छत्तीसगढ़ में रमनसिंह सरकार ने सब पढ़ेंगे, नई दुनिया गढ़ेंगे के तर्ज पर प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा देने के पर्याप्त इंतजाम किया है. हर बच्चा स्कूल जा सके, इसके लिए उनकी पहुंच के भीतर शाला भवनों की व्यवस्था की गई है तो उच्च शिक्षा के लिए अनेक नवीन योजनाओं की शुरूआत की गई है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पिछले सालों से छू लो आसमां और प्रयास स्कूलों के तहत शिक्षा के पूरे इंतजाम हैं जिसके कारण छत्तीसगढ़ के बच्चे कामयाबी की नई इबारत लिखने में जुट गए हैं. 16 साल पहले जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था तब और आज के हालात में जमीन आसमां का अंतर दिख रहा है. कल तक रेंगने वाला छत्तीसगढ़ आज दौड़ लगाकर सबको पीछे छोड़ता नजर आ रहा है. कामयाबी की यह किताब रोज अपने साथ एक नया पन्ना जोड़ लेता है. कामयाबी की इस किताब को पढऩे के लिए आज आपको पूरा वक्त देना होगा क्योंकि यह मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह की कोशिशों से छत्तीसगढ़ की सूरत बदल रही है.
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य में ‘सबके लिए शिक्षा’ का ध्यान रखते हुए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा एक किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक शाला, तीन किलोमीटर की दूरी पर उच्च प्राथमिक शाला, पांच किलेामीटर की दूरी पर हाईस्कूल और सात किलोमीटर की दूरी पर हायर सेकेण्डरी स्कूल खोलने की नीति निर्धारित कर लगभग आठ हजार नवीन विद्यालय प्रारंभ किया गया है। राज्य में वर्ष 2003-04 में 31 हजार 907 प्राथमिक तथा सात हजार 89 मिडिल स्कूल थे, जो अब बढक़र क्रमश: 33 हजार 997 और 16 हजार 291 हो गए हैं। वर्ष 2003-04 में एक हजार 176 हाई स्कूल तथा एक हजार 386 हायर सेकेण्डरी स्कूल थे, जो अब बढक़र क्रमश: दो हजार 605 और तीन हजार 726 हो गए हैं। राज्य के पहली से दसवीं तक के सभी बच्चों को मुफ्त पाठ्य पुस्तक का वितरण किया जा रहा है। वर्ष 2003-04 में सात लाख 27 हजार 751 पुस्तकों का वितरण किया गया था। यह संख्या वर्ष 2015-16 में दो करोड़ 91 लाख 75 हजार 802 है। राज्य में गत दो वर्षो से प्राथमिक तथा मिडिल स्कूलों के सभी बच्चों को दो जोड़ी गणवेश दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
सरकार के सरस्वती सायकल योजना का सकारात्मक परिणाम आया है। इस योजना के पूर्व हाई स्कूलों में बालकों की तुलना में बालिकाओं का प्रतिशत 65 रहता था, जो अब बढक़र लगभग 95 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया है। अब शालाओं से बाहर मात्र एक प्रतिशत से भी कम बच्चों को भी स्कूल लाने की कोशिश जारी है। नि:शुल्क तथा अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एक लाख 28 हजार 639 बच्चों को अद्यपर्यन्त प्रदेश के निजी विद्यालयों में प्रवेश दिलाया गया है। इनके शिक्षण शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिए 35 करोड़ रूपए व्यय किए जा रहे हैं।
राज्य के आदिवासी अंचलों में स्थित छोटे बसाहट में 10 बच्चों की उपलब्धता के आधार पर 47 विद्यालयों में डारमेटरी की व्यवस्था की गई है। वहां लगभग दो हजार 300 बच्चों को नि:शुल्क आवास तथा भोजन की व्यवस्था सहित गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान की जा रही है।
