अपन को रिटायर वायु सेना चीफ एसपी त्यागी का सीबीआई दफ्तर जाना अच्छा नहीं लगा! पैदल, कंधे पर एक बैग लटकाए, सीबीआई बिल्डिंग में जाते एसपी त्यागी की जो टीवी फुटेज देखी तो मन खिन्न हुआ। जो शख्स भारत की वायुसेना का प्रमुख रहा, जिसने लाखों सैनिकों को लीडरशीप दी उसका व्यक्तित्व-कृतित्व, उसकी गरिमा, प्रतिष्ठा ऐसे तार-तार हो तो उसकी सेना, समाज, व्यवस्था पर असर की चिंता होनी चाहिए। क्या एसपी त्यागी को बख्शा नहीं जा सकता? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस, सेना चीफ के कुछ पद तो ऐसे होने चाहिए जिस पर दाग भले बैठने वाले की करतूत से बने मगर देश के हम नागरिकों में पद का सम्मान न टूटे, यह चिंता होनी चाहिए। पर इधर यह फुटेज थी उधर टाइम्स नाउ का एंकर चिल्ला रहा था कि सीबीआई ने इसे अभी तक क्यों नहीं गिरफ्तार किया? दूसरे चैनल पर इटली के उस जज का इंटरव्यू था जिसमें उसका दो टूक खुलासा था कि त्यागी के खातों में पैसा गया!
ऐसे में यही सोच सकते हैं कि जैसी करनी वैसी भरनी। कोई कुछ नहीं कर सकता। पद संवैधानिक हो या सेना जैसी संस्था में मनोबल की बात हो, भारत में सब कीचड़ के बीच है। दुनिया के जो सभ्य देश हैं जैसे ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, अमेरिका, इनमें क्या कभी सुना कि राष्ट्रपति या चांसलर या प्रधानमंत्री या सेनापति दलाली की वैसी किस्सागोई के पात्र बने हैं जैसे भारत में बनते हैं। जब भी कोई मामला आता है तो उसमें ऊपर से नीचे तक सब पुते हुए निकलेंगे।
ऐसा अपने सिस्टम के कारण है। मेरे और आप सबके लिए सोचने वाली बात है कि वीवीआईपी को लाने–ले जाने के एक सिविल मकसद के हेलीकॉप्टर सौदे के लिए सिस्टम ने कितने लोगों को फंसाया। वायुसेना, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, एसपीजी, रक्षा मंत्रालय के चार बड़े महकमे उलझे। विदेश में जो काम एक विभाग का होता है या तयशुदा पैरामीटर में ढला होता है वह काम भारत में इतने अधिकारियों, निर्णयकर्ताओं के बीच से गुजरता है कि एक सिरे से दूसरे सिरे तक कीचड़ बनता जाता है। भारत का हर स्कैंडल कई परतें, कई कड़ियां लिए हुए हुआ है। प्रधानमंत्री दफ्तर से ले कर मंत्रालय विशेष के सयुंक्त सचिव तक फाईलें ऐसे घुमाई जाती हैं कि रिश्वत का, पक्षपात का, हेराफेरी का चक्र कड़ी-दर-कड़ी बनता जाएगा।
अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर के मामले को लें। वाजपेयी सरकार में वीवीआईपी को लाने-ले जाने की जरूरत में हेलीकॉप्टर खरीदने की सोची गई। जब एमआई हेलीकॉप्टर थे तो क्यों जरूरत हुई? यदि जरूरत हुई तो दुनिया के पैमाने याकि कसौटी पहले से थी कि वीवीआईपी हेलीकॉप्टर ऐसा हो जो छह हजार मीटर की ऊंचाई पर सामान्य तौर पर उड़े।
सो होना यह चाहिए था कि प्रधानमंत्री दफ्तर के स्तर पर जरूरत का एक नोट बनता। तयशुदा कसौटियों की शर्त बताते हुए वैश्विक टेंडर जारी होता। रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव या खरीद विभाग के उपसचिव के स्तर पर टेंडर को खोलते हुए जो शर्तों में, कीमत में फिट बैठता उस कंपनी को खरीदने का आर्डर मिलता।
लेकिन भारत के अफसरों ने, नौकरशाही ने, नेताओं ने सिस्टम इतना आसान, पारदर्शी नहीं बना रखा है। मौजूदा हेलीकॉप्टर से काम नहीं चल रहा है और नया खरीदना है तो विचार आते ही सिस्टम में अंतरनिहित घूसखोर, दलाल नेटवर्क अपने आप सक्रिय हुआ। भारत में सरकार कोई और कैसी भी हो उसमें पहला नोट जब बनता है टेंडर बनता है तो यह सोचते हुए कि यह किसे जाना है। उसे दिलाने के लिए फिर दस तरह के प्रपंच होंगे जैसे अगस्ता-वेस्टलेंड हेलीकॉप्टर मामले में हुए।
सो संभव है अगस्ता-वेस्टलैंड पहले ही चुन ली गई थी। तभी यह कवायद शुरू हुई कि वह जैसा हेलीकॉप्टर बनाती है उस अनुसार टेंडर बने। अगस्ता का हेलीकॉप्टर साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर ही उड़ सकता है, छह हजार पर नहीं तो आपरेशन शुरू हुआ कि वायुसेना, एसपीजी, राष्ट्रीय सुरक्षा सबसे राय मांग सहमति बनाई जाए कि हां, कम याकि साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर उड़ सकने वाला हेलीकॉप्टर उपयुक्त है।
पर हजारों करोड़ रु की खरीद। सो इसके लिए भी सिस्टम ने अनेक लोगों को उलझा कर फैसला लेने का ताना-बाना बनाया हुआ है। एक-दो लोग फैसला करेंगे तो सीधे गाज गिरेगी। सीधे पकड़े जाएंगे। इसलिए एक सौदे में पीएमओ, रक्षा मंत्रालय, सुरक्षा सलाहकार, गृहमंत्रालय या एसपीजी, वित्त मंत्रालय और सेना के कई चेहरे जुड़े होते हैं। जितने लोग उतनी कमाई और दलालों के उतने ही मजे और स्कैंडल खुले तो रायता फैले और कोई एक पकड़ा न जाए!
सो इस मामले में भी कड़ियां बनती गईं। और कड़ियों में ग्रीस लगती गई तो किसी एक केंद्रीकृत फोर्स की ताकत से सौदा आगे बढ़ता गया।
हिसाब से अगस्ता को सौदा देना ही था तो सीधे पीएमओ को नोट बना कर फैसला ले लेना था। मगर हजारों करोड़ रु की खरीद है तो अफसर-नेता यह सोच काम करते हैं कि सबको इनवॉल्व रखो ताकि किसी एक पर ठीकरा न फूटे। त्यागी भाईयों ने दूरदर्शिता के साथ होने वाले एयर चीफ त्यागी के साथ विदेशी बिचौलिए के संग जो खेल रचा तो बाकी कड़ियां अपने आप सिस्टम के कारण जुड़ती गईं। नतीजतन आज चौतरफा रायता फैला हुआ है। सब पर आंच है। एमके नारायणन, वांचू, प्रणब मुखर्जी, एके एंटनी, सोनिया गांधी, अहमद पटेल, एसपी त्यागी सहित कई नाम जवाबदेह हैं और सिस्टम है कि मजा ले रहा है। वह जस का तस यथावत है और रहेगा। न वीपी सिंह उसे बदल सके और न नरेंद्र मोदी बदल सकते हैं। यही भारत महान की लज्जाजनक हकीकत है।