राकेश कुमार आर्य
राष्ट्रीय जांच एजेंसी अर्थात एनआईए ने एक खतरनाक आतंकी गुट का पर्दाफाश कर के देश को एक बड़े खतरे से बचाने का सराहनीय कार्य किया है । जिस प्रकार विभिन्न स्थानों पर डाले गए छापों से बड़ी मात्रा में आतंकवादियों के हथियार और गोला-बारूद मिला है उससे स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवाद का खतरा अभी टला नहीं है और देश की राजनीतिक व्यवस्था को उससे सतर्क रहने की आवश्यकता है । एनआईए के अनुसार हरकत उल हर्ब ए इस्लाम नाम वाले इस आतंकी संगठन का उद्देश्य कुछ नेताओं के साथ-साथ देश के महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाने का था। स्पष्ट है कि यह आतंकी संगठन देश में पूर्णतया अराजकता फैलाने के उद्देश्य से सक्रिय है । इसने हथियारों और विस्फोटकों के साथ एक देसी रॉकेट लॉन्चर भी जुटा लिया था। इतना ही नहीं वह आत्मघाती हमलों की तैयारी में भी था । इस संगठन के साथ कई अच्छे शिक्षित युवकों के जुड़े होने के संकेत भी एनआईए ने दिए हैं । एनआईए की गिरफ्त में आए तत्वों ने अपने आतंकी गुट का नाम जिस प्रकार इस्लाम से जोड़कर बताया है उससे देश के भीतर इस्लाम के व्याख्याकारों को और मुस्लिम समाज के नेतृत्व को यह विचार करना चाहिए कि किसी भी प्रकार से कोई भी संगठन या कोई व्यक्ति इस्लाम की गलत तस्वीर प्रस्तुत करने से बाज रहे । अच्छा हो कि उन्हें ऐसे तत्वों के विरुद्ध फतवा जारी कर यह स्पष्ट करना चाहिए कि देश की सुरक्षा उनके लिए सबसे पहले है और वह किसी भी मूल्य पर देश में अराजकता फैलाने वाले तत्वों का साथ देने वाले नहीं हैं , और ना ही देश के विघटन की किसी भी प्रकार की गतिविधि को प्रोत्साहन देने वाले हैं। स्मरण रहे कि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अल कायदा, लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद, बब्बर खालसा समेत 35 से अधिक आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल रखा है। मुंबई में 26/11 का आतंकवादी हमला हो या फिर दिल्ली का, भारत के लिए आतंकवाद बड़ी समस्या बना हुआ है। उपरोक्त उल्लिखित आतंकी संगठनों में से जैश-ए-मोहम्म्द एक पाकिस्तानी जिहादी संगठन है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भारत से कश्मीर को अलग करना है।यद्यपि यह संगठन अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के विरुद्ध भी आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित समझा जाता है। इसकी स्थापना मसूद अजहर नामक पाकिस्तानी पंजाबी नेता ने मार्च 2000 में की थी। इसे भारत में हुए कई आतंकवादी हमलों के लिए उत्तरदायी माना जाता है।जनवरी 2002 में इसे पाकिस्तान की सरकार ने भी प्रतिबंधित कर दिया था ,परन्तु जैश-ए-मुहम्मद ने अपना नाम बदलकर ‘खुद्दाम उल-इस्लाम’ कर दिया। जानकार इसे एक ‘मुख्य आतंकवादी संगठन’ मानते हैं और यह भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा जारी आतंकवादी संगठनों की सूची में सम्मिलित है।दिसम्बर 1999 में अगवा किये गए एक विमान की उड़ान आईसी 814 के यात्रियों को बचाने के लिए मसूद अजहर और उसके अन्य साथियों को कंधार (अफगानिस्तान) ले जाकर छोड़ दिया गया था। तब यह जम्मू की कोट भलवल जेल में बंद था। मार्च 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने हरकत-उल-मुजाहिदीन को बंटवाकर जैश-ए-मुहम्मद की स्थापना की थी और इसके बाद हरकत के अधिकतर सदस्य जैश में सम्मिलित हो गए थे। माना जाता है कि दिसंबर 2001 में जैश ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर नई दिल्ली में भारतीय संसद पर आत्मघाती हमला किया।इसी संगठन ने फरवरी 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल को गर्दन काटकर मार दिया था। मई 2009 में जैश सदस्य होने का ढोंग कर रहे चार लोगों को एक अमेरिकी पुलिसकर्मी ने न्यूयॉर्क में एक सिनागोग (यहूदी पूजास्थल) उड़ाने और अमेरिकी सैनिक विमानों पर मिसाइल चलाने का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार किया था। अब आते हैं एक दूसरे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा पर । लश्कर ए तैयबा यानी पवित्रों की सेना दक्षिण एशिया के सबसे बड़े इस्लामी आतंकवादी संगठनों में से एक है। हाफिज मुहम्मद सईद ने इसकी स्थापना अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में की थी। वर्तमान में पाकिस्तान के लाहौर के पास मुरीदके और पाक अधिकृत कश्मीर में अनेकों आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाता है। इस संगठन ने भारत के विरुद्ध कई बड़े हमले किए हैं और अपने आरंभिक दिनों में इसका उद्देश्य अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों को निकालना था, लेकिन अब इसका मुख्य ध्येय कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना है।