बेनामी संपत्ति बनाम कालाधन

-प्रमोद भार्गव-

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राजग सरकार ने विदेशों में जमा कालेधन को देश में लाने और देश के भीतर कालाधन पैदा न हो इस मकसद की भरपाई के लिए कारगर कानूनी उपाय किए हैं। इस नाते एक तो कालाधन अघोशित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015 को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया गया,दूसरे देश के भीतर कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन (निशेध) विधेयक को मंत्रीमण्डल ने मंजूरी दे दी। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक हैं,क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्शित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फल फूल रहा है। अब दोनों कानून एक साथ वजूद में आ गए हैं, इसलिए लगता है कालेधन पर कालांतर में लगाम लगने की उम्मीद है।

यह अच्छी बात है कि सरकार ने कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और कर आरोपण-2015 कानून बनाकर कालाधन रखने के प्रति उदारता दिखाई है। क्योंकि इसमें विदेशों में जमा अघोशित संपत्ति को सार्वजानिक करने और उसे देश में वापस लाने के कानूनी प्रावधान हैं। दरअसल कालेधन के जो कुबेर राष्ट्र की संपत्ति राष्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं,उनके लिए अघोशित संपत्ति देश में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोशणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भर कर शेश राशि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। विदेशों में जमा संपत्ति को वैध करने का अधिकतम समय दो माह का होगा और छह माह की समय-सीमा,कर व जुर्माना चुकाने की दी जाएगी। किंतु अवधि समाप्त होने के बाद कोई व्यक्ति विदेश में जमा संपत्ति के साथ पकड़ा जाता है,तब वह कठोर दण्ड का भागीदार हो जाएगा। उसे 30 प्रतिशत कर के साथ 90 प्रतिशत अर्थ-दंड भरना होगा और आपराधिक अभियोग का सामना करना होगा। गोया,विधेयक में प्रावधान है कि विदेशी आय में कर चोरी प्रमाणित हाती है तो 3 से 10 साल की सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है,कालाधन घोशित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं हैं। अलबत्ता अज्ञात विदेशी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा है,जिसे चुका कर व्यक्ति सफेदपोश बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देशी कालेधन पर 30 प्रतिशात जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना  मिल गए थे और अरबों रुपए सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देश की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे।

देश में कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया है। यह विधेयक 1988 से लंबित था। इस संशोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है,यह कानून देश में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर कारगर तरीके से अंकुश लगाने का काम करेगा। मोदी सरकार ने फरवरी में 2015-16 का बजट प्रस्ताव पेश करते हुए बेनामी सौदों पर अंकुश की दृश्टि से नया व्यापक विधेयक पेश करने का प्रस्ताव संसद में रखा था। बेनामी सौदा निशेध अधिनियम मूल रूप से 1988 में बना था। लेकिन अंतर्निहित दोशों के कारण इसे लागू नहीं यिा जा सका था। इससे संबंधित नियम पिछले 27 साल के दौरान नहीं बनाए जा सके। नतीजतन यह अधिनियम धूल खाता रहा। जबकि इस दौरान जनता दल,भाजपा और कांग्रेस सभी को काम करने का अवसर मिलता रहा है। इससे पता चलता है कि हमारी सरकारें कालाधन पैदा न हो,इस पर अंकुश जगाने के नजरिए से कितनी लापरवाह रही हैं। हालांकि 2011 में भ्रश्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे द्वारा चलाई गई थी। इस मुहिम के मद्देनजर संप्रग सरकार इस विधेयक को संसद में लाई थी। किंतु इसे वित्त मंत्रालय  से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। समिति ने जून 2012 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन घपलों और घोटालों से घिरी डॉ मनमोहन सिंह सरकार अपने शेश रहे कार्यकाल में इस विधेयक को संसद में पेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। परिणामस्वरूप विधेयक की अवधि 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही खत्म हो गई। अलबत्ता अब मोदी सरकार ने इस विधेयक को नए सिरे से केंद्रीय मंत्रीमण्डल से पास कराकर,संसद के अगले सत्र में पारित कराने की इच्छा जताई है।

