म्यांमार के बाद अब श्रीलंका में मुसलमान बौद्धों के निशाने पर क्यों?

श्रीलंका में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण 

वर्षा शर्मा

श्रीलंका में बौद्ध बनाम मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा के बाद 10 दिनों के लिए आपातकाल घोषित कर दिया गया है। श्रीलंका के कैंडी जिले में इस हिंसा की शुरुआत हुई, जिससे निपटने के लिए सरकार ने इस इमर्जेंसी का ऐलान किया है। म्यांमार के बाद अब श्रीलंका में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा ज़ोरों पर है। देश के दक्षिणी इलाके में मुस्लिमों के कई मकान और दुकानें जला दिए गए.

श्री लंका में मुसलानों के खिलाफ  घृणा और नफरत की लहर  थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। मुल्क के कुछ ग़ैर ज़िम्मेदार नागरिक जान-बूझकर हिंसात्मक घटनाओं में हिस्सा ले रहे हैं, जिससे नफरत की आग को और अधिक हवा मिल रही है, जो दुर्भाग्यवश अब तक जारी है। बौद्धों और मुसलमानों के बीच बढ़ती हिंसा को देखते हुए वहां की सरकार ने देश में दस दिन के लिए आपातकाल लगा दिया है।

श्रीलंका की 2.10 करोड़ आबादी में बौद्ध धर्म के अनुयायी सिंहल समुदाय की संख्या करीब 85 प्रतिशत और मुस्लिमों की आबादी करीब दस प्रतिशत है। हाल के वर्षो में कथित तौर पर मुस्लिम अलपसंख्यकों पर हिंसक और आक्रामक हमलों का दबाव निरंतर जारी रहा।   लेकिन आज श्रीलंका के हालात बद से  बदतर हो होते जा रहें हैं। विभिन्न मुद्दों पर बहुसंख्यक समुदाय का मुस्लिमों के साथ टकराव बढ़ा है। कारणवश, श्रीलंका के पहाड़ी जिले कैंडी में बहुसंख्यक बौद्धों और अल्पसंख्यक मुस्लिमों के बीच बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा के चलते सरकार को एमेर्जेंसी लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा ।

इन हमलों  की आग तब भड़की जब मुस्लिम उपद्रवी व्यक्तियों की भीड़  द्वारा सिंहली बौद्ध चालक की हत्या की गयी।   इसके पश्चात्  श्री लंका के  बहुसंख्यक सिंहली जातीय समूह ने अल्पसंख्यक समूह के घरों पर हमले किये और एक मस्जिद को भी निशाना बनाया। वास्तव में इन हिंसात्मक हमलों के पीछे एक खास किस्म की विचारधारा और सियासी उद्देश्य है। हालिया हिंसा की एक वजह यह भी हो सकती है कि श्रीलंका में मुस्लिम केवल मुस्लिम नहीं हैं, वे तमिल बोलने वाले मुस्लिम हैं और तमिलों का सिंहलियों से विवाद जगज़ाहिर है. हालांकि, तमिल बोलने वाले मुस्लिम कभी भी तमिल राष्ट्र के लिए लड़ने वाले एलटीटीई के साथ नहीं थे.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बौद्ध एवं मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच पिछले एक साल से ज्यादा समय से तनाव चल रहा है। देश के कुछ बौद्ध समूहों का आरोप है कि मुस्लिम लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए बाध्य कर रहे हैं और बौद्ध धर्म से जुड़ीं पुरातत्विक महत्व के स्थलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा कुछ राष्ट्रवादी सोच रखने वाले बौद्ध समुदाय के लोगों ने श्रीलंका में शरण देने की मांग करने वाले म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन भी किया है। म्यांमार की तरह ही श्रीलंका में भी लंबे समय से मुस्लिमों और बौद्धों के बीच अकसर तनाव की स्थिति पैदा होती रही है। यहां के सिंहली बौद्ध अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को खतरे के तौर पर देखते हैं।

यह भी सच है कि श्रीलंकाई सदियों से सद्भाव तथा भाई-चारे में रहते आएं हैं और उनमें से ज़्यादतर इसी तरह आपसी भाईचारे की भावना के साथ तथा  एक दूसरे के धार्मिक विश्वासों और विचारों को सम्मान देते हुए मिल-जुलकर रहना चाहते हैं। लेकिन कुछ ऐसे हिंसावादी तत्व हैं जो एक खास योजना के तहत शांति तथा भाईचारे को तोड़ने प्रयास कर रहें हैं।

