पति की दीर्घायु कामना और कालसर्प दोष निवारणार्थ सोमवती अमावस्या

-अशोक “प्रवृद्ध”


यूँ तो प्रत्येक मास में एक अमावस्या आती ही है, परन्तु अमावस्या के अवसर पर सोमवार के दिन कम ही आते हैं। सोमवार के दिन आने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। जिस प्रकार शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं, उसी प्रकार सप्ताह के पहले दिन अर्थात सोमवार को आने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। गणित के प्रायिकता सिद्धांत के अनुसार अमावस्या वर्ष में एक अथवा दो बार ही सोमवार के दिन हो सकती है, परन्तु समय चक्र के अनुसार अमावस्या का सोमवती होना बिल्कुल अनिश्चित है। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या अर्थात सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व पुराणों में बताते हुए कहा गया है कि इस दिन सुहागिन महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखना चाहिए। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए इस दिन भोलेनाथ की पूजा करते हुए महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और पीपल के वृक्ष में भगवान शिव का वास मानकर उसकी पूजा और परिक्रमा करती है। ऐसी मान्यता है कि पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए अमावस्या के सभी दिन श्राद्ध रस्मों के निष्पन्नार्थ उपयुक्त हैं। कालसर्प दोष निवारण की पूजा करने के लिए भी अमावस्या का दिन उपयुक्त होता है।  पौराणिक मान्यता अनुसार सोमवती अमावस्या का एक विशेष पौराणिक व आध्यात्मिक महत्त्व है। सोमवार चंद्रमा का दिन होने के कारण इस दिन अमावस्या को सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं, इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।  सोमवती अमावस्या के दिन महिलाएँ तुलसी माता की 108 परिक्रमा लगाते हुए कोई भी वस्तु अर्थात फल दान करने का संकल्प लेतीं हैं। मान्यता है कि इससे निर्धनता दूर होती है। पुराणों के अनुसार सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है। इस दिन को नदियों, तीर्थों में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र आदि दान के लिए विशेष माना जाता है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष श्रावण मास में भी सोमवती अमावस्या का योग बन रहा है, और वह विशेष दिन 20 जुलाई 2020 सोमवार को पड़ रहा है, जो अत्यंत फलदायी माना जा रहा है। ध्यातव्य यह भी है कि इस वर्ष श्रावण मास सोमवार से शुरू होकर सोमवार को ही समाप्त हो रहा है और श्रावण मास में पांच सोमवार का विशिष्ट योग बन रहा है। इस वर्ष 2020 ईस्वी में श्रावण मास में दो सोमवार को विशेष रूप से अमावस्या और पूर्णिमा पर पड़ रहे हैं। इससे पहले श्रावण मास में सोमवती अमावस्या और सोमवती पूर्णिमा का संयोग 47 वर्ष पूर्व बना था। ज्योतिषीय गणनानुसार इस वर्ष हरियाली अमावस्या के दिन चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह अपनी-अपनी राशियों में रहने के कारण ग्रहों की इस स्थिति का शुभ प्रभाव कई राशियों पर देखने को मिलेगा। ऐसे अवसर पर महिलाओं द्वारा तुलसी की 108 परिक्रमाएं किए जाने का विधान है। आगे अब 2024 में यह अद्भुत संयोग बनेगा। उस समय 22 जुलाई सोमवार से श्रावण मास शुरू होकर 19 अगस्त सोमवार को समाप्त होगा।

उल्लेखनीय है कि श्रावण मास हरियाली और उत्साह का महीना माना जाता है। इसलिए इस महीने की अमावस्या पर प्रकृति के समीप आने की विशेष परिपाटी है और इसके लिए पौधरोपण तक किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पौधारोपण से ग्रह दोष शांत होते हैं। अमावस्या तिथि का संबंध पितरों से भी माना जाता है। पितरों में प्रधान अर्यमा को माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि वह स्वयं पितरों में प्रधान अर्यमा हैं। हरियाली अमावस्या के दिन पौधरोपण से पितर भी तृप्त होते हैं, अर्थात इस दिन पौधे लगाने से प्रकृति और पुरुष दोनों ही संतुष्ट होकर मनुष्य को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए इस दिन एक पौधा लगाना शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान की भी परिपाटी है और इसका विशेष महत्व बताया गया है।  जहाँ गंगा उपलब्ध नहीं वहां नहाते समय पानी में गंगा जल मिला कर स्नान करने का विधान किया गया है। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। पीपल की पूजा के बाद गरीबों को कुछ दान अवश्य देना चाहिए। निकट के नदी या सरोवर पर जाकर भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी जी की भक्तिभाव से पूजा करना चाहिए । सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी की परिक्रमा करना, ओंकार का जप करना, सूर्य नारायण को अर्घ्य देना अत्यंत फलदायी मन जाता है। मान्यता है कि सिर्फ तुलसी की 108 बार प्रदक्षिणा करने से घर की दरिद्रता भाग जाती है।

पौराणिक ग्रन्थों में पीपल को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। अश्वत्थ अर्थात पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित स्त्रियों के द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान है। कुछ अन्य परम्पराओं में भँवरी देने का भी विधान होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।

सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिन्हें सोमवती अमावस्या के दिन विधिपूर्वक सुने जाने की परम्परा है। कथा के अनुसार एक गरीब ब्रह्मण अपनी पत्नी और एक पुत्री के साथ रहता था। पुत्री धीरे -धीरे बड़ी होने लगी और लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास होने लगा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान होने के बावजूद गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधु का आगम हुआ , जो कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए कहा कि कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है और अगर कहीं किसी प्रकार इसका विवाह हो भोई जाएगा तो इसका पति शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। इस पर ब्राह्मण दम्पति ने साधु से कन्या के हाथ में विवाह योग बनने और उसके पति के जीवित रहने का उपाय पूछा । साधु ने कुछ देर विचारोपरांत अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण  सोना नाम की धुबी (धोबी) जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती- जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा –सत्कार करने के लिए कहा। उसके बाद साधु के कथनानुसार कन्या ब्रह्म बेला में ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे कार्य निबटा कर अपने घर वापस आ जाती। एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो सुबह तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माता मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम स्वयं ही निबटा लेती हैं, मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि आखिर कौन है जो सुबह – प्रातः  ही घर का सारा काम करके चला जाता हा। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है।एक दिन जब ब्राह्मण कन्या जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, और पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं? इस पर ब्राह्मण कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह सब बात समझ गई और वह इसके लिए तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। कथा के अनुसार ब्राह्मण के घर सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति की मृत्यु हो गई और उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निर्जला ही चली थी, यह सोचकर कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए- पकवान आदि  मिष्टान्न के स्थान पर उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।


ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। इसलिए  सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भँवरी देता अर्थात परिक्रमा करता है, उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है। प्रत्येक  अमावस्या को व्रत न कर सकने वाले व्यक्ति को सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भँवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश की पूजा करता है, तो उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ऐसी परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भँवरी दी जाती है।उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाद्य सामग्री इत्यादि की भँवरी दी जाती है। भँवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्रह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है। अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में वह दान नहीं देना चाहिए।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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