखबिरी तक का काम किया था वह अंग्रेजी व अंग्रेजी पहनावे के बड़े पैरोकारों मे से एक थे। कांग्रेस ने यदि गांधी जी की बात मान ली होती तो फिर संभवतः देश का विभाजन ही न हुआ होता और न ही नेहरूजी देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने होते। लेकिन कांग्रेस तो सबसे बड़ी ब्रिटिश एजेंट निकली उसी ने अंग्रेजों से तथाकथित समझौता किया और फिर देश की मानसिकता को ही आजादी के बाद भी गुलाम बना दिया।  गांधी जी तो चाहते थे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस का काम समाप्त हो गया है अब कांग्रेस को भंग कर देना चाहिये लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस तो गांधीजी को आजादी के 66 वर्षो के बाद उनके नाम की कमाई से अपनी दाल रोटी चलाना चाह रही थी लेकिन अब वह लुट चुकी है और अब कांग्रेस धीरे-धीरे शून्य की ओर अग्रसर हो रही है। वैसे भी क्या किसी का आज के दौर में हिंदूवादी होना या हिंदुओं के पक्ष में बोलना अपराध है। आजकल बहुसंख्यक हिंदू समाज को सरेआम गाली देना व अपमानित करना किसी भी बहाने से सेकुलर लोगों का फैशन बनता जा रहा है। काटजू साहब को अपने सत्यं ब्रूयात मे कांग्रेस व सेकुलर साथियों की भी पोल खोलनी चाहिये उनकी तो चल ही चुकी है। आज हर जगह उनकी जगहंसाई हो रही है।  अब ऐसे लोग केवल और केवल  मीडिया में बने रहने के लिए इस प्रकार के ओछे लेख लिख रहे हैं। काटजू साहब को पता होना चाहिए गांधी जी वास्तव में “ एक महात्मा थे, हैं और रहेंगे।”      उधर गोवा में भी गांधी जयंती के अवकाश को लेकर भी राजनीति हो गयी। गोवा सरकार द्वारा जारी की गयी सार्वजनिक की गयी अवकाशों की सूची में दो अक्टूबर का दिन नहीं शामिल नहीं था, बस फिर क्या था सोशल मीडिया में फिर बहस प्रारम्भ हो गयी । गाधी जी एक महान नेता थे लेकिन आज कांग्रेस के कारण ही उनका अपमान भी हो रहा है।
मृत्युंजय दीक्षित

1 COMMENT

  1. श्रीमान काटजू को मालुम होना चाहिये की जिन गांधीजी को वे ब्रिटिश सरकार का एजेंट बताय रहे हैं उस ब्रिटिश शासन को अपने एजेंट का स्मारक खड़ा करने में इतना समय क्यों लगा?यदि वे ब्रिटिश शासन का एजेंट थे तो ओबामा साहेब को भारतीय संसद में यह कहने की क्या आवश्यकता थी की ”मैं आज गांधीजी की वजह से यहाँ खड़ा हूँ”. काटजू साहेब एक सेवा से निव्ररत माननीय न्यायाधीश को ऐसी बातें और वह भी ”सत्यम ब्रूयात” में लिखना क्या उचित है. गांधीजी को कम आंकना आजकल एक चलन हो गया है. नेत्रियां भी गांधीजी के बारे में उटपटांग बयानबाजीयन कर रही हैं. एक सज्जन तो ”गोडसे”को पुरस्कृत करने का विचार रखे हैं. लगता है ये नेता,नेत्रियां और ऐसे चिंतक ”मोदी ”जी को चेन से बैठने देना नहीं चाहते.

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