लाहौर विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हाफिज सईद ने 1980 के दशक के अंत में इसकी स्थापना की थी। संगठन अपने को वहाबी इस्लाम के आदर्श का अनुयायी मानता है। सऊदी अरब की मदद से चलने वाला यह संगठन समूचे दक्षिण एशिया को कट्टरपंथी बनाने में विश्वास रखता है। इसने 2000-01 में भारत पर कई आतंकवादी हमले किए। सितम्बर 2001 में अमेरिका पर हुए हमले के बाद तत्कालीन शासक परवेज मुशर्रफ ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था और इसके नेताओं की गतिविधियों को सीमित कर दिया गया था। जब 2005 में कश्मीर में भूकंप आया तो इसे दान एकत्र करने के नाम पर फिर से सक्रिय होने का अवसर मिल गया। इससे पहले तक यह अपने सभी हमलों की स्वीकार कर लेता था पर बाद में इसने हमलों में सम्मिलित होकर भी उनको स्वीकार करना बन्द कर दिया और नए नाम जमात-उद-दावा से सक्रिय हो गया। वर्ष 2000 में दिल्ली के लाल किले पर इसके उग्रवादियों ने हमला किया था। 2001 में श्रीनगर हवाई अड्डे पर आतंकवादी हमले और अप्रैल 2001 में सीमा सुरक्षाबल के जवानों की हत्या के लिए इसे जिम्मेदार माना गया। इसने पाकिस्तानी सेना तथा सरकार पर भी कई हमले किए। मुंबई में 2008 के हमलों में फिर इसका नाम आया, लेकिन संगठन ने भारत का आरोप यह कहकर निरस्त कर दिया कि वह कश्मीर के बाहर अपनी कार्रवाइयां नहीं करता है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने बब्बर खालसा, अल कायदा, लश्कर, जैश सहित 35 से अधिक आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल रखा है। इनमें पंजाब के कई खालिस्तान समर्थक गुट भी सम्मिलित हैं जिनमें बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांडो फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन के नाम शामिल हैं। एनआईए की सूची में हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, अल कायदा, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन के नाम भी सम्मिलित हैं। ये संगठन जम्मू-कश्मीर से लेकर मुंबई, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में आतंकवादी घटनाओं में सम्मिलित रहे हैं। इन संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से पूरी सहायता मिलती है। पूर्वोत्तर भारत में सबसे प्रमुख संगठन उल्फा या यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) रहा है। असम में सक्रिय इस प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन का उद्देश्य है कि यह सशस्त्र संघर्ष के जरिए असम को एक स्वतंत्र देश (स्टेट) बनाना चाहता है। भारत सरकार ने इसे वर्ष 1990 से प्रतिबंधित कर रखा है और इसे केन्द्र सरकार ने इसे एक ‘आतंकवादी संगठन’ के रूप में वर्गीकृत कर रखा है। इस संगठन को उल्फा के नाम से अधिक जाना जाता है। संगठन का मानना है कि यह सैन्य संघर्ष के द्वारा संप्रभु समाजवादी असम को स्थापित करने उद्देश्य से भीमकांत बुरागोहेन, राजीव राजकोन्वर उर्फ अरबिंद राजखोवा, गोलाप बारुआ उर्फ अनूप चेतिया, समिरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई, भद्रेश्वर गोहेन और परेश बरुआ के सपनों को साकार करेगा। इन लोगों ने 7 अप्रैल, 1979 असम में सिबसागर जिले के रंगघर में उल्फा की स्थापना की थी। ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1986 में उल्फा का संपर्क नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-पूर्व में अविभाजित) से हुआ था। म्यांमार (बर्मा) में सक्रिय संगठन काछिन रेबेल्स से भी इसे मदद मिलती रही है। यह असम और इसके समीपवर्ती राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश में सक्रिय है और इसके वहां भी कैंप चलाए जाते हैं जिनमें उग्रवादियों को प्रशिक्षिण दिया जाता है। वर्ष 1990 की शुरुआत के साथ ही उल्फा ने कई हिंसक वारदातों को अंजाम देना शुरू दिया था। इसे अमेरिकी गृह मंत्रालय ने अन्य संबंधित आंतकवादी संगठनों की सूची में सम्मिलित कर लिया है। संगठन के प्रमुख नेता परेश बरुआ (कमांडर-इन-चीफ), अरबिंद राजखोवा (चेयरमैन), अनूप चेतिया (जनरल सेक्रेटरी), प्रदीप गोगोई (वाइस चेयरमैन और असम सरकार की कस्टडी में) स्वयं को राजनीतिक व क्रांतिकारी संगठन से जुड़े लोग मानते हैं। कुछ समय पहले ही बांग्लादेश सरकार ने चेतिया को भारत के हवाले किया है।