घर का सच होता सपना

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प्रमोद भार्गव

नोटबंदी के बाद कतार में लगे लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर राहत के बड़े उपाय किए हैं। इनमें सबसे ज्यादा यह कोशीश है कि बेघर परिवार किसी तरह घर का मालिक बने। इसी लिहाज से छोटे कर्ज पर ब्याज दरों में बड़ी छूट दी गई है। इससे निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों को अपना घर बनाने अथवा खरीदने में आसानी होगी। साथ ही किसानों, गरीबों, छोटे व्यापारियों, वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं को भी बड़ी राहत देने की घोषणाएं की गई हैं। इन राहत योजनाओं में आम बजट का लघु स्वरूप तो झलक ही रहा है, ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि सरकार आम आदमी के कष्ट दूर करने के उपायों में पुरजोरी से जुट गई है।

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरों में बेघरों को घर देने के लिए दो नई योजनाएं सामने आई हैं। नया घर बनाने के लिए 9 लाख के ऋण पर 4 फीसदी और 12 लाख रुपए तक के कर्ज पर 3 प्रतिशत ब्याज दर में छूट दी जाएगी। वर्तमान ब्याज दर 9.5 फीसदी है। साथ ही ग्रामीण आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले घरों की संख्या 33 प्रतिशत ज्यादा घर बनाने की घोषण की गई है। फिलहाल देश में 2019 तक एक करोड़ घर बनाने का लक्ष्य था। नतीजतन 2017 में 33 लाख घर निर्मित किए जाते, लेकिन अब यह लक्ष्य बढ़कर 44 लाख हो जाएगा। इसके अलावा 2017 में जो ग्रामीण पुराने घर में नवनिर्माण या उसका विस्तार करना चाहते हैं तो दो लाख रुपए के कर्ज पर तीन फीसदी ब्याज दर में छूट दी जाएगी। इन उपायों से जहां ग्रामीण क्षेत्र में नए रोजगार का सृजन होगा, वहीं शहरी क्षेत्रों में निम्न व मध्यम आय वाले लोगों का ख्याल रखकर जिन बहुमंजिला इमारतों में फ्लैटों का निर्माण किया गया है, उनकी बिक्री में उछाल आएगा। इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश हुआ है। नोटबंदी के बाद इस जायदाद की कीमतों में भारी गिरावट की आशंका थी, जो अब स्थिर बनी रहेगी।

मनुष्य के जीवन में अपने घर का होना एक निर्णायक व अहम् उपलब्धि है। इससे सामाजिक प्रतिष्ठ भी आंकी जाती है। घर जीवन को बहतर और सुकूनदायी बनाता है। इसीलिए घर का मूल्याकंन केवल चार दीवारों पर छत से नहीं, बल्कि परिवार के जीवन से आजीवन जुड़ जाने वाली सुविधा से किया जाता है। इसीलिए घर के मालिक निरंतर घर को सजाते व संवारते हैं, क्योंकि अंततः वह उनके लिए आत्म-प्रेरणा का स्रोत भी बन जाता है। इस मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए ही प्रधानमंत्री ने परिवार की हर इकाई को घर दिलाने के उपाय आसान किए हैं। लगता है राजग सरकार का इरादा 2022 तक इस लक्ष्य को पूरा करने का है, जिससे देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर हीरक जयंती मनाए, तो उस वक्त तक हर परिवार के पास दीपक जलाने के लिए अपना घर हो। शायद इस मंशापूर्ति को दृष्टिगत रखते हुए प्रधानमंत्री ने ग्रामीण आवास योजना में 33 प्रतिशत ज्यादा घर बनाने का लक्ष्य रखा है।

देश में हर परिवार के लिए अपना घर फिलहाल एक मृगतृष्णा की तरह है। देशभर में घरों की मांग और आपूर्ति के लिए जिस समिति का गठन किया गया है, उसका अनुमान शहरी क्षेत्रों में करीब दो करोड़ और ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 5 करोड़ घरों की जरूरत का है। प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तीन साल के भीतर एक करोड़ घर बनाने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है। घर के लिए ब्याज दरों में जिस तरह से कटौती की गई है, उसके चलते आने वाले दिनों में घर खरीद में तेजी आना स्वाभाविक है। नोटबंदी के चलते बैंकों में बड़ी मात्रा में धन भी आ गया है, इसलिए बैंक धन की कमी का रोना नहीं रो पाएंगे ? विमुद्रीकरण के उपाय से भी ऐसा लग रहा है कि कम से कम सवा से डेढ़ लाख करोड़ रुपए का कालाधन मिट्टी हो जाएगा। इस राशि का एक हिस्सा ही नए आवासों के निर्माण में लगा दिया जाता है तो देखते-देखते बड़ी संख्या में बेघर, घर के मालिक हो जाएंगे।