नक्सल प्रभावित जिलों के स्कूल भवन क्षतिग्रस्त अथवा बंद होने के फलस्वरूप अप्रवेशी और शाला त्यागी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़े रखने के लिए प्री-फेब्रिकेटेड स्ट्रक्चर की स्थापना सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत की गई है, जिसे वर्ष 2011-12 में आवासीय विद्यालय का दर्जा दिया गया। इन 60 विद्यालयों की क्षमता 30 हजार सीटर की है। इसी तरह अप्रवेशी तथा शाला त्यागी शहरी वंचित, गरीब, फुटपाटाथी, अनाथ, असहाय, नि:शक्त, पलायन प्रभावित ऐसे विशेष श्रेणी के बच्चे जिन्हें वास्तव में बिना आवासीय व्यवस्था कराये शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जाना संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़े जाने के लिए सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत रायपुर, दुर्ग तथा अंबिकापुर में एक सीटर के 10 आवासीय विद्यालय संचालित है। इसके अलावा शाला त्यागी तथा अप्रवेशी बच्चों का उम्र के अनुसार समुचित कक्षा में प्रवेश के साथ विशेष आवासीय तथा गैर आवासीय प्रशिक्षण की नि:शुल्क व्यवस्था की गई है।
प्रदेश में सबके लिए शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा एक जुलाई 2008 को छत्तीसगढ़ राज्य ओपन स्कूल का भी शुभारंभ किया गया। इससे शाला त्यागी बच्चों और लोगों के लिए आगे की शिक्षा का कार्य सुगम हुआ है। इसी तरह मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा योजना के तहत संचालित प्रयास आवासीय विद्यालयों में राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों के मेधावी बच्चों को ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षाओं में प्रवेश देकर उन्हें इन विद्यालयों में पी.एम.टी., पी.ई.टी. और जे.ई.ई. जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग भी दी जा रही है।
प्रदेश का पहला प्रयास आवासीय विद्यालय वर्ष 2010 में बालकों के लिए रायपुर के गुढिय़ारी में प्रारंभ किया गया। जहां वर्ष 2012 में बालिकाओं के लिए भी आवासीय विद्यालय की शुरूआत की गई। सभी प्रयास विद्यालयों में राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों के दसवीं कक्षा उत्तीर्ण प्रतिभावान बच्चों को प्रवेश दिया जा रहा है। इसके लिए प्रवेश परीक्षाओं का भी आयोजन कर मेरिट के आधार पर चयन सूची तैयार की जाती है। राज्य सरकार के इन प्रयास आवासीय विद्यालयों में वर्ष 2012 से 2016 तक बारहवीं बोर्ड की परीक्षा में 1793 बच्चे शामिल हुए। इनमें से 1566 विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में और 213 विद्यार्थी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए है। विगत चार वर्ष की इस अवधि में इन विद्यालयों के बच्चों ने विभिन्न प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं में भी शानदार सफलता का परचम लहराया है। प्रयास विद्यालय के प्राचार्य प्रणव बैनर्जी ने बताया कि वर्ष 2012 से 2015 तक 47 विद्यार्थियों ने एनआईटी अथवा समकक्ष कॉलेजों में और 340 विद्यार्थियों ने इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश लिए है। वर्ष 2015-16 में प्रयास आवासीय विद्यालय और आदिम जाति विकास विभाग की अन्य योजनाओं के तहत अखिल भारतीय स्तर की संयुक्त इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (जेईई) में सफल होकर 27 विद्यार्थियों ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में, 10 छात्र ट्रिपल आई टी में तथा 8 छात्र-छात्राएं एमबीबीएस में चयनित हुए हैं। मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा योजना में सरकार द्वारा प्रयास, आस्था, निष्ठा तथा सहयोग संस्थाओं का संचालन कर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग तथा नक्सल हिसंा प्रभावित बच्चों के भविष्य को संवारते हुए उनके सपनों को साकार किया जा रहा है।