सबकुल मिलाकर मोदी सरकार यह जताने में सफल रही है कि वह कालेधन की वापिसी के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि इस सरकार ने शपथ-ग्राहण के बाद केंद्रीय-मंत्रीमडल की पहली बैठक में ही विशेश जांच दल के गठन का फैसला ले लिया था। हालांकि यह पहल सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई थी। लेकिन यही निर्देश न्यायालय संप्रग सरकार को भी देती रही थी,बावजूद वह एसअईटी के गठन को टालती रही थी। इसके बाद राजग सरकार ने 8 ऐसे धन-कुबेरों के नाम भी उजागर किए जिनका कालाधन विदेशी बैंकों में जाता है। कालाधन वापिसी की इन कोशिशों से सहमति जताते हुए,स्विट्जरलैंड ने भी भारत की इस लड़ाई में सहयोग करने का भरोसा जताया है। बीते हफ्ते भारत यात्रा पर आए स्विट्जरलैंड के आर्थिक मामलों के मंत्री जे एन श्नाइडार एम्मान ने दिल्ली में कहा है कि हमारी संसद शीघ्र ही उन कानूनों में संशोधन पर विचार करेगी,जिनमें स्विस बैंक खातों की जांच चुराई गई जानकारी के आधार पर की जा रही है।

ये जानकारियां स्विट्जरलैंड के यूबीए बैंक के सेवानिवृत् कर्मचारी ऐल्मर ने एक सीडी बनाकर जग जाहिर की थीं। इस सूची में 17 हजार अमेकिकियों और 2000 भारतीयों के नाम दर्ज हैं। अमेरिका तो इस सूची के आधार पर स्विस सरकार से 78 करोड़ डॉलर अपने देश का कालाधन वसूल करने में भी सफल हो गया है। ऐसी ही एक सूची 2008 में फ्रांस के लिश्टेंस्टीन बैंक के कर्मचारी हर्व फेल्सियानी ने भी बनाई थी। इस सीडी में भी भारतीय कालाधन के जमाखेरों के नाम हैं। ये दोनों सीडियां संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ही भारत सरकार के पास आ गई थीं। इन्हीं सीडियों के आधार पर सरकार कालाधन वसूलने की कार्रवाई को आगे बढ़ा रही है। इसलिए सीडी में दर्ज खातेधारियों के नाम सार्वजानिक करने की मांग भी सांसद में गूंजती रही है। लेकिन सरकार भारतीय उद्योग संगठन के दबाव में सूची से पर्दा नहीं उठा रही है। इस बावत संगठन का तर्क है कि इन खाताधारियों के नाम उजागर करने के बाद यदि उनकी आय के स्रोत वैध पाए गए तो उनके सम्मान को जो ठेस लगेगी,उसकी भरपाई कैसे होगी ? क्योंकि विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई अपराध नहीं है,बशर्ते रिर्जव ऑफ इंडिया के दिशा-निर्देशों का पालन किया हो ? रिर्जव बैंक आयकर नियमों का पालन करते हुए प्रत्येक खाताधारी को एक साल में सवा लाख डॉलर भेजने की छूट देता है। लेकिन जब बेनामी सौदा विधेयक कानूनी रूप ले लेगा तो बड़ी मात्रा में कालेधन के पैदा होने में अंकुश लगेगा। क्योंकि सबसे ज्यादा कालाधन जमीन-जायदाद के कारोबार से पैदा होता है,और इसी धंधे से जुड़े अधिकतम बेनामी सौदे होते हैं। बहरहाल इस बहाने जो समानांतर अर्थव्यस्था चल रही है,उसके इस कानून के भय के चलते टूटने की उम्मीद है।

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