चक्रव्यूह में फंसता अर्जुन का बेटा

—–विनय कुमार विनायक
तुम जलाओ विचार
दहन करो संपादक के पुतले
किन्तु मरेगी नहीं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
मालूम है रावण नहीं
राम के भी जलने लगे हैं पुतले
बड़ी भीड़ भी होगी तुम्हारे साथ
कि सदा-सदा से रावण के होते
सवा लाख नाती/सवा लाख पोते
कौरव सौ-सौ के सैशे में!
जानता हूं
नारायणी सेना भी है तुम्हारे साथ
किन्तु कूच कर गए खुदा तुम्हारे घर से
ईश्वर और खुदा को बांधकर
दो खूंटों में धर्मनिरपेक्षता
और तुष्टीकरण के बहाने
बन चुके हो तुम पूरी तरह इब्लीस के पुजारी
कि इब्लीस तुम्हारे साध्य भी/साधन भी
आराध्य भी/मोहरे भी
नारायणी सेना जब मांगी थी तुमने
जनता-जनार्दन से
अर्जुन को ज्ञात हो गई थी तुम्हारी मंशा
कि कठिन होगा समर सत्यमेव जयते का
देनी होगी बलि अभिमन्यु से
अनेक प्रतिभा सम्पन्न बेटों की
कि अब भी है तुम्हारे साथ
कुलाधिपति गुरु द्रोणाचार्य
कुलपति गुरु कृपाचार्य के हाथों
सौंपी है तुमने बहनोई जयद्रथ,
बहन दु:शल्ला,बेटा लक्ष्मण,
मित्र अश्वत्थामा जैसे नामों की
लंबी सिफारिशी फेहरिस्त
कि अधिकारी/व्याख्याता बनेगा नहीं
अर्जुन का बेटा!
मंडल-कमंडल में बंटना
स्वीकार नहीं जिसे
सामाजिक न्याय मिलेगा नहीं उसे
कि झा, सिंह, मंडल, दास
बनेगा नहीं अर्जुन का बेटा!
बंटी जाति की छद्म रक्तशुद्धता को
एकमेव करके रहेगा
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ!
जानता हूं तुम्हारे सामाजिक न्याय के
डपोरशंखी नारे से दिकभ्रमित हैं
ढेर सारे उपेक्षित कर्ण भी
कि तुम बांटते रहोगे अर्जुन के भाइयों को
कभी कुजात सुतपूत कहकर,
कभी अशर्फी लाल को अशरफी
अल्पसंख्यक पहचान बताकर!
हे लट्ठधर!
युग-युग से कर्ण को
पहले कुजात बताकर
बाद में राजपूत बनाने का
ख्वाब दिखाकर
थमाते रहे अंगदेश सा
सत्ता झुनझुना
या बांटकर सामाजिक न्याय का
कुर्सी पुरस्कार अपनाते रहे/लड़ाते रहे
भाइयों को भाइयों के खिलाफ
कि कुलाधिपति द्रोण है
उसकी प्रतिभा का हत्यारा
या उसके प्रतिद्वंदी
अर्जुन की प्रतिभा का कायल
या उसके रहनुमा के हाथ का
मात्र चाभी-खिलौना
मृत्यु पर्यंन्त कर्ण के लिए
यह रहस्य ही रह गया
कि ऊंट किस करवट बैठता
कुलाधिपति पक्षधर है किसका?
उस आर्जुनेय प्रतिभा का,
जिसका प्रतिभा सत्व
गुरु के चक्रव्यूह में फंस मरा
या उसका,जिसके एलान पर
अभिमन्युओं को
गुरु घेरे में घेरकर मारा गया!
ऐ लोकतंत्र के सर संघचालक!
मत उच्चार प्रतिभा को
जाति-धर्म के नाम पर
कि घातक हथियार बन जाएगी
ऐ सामाजिक न्याय के रहनुमा!
समाज जाति नहीं व्यक्ति से बनता
बार-बार व्यक्ति को जाति बताकर
संख्या बल दिखलाना
उसे राष्ट्र से अलगाना है
वोट के लिए चाहिए
तुम्हें देह की गिनती
भारत के बेटों को आत्मा से
भारतीय हो जाना है
तुम जलाओ विचार,
दहन करो संपादक के पुतले
उगाओ विदेशी कैक्टस!
अर्जुन के बेटों को आजाद,भगत,
असफाक,गांधी सा विचार उगाना है।
—विनय कुमार विनायक

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