इस सबके बावजूद यह शंका अपनी जगह कायम है कि घर-ऋण की योजना तभी फलीभूत होगी जब शहरी निम्न-मध्यवर्गीय लोगों और लघु व सीमांत किसानों की आमदनी में इजाफा हो ? साफ है, सरकारी क्षेत्र में संविदा पर काम करने वाले और असंगठित क्षेत्र में लगे लोगों की आय में वृद्धि हो ? तभी लक्षित वर्ग कर्ज लेने व चुकाने लायक हो पाएगा, वरना सरकार सबसिडी का अत्याधिक बोझ उठाना होगा। हालांकि ब्याज दरों में छूट देकर सरकार ने एक तरह से घर खरीदने वालों को सबसिडी की व्यवस्था कर दी है। हालांकि प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना की घोषणा करते वक्त सरकार ने सबके लिए आवास मिशन पूरा करने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप नमूने पर काम करने की उम्मीद जताई थी, लेकिन इस योजना पर अब तक निजी क्षेत्र ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। शायद इसीलिए सरकार ने 12 लाख तक की रकम पर ब्याज में छूट देकर शहरों में निर्मित पड़े मकानों को खरीदने का व्यावहारिक रास्ता खोल दिया है। इस उपाय से सरकार को तत्काल भवन निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण के झंझट में भी नहीं उलझना होगा।

फिलहाल घरों की कमी के जो आंकड़े सरकार के पास हैं, वे 2011 में दर्ज जनगणना के आंकड़ों से लिए गए हैं। सरकार ने 2022 तक सबके लिए घर का जो लक्ष्य रखा है, तब तक 2021 में होने वाली जनगणना के आंकड़े भी आ जाएंगे। साफ है, आबादी में वृद्धि निरंतर हो रही है, सो घरों की संख्या में भी वृद्धि होनी ही है। हालांकि भारतीय सांख्यकीय संस्थान के षोधकर्ताओं का दावा है कि अभी भी घरों की जो कमी गिनाई जा रही है, उससे कहीं तीन गुना अधिक घरों की कमी है। स्वयंसेवी संगठन तो 25 करोड़ घरों की कमी बता रहे हैं। यह कमी तब है, जब देश में 28 करोड़ मकान मौजूद हैं। अर्थशास्त्री एक घर में औसत पांच सदस्यों का रहना मानते हैं। यदि इस औसत से अंदाजा लगाएं और देश की अधिकतम आबादी 127 करोड़ मान लें तो 28 करोड़ घरों में 140 करोड़ लोग रह सकते हैं। मसलन जनसंख्या के अनुपात में उपलब्ध घरों के हिसाब से नए घरों की जरूरत ही नहीं है। लेकिन हम सब जानते है कि यह हकीकत नहीं है। महानागरों में करोड़ों लोगों को छत नसीब नहीं है। फुटपाथों पर रात गुजारते हैं। दरअसल ऐसा इसलिए है, क्योंकि कई लोग 3 से 5 मकानों तक के मालिक है। भ्रष्ट अधिकारियों के पास से दर्जन-दर्जन भर मकानों के दस्तावेज पाए गए हैं। इसलिए नोटबंदी के बाद यह उपाय भी लाजिमी है कि एक व्यक्ति द्वारा कई-कई मकान खरीदने पर पाबंदी लगे। हालांकि बेनामी संपत्ति पर अकुंश लगाने का जो नया कानून आया है, उसका यदि सख्ती से अमल होता है तो बड़ी तादाद में बेनामी संपत्ति सामने आएगी। इस संपत्ति की जब्ती से भी कई बेघरों को घर दिए जा सकते हैं। वैसे भी मकान केवल जरूरतमंद की जरूरत पूरी करने के लिए होना चाहिए, वरना यह स्थिति जमीन का संकट पैदा करेगी ? आवासीय बस्तियों के लिए खेती की जमीन का उपयोग जहां अनाज का संकट बढ़ाता है, वहीं बेरोजगारी भी पैदा करता है। इस जमीन को बाजार भाव से खरीदकर यदि शहरी आबादी के लिए घर निर्माण करने के उपाय किए जाते हैं, तो 9 से 10 लाख रुपए में अपना घर खरीदना मुश्किल होगा ? इस लिहाज से सरकार बेनामी संपत्ति पर नकेल कसती है तो निर्मित भवनों की कीमतों में कमी बनी रहेगी और ये घर निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगों की पहुंच में बने रहेंगे। इसी दृढ़ इरादे के साथ सब के लिए घर का सपना पूरा हो पाएगा।

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