श्रीलंका में  बौद्ध, ईसाई, हिंदू और मुसलमान सभी समुदायों के लोग रहतें हैं, जिनमें  ज्यादातर शांति और सद्भाव चाहते हैं।   लेकिन कुछ ऐसे भड़काऊ तत्व हैं जो वहां की सरकार की स्थिरता के खिलाफ काम कर रहे हैं और अपने व्यक्तिगत भौतिकवादी लाभ के लिए वहां के धार्मिक अल्पसंख्यों को, विशेष रूप से मुसलमानों को  निशाना बनातें आये हैं। कारण जो भी हो, सच यही है कि पिछले कई वर्षों से श्रीलंका में मुसलमान सबसे अधिक प्रभावित समुदाय रहा है।

सवाल यह है कि म्यांमार के बाद अब श्रीलंका में मुसलमान बौद्धों के निशाने पर क्यों हैं? अहिंसा का प्रतीक बौद्ध धर्म दुनिया में हमेशा शांति का संदेश देता रहा. फिर आज उसी धर्म के मानने वाले मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा का सहारा क्यों ले रहे हैं?

श्रीलंका में मुसलमानों का मुस्लिम परंपरा के तहत मांसाहार या पालतू पशुओं को मारना बौद्ध समुदाय के लिए एक विवाद का मुद्दा रहा है. श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्धों ने एक बोडु बला सेना भी बना रखी है जो सिंहली बौद्धों का राष्ट्रवादी संगठन है. ये संगठन मुसलमानों के ख़िलाफ़ मार्च निकालता है. उनके ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई की बात करता है और मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे कारोबार के बहिष्कार का वकालत करता है. इस संगठन को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से भी शिकायत है.

ऐसा माना  जाता है कि सिंहली बौद्धों के राष्ट्रवादी संगठन बदु बाला सेना (बीबीएस) के सदस्यों ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हमलों की शुरुआत की है. इनका उद्देश्य बौद्ध और सिंहली आबादी और उनके धर्म की तथाकथित रक्षा करना है। हालाँकि, बीबीएस ने श्रीलंका में मुसलमानों के खिलाफ हुए ताजा हमले से खुद को अलग किया है। बीबीएस के प्रमुख और एक बौद्ध भिक्षु गलागोदा अठथ ज्ञानेश्वर ने कहा है कि, “बीबीएस का इस हमले से कुछ लेना देना नहीं है और हम निश्चित रूप से हिंसा को लेकर चिंतित हैं।”

श्रीलंका में बौद्ध बनाम मुस्लिम हिंसा के मद्दे नज़र ज़रूरी है कि देश में सामाजिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के लिए कुछ  योजनाएं और रणनीतियां बनें। विभिन्न धार्मिक समूहों के धर्म गुरुओं को एकजुट कर  सांप्रदायिक सौहार्द में सुधार के तरीकों पर चर्चा करनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए श्रीलंका के विभिन्न हिस्सों में नियमित रूप से धार्मिक-संवाद पर वार्षिक सम्मेलन भी आयोजित कराये जाने चाहिए। इसके अलावा, स्कूलों तथा कालेजों में धर्मों के तुलनात्मक अध्यन की शिक्षा की व्यवस्था कराई जानी चाहिए, ताकि भावी पीढ़ी को एक दूसरे की संस्कृति,परंपरा, रीति-रिवाज, धार्मिक सिद्धांत से सिखने का मौका मिले। इस प्रकार लोग हर धर्म के समुदाय के धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं तथा संस्कृति का सम्मान करेंगे। किन्तु विडंबना यह है की प्रत्येक समुदाय केवल अपने धर्म के बारे में सीख और सीखा रहा है।

कम से कम, माध्यमिक स्तरों के छात्रों को तुलनात्मक धार्मिक शिक्षा प्राप्त कराई जानी चाहिए। इससे  नई पीढ़ी में न केवल सभी धर्मों की सही समझ में वृद्धि होगी बल्कि ऐसी शिक्षा प्रणाली हमारे समुदाय में सामाजिक सद्भाव और शांति को बढ़ावा भी देगी। इस सन्दर्भ में श्रीलंका भारत से सिख सकता है जहाँ स्कूलों और विश्वविद्यालयों में धार्मिक अध्ययन के पाठ्यक्रम चल रहे हैं जो कम से कम नई पीढ़ी के मन में अन्य धर्मों को जानने की रुचि पैदा करते हैं। ख़ास तौर पर, इसके ज़रिये विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं में पाए जाने वाली समानता और विषमता  की समझ फैलती है। इस तरह कि कोशिशों से श्रीलंका के समुदायों में भी सामाजिक सामंजस्य और सहिष्णुता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

