
मिलता नहीं चैनो सुकून रईसों के मकानों में,
दम घुटता है क्यों ऊँचे – बंगले आशियानों में।
अमीरों में छुपे दर्दों की झलक देखी है हमने,
कितने अदब से कैसे रहते हैं ऊँचे मकानों में।
नींद की गोलियां खाना फिर भी नींद ना आए,
ग़रीबों को तो में बिना गोलीके नींद आ जाए।
अमीरों की जिंदगी में सुकूं मिलता नहीं कहीं,
ग़रीब की झोंपड़ी में ही सुकूं मिलता है यहीं।
मेहनत कर चैन से सो जाता हूं मैं “भारती”,
पैसे के चक्कर में सोच सोच कर जागती।
तन ढकने को कपड़े और भर पेट मिले खाना,
कितना ही धन जोड़ लो खाली हाथ है जाना।
रचनाकार ज्ञानेश्वरानन्द “भारती”