
जब मन की मेरी बात सुने मेरे सँवरिया;
आनन्द गंग बहे चले मेरे प्रहरिया !
लहरों में घुमा प्रस्तर तर आए नज़रिया;
बृ़क्षों की व्यथा उर में रखे चमके वे दुनियाँ !
बादल में घुमड़ सूर्य रमण देखे वे नदिया;
वायु में रमे हिय में फुरे मन वन फिरिया !
हर पात सिहर ताप विहर झूले झुलैया;
हर कलिका उनकी सीख सुनी खोले पलकिया !
पतझड़ से पूर्व ख़ूब खिली हर एक डलिया;
प्रभु ‘मधु’ की हर ही तान मिले हर शह सुधिया !