श्रीलंका के मामले में भारत क्या कर सकता है, इस पर विचार विमर्श भी ज़रूरी है, क्यूंकि मुद्दा श्रीलंका में सांप्रदायिक हिंसा का हो या रोहिंग्या मुसलमानों का, कहीं ना कही भारत भी इससे परभावित होता है. बज़ाहिर भारत इस मामले में दख़ल नहीं देगा लेकिन उसका इसमें बड़ा हित है. वह चाहेगा कि वहां ध्रुवीकरण नहीं बढ़े क्योंकि अगर यह बढ़ा तो इसका असर वहीँ तक सीमित नहीं होगा, बल्कि भारत कि घरेलू राजनीती पर भी उसका परभाव पड़ेगा. तमिलों का मुद्दा आज भी श्रीलंका में जीवित है और तमिलों को संविधान में पूरी तरह जगह नहीं दी गई है. एलटीटीई के समय से भारत श्रीलंका में शांति की कोशिशें करता रहा है. श्रीलंका की वर्तमान सरकार के साथ भारत के संबंध काफी गहरे हैं. इसलिए वह चाहेगा की इसका सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ना हो सके.

हम उस युग में रह रहें  हैं जहां मानवता अब बहुत क़रीब आ चुकी है। हमारी आधुनिक दुनिया में नस्लीय नफ़रत और सामाजिक पूर्वाग्रह के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हर देश के नागरिकों को दुनिया में जगह ले रहे आकस्मिक परिवर्तनों के बारे में शिक्षित करना हमारा नैतिक कर्तव्य और ज़िम्मेदारी है। केवल शिक्षा के माध्यम से ही  हम जनता के दिलों और दिमाग को बदल सकते हैं। प्रकृति ने सभी मनुष्यों को एक-समान और नेक बनाया है, वे अमन, शांति और सह-अस्तित्व से रहना चाहते हैं। लेकिन प्रत्येह समुदाय में कुछ हिंसात्मक तत्व होते हैं जो सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देते हैं।

बहरहाल, अगर श्रीलंका के समुदाय एक बार फिर शत्रुता पर उतर आए तो ये नस्लीय बदले हमारी नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य को लेकर कई प्रश्नचिन्ह बने रहेंगे। लेकिन यह सब राजनीतिक इच्छा और धार्मिक मार्गदर्शन पर भी निर्भर करता है। हम सभी को सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव के संदेश को जनता तक पहुंचना होगा।

2 COMMENTS

  1. “म्यांमार के बाद अब श्रीलंका में मुस्लमान बौद्धों के निशाने” विषय को लेकर वर्षा शर्मा जी की “पर क्यों” उनकी प्रश्नात्मक टीका-टिप्पणी स्थिति को कुशलतूर्वक चित्रित करते गंभीर स्थिति पर नियंत्रण हेतु उनका समाधान भी प्रशंसनीय है| घर लौट, भारत में केंद्र के राष्ट्रवादी प्रशासन द्वारा हिंदुत्व के आचरण को बढ़ावा देते हम भारतीयों को हिन्दू और मुसलमान की पहचान नहीं बल्कि संगठित हमें कुशल विधि-व्यवस्था व कानून द्वारा उस शत्रु को पहचानना है जो हमें जाति व धर्म में बांटने का क्रूर प्रयास करता है|

  2. सरीलंका की इस्तिथि को जिस अंदाज़ से लेखक ने पेश किया है इस मैं और जोड़ने की बिल्कुल भी आवशकता नही| लेखक ने हर ड्रस्थिकोण से हर एक पहलू पर खूब प्रकाश डाला है| यही नही, लेखक ने जो अंत मैं इस घांबीर समस्या का समाधान दिया है वो उचित होने के साथ साथ समय की अहम ज़रूरत है| आशा करता हूँ भवीश मैं भी इस तरह के लेख पढ़ने का औसर मिले गा| मेरी तरफ से लेखक को बहुत बहुत बधाई|

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