भारतीय सेना ने इसके विरुद्ध एक ऑपरेशन बजरंग आरम्भ किया था। सरकार का मानना है कि इस संगठन को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आईएसआई) और बांग्लादेशी खुफिया एजेंसी (डीजीएफआई) से सहायता मिलती है। संगठन को चीन सरकार से भी सहायता मिलती है। उल्फा वामपंथी विचारधारा को मानने वाला संगठन है और उसका संबंध माओवादियों से भी है। संगठन ने 1990 में अनिवासी ब्रिटिश व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई सुरेंद्र पॉल की हत्या कर दी थी।1991 में एक रूसी इंजीनियर का अपहरण किए जाने के बाद उसकी हत्या भी कर दी गई थी। बाद में, 1997 में इसने अन्य लोगों के साथ एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ भारतीय कूटनीतिज्ञ का अपहरण कर हत्या कर दी। वर्ष 2003 में असम में कार्यरत 15 बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें से कुछ बच्चे भी शामिल थे। जनवरी 2007 में, 62 हिंदी भाषी विशेषकर बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी। पूर्वोत्तर में सक्रिय कुछ संगठन : नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), युनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी (यूपीडीएस), कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (केएलओ), कार्बी लांग्री नेशनल लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ), कार्बी नेशनल वॉलियंटर्स (केएनवी), हमार पीपुल्स कन्वेशन (एचपीसी-डी), कार्बी पीपुल्स फ्रंट (केपीएफ), बिरसा कमांडो फोर्स (बीसीएफ), बंगाली टाइगर फोर्स (बीटीएफ), आदिवासी टाइगर फोर्स (एटीएफ), आदिवासी नेशनल लिबरेशन आर्मी ऑफ असम (आनला), गोरखा टाइगर फोर्स (जीटीएफ), बराक वेली यूथ लिबरेशन फ्रंट (बीवीवाइएलएफ), युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ बराक वेली, मुस्लिम युनाइटेड लिबरेशन टाइगर्स ऑफ असम (मुल्टा), मुस्लिमयुनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (मुल्फा), इस्लामिक लिबरेशन आर्मी ऑफ असम (आईएलएफ), मुस्लिमवॉलंटियर फोर्स (एमवीएफ), मुस्लिम लिबरेशन आर्मी (एमएलए) और मुस्लिमसिक्योरिटी फोर्स (एमएसएफ), इसलामिक सेवक संघ (आइएसएफ), इसलामिक युनाइटेड रिफॉर्मेशन प्रोटेस्ट ऑफ इंडिया (आईयूआरपीआई), यूनाइटेड मुस्लिमलिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (यूएमएलएफए), रिवोल्युशनरी मुस्लिम कमांडोज (आरएमसी), मुस्लिम टाइगर फोर्स (एमटीएफ), हरकत उल मुजाहिद्दीन, हरकत उल जेहाद आदि सम्मिलित हैं।इसके अतिरिक्त एनआईए ने लिट्टे, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एमएल), पीपुल्स वार ग्रुप, एमसीसी, तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी, तमिल नेशनल रिट्रीवल ट्रुप्स, अखिल भारत नेपाली एकता समाज, भाकपा-माओवादी को भी सूची में स्थान दिया है। देश के आगामी लोकसभा चुनावों के लिए क्या ही अच्छा होगा कि जो राजनीतिक दल इन आतंकी संगठनों को किसी भी प्रकार का समर्थन देते पाए जाते हैं या इनकी गतिविधियों को किसी भी प्रकार से संवैधानिक और न्यायसंगत ठहराने का प्रयास करते हैं – उनको भी आतंकी संगठन ही समझा जाए । देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने के कारण ऐसे दलों को भारत का चुनाव आयोग आतंकी संगठनों का सहायक घोषित करे । वास्तव में जब आतंकी संगठनों के सूत्र किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए पाए जाते हैं तो देश की जनता के मन में राजनीति के प्रति घृणा ही प्रकट होती है। राजनीति निश्चित रूप से एक पवित्र धर्म है , परंतु यह पवित्र धर्म तभी तक है जब तक इसे राष्ट्रनीति के रूप में अपनाया जाता है । जब यह विघटनकारी तत्वों के हाथों में खेलने लगती है तो इससे अधिक घातक कोई अधर्म नहीं रह जाता । राजनीति को धर्म से युक्त करके देखने की आवश्यकता है । जो लोग राजनीति को धर्म से अलग करके देखने का प्रयास करते हैं उन्होंने ही अधर्म की राजनीति फैलाकर देश में आतंकी संगठनों को प्रोत्साहित किया है । हमारा मानना है कि आगामी चुनाव ‘ आतंकी संगठनों को समर्थन देने वाले दल बनाम आतंकवाद पर लगाम लगाने वाले दल ‘ – के बीच होना चाहिए । यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक होंगे । देश की जनता अपने आप यह निर्णय दे देगी कि वह देश को किन हाथों में सुरक्षित समझती है ?