लम्बे अर्से बीत चले हैं,
इनसे कुछ सबक लेना होगा,
उम्मीदों की सतत् कड़ी में,
इस बार नया कुछ बुनना होगा,
अपने समाज के अन्तिम जन को,
अब तो बेहतर करना होगा,
शिक्षित और जागरूक बनाकर,
इनके हक में लड़ना होगा,
कुछ न कुछ पाने का सबका,
अपना अपना सपना होगा,
सूख चुके आँसुओं को अब तो,
मुस्कानों में बदलना होगा.
सुख समृद्धि सौहार्द्रता का,
दृश्य दिखे तो अच्छा होगा,
गगन चूँमती उम्मीदों को ,
आयाम मिले तो अच्छा होगा,
मेरी बहनें बढ़ चढ़ करके,
इतिहास रचें तो अच्छा होगा,
शोध जगत दुनियाँ को अपना,
लोहा मनवाए तो अच्छा होगा,
भारत की संस्कृतियों को हम सब,
अपनाए तो अच्छा होगा,
भारत माँ के गौरव का परचम,
लहराए तो अच्छा होगा.
परमपिता से यही आस है,
इस बरस किसी का दिल न दहले,
स्त्री को सम्मान मिले और,
ख़ामोशी मुस्कान में बदले,
कुछ पद्चिह्न छुटे हम सबके,
अड़िग पथिक बन हम सब चल लें,
स्वर्णिम युग का क्रन्दन हो और,
भारत विश्व गुरू में बदले,
हिन्दी के इस पुत्री ‘शालिनी’ को,
आशिर्वचन अब देना होगा,
नए वर्ष में संकल्पित होकर,
ऐसा ही कुछ करना होगा.