कविता साहित्य कविता – चली जाऊँगी वापस March 28, 2012 / March 28, 2012 | 3 Comments on कविता – चली जाऊँगी वापस मोतीलाल/राउरकेला चली जाऊँगी वापस तुम्हारी देहरी से दूर तुम्हारी खुश्बू से दूर इन फसलोँ से दूर गाँव गली से दूर उन अनाम सी जगह मेँ और बसा लूँगी अपने लिए ठिकाना तिनके के रूप मेँ बहा लूँगी पसीना फीँच लूँगी अपनी देह को खून की कीमत मेँ अगोरना सोख लूँगी आँसूओँ को आँखोँ […] Read more » poem Poems कविता चली जाऊँगी वापस
शख्सियत समाज कुष्ठ रोगियों की सेवा में संघ के 50 वर्ष March 23, 2012 | 3 Comments on कुष्ठ रोगियों की सेवा में संघ के 50 वर्ष पंकज कुमार गलते हाथ-पैर, शरीर पर भिनभिनाती मक्खियां और ठूठ के समान दिखने वाले हाथों में कटोरा. कुष्ठ रोग की कल्पना मात्र से अच्छे-अच्छों का सारा शरीर कांप जानता है. समाज और परिवार द्वारा त्याग दिए जाने वाले ऐसे ही रोगियों की सेवा का बीड़ा 50 साल पहले उठाया था एक कुष्ठ रोगी ने जिसका […] Read more » leprocy RSS सदाशिवराव गोविन्दराव कात्रे
कला-संस्कृति अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत March 21, 2012 / March 21, 2012 | 7 Comments on अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत – विश्वजीत सिंह ‘अनंत’ अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखकसाइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब”हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य […] Read more » India vaidic culture अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत भारत
कहानी कहानी – शौक March 21, 2012 / March 21, 2012 शाम का वक्त था, सूरज अपनी दिन भर की मेहनत करके घर वापसी की ओर लोट रहा था। ठीक उसी तरह जैसे कोई दिहाडी मजदूर शाम होते ही अपने घर की राह पकडने की ओर आतुर रहता है। कोई 70-72 साल का एक बुजुर्ग अपनी एक टूटी सी साईकिल पर अपने भविष्य की धरोहर, एक […] Read more » stories Story कहानी कहानी - शौक
कविता कविता – आता हूँ प्रतिवर्ष March 20, 2012 | Leave a Comment विमलेश बंसल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मैं आता हूँ प्रतिवर्ष। जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥ भरता हूँ नव जीवन सबमें, विमल उमंग उत्कर्ष। जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥ 1)मैं वसंत का प्राण निराला। कर देता सबको मतवाला। मुझसे सबको हर्ष॥ जी हाँ मुझको कहते हैं नववर्ष॥ 2)नहीं ग्रीष्म में नहीं शीत में। […] Read more » poem Poems आता हूँ प्रतिवर्ष कविता
समाज उत्तराखंडी बनो नहीं तो एक दिन कहीं के नहीं रहोगे…….. March 20, 2012 / July 22, 2012 | Leave a Comment भार्गव चन्दोला 11 साल हो गए उत्तराखंड को बने हुये मगर आज भी हम उत्तराखंडी नहीं बन पाये…. आज हम कुमाउनी, गढ़वाली, मैदानी, जौनसारी, ब्राह्मण, ठाकुर, हरिजन, पंजाबी, जाट, सरदार, बनिया, मुस्लमान बन कर रह गए हैं जिस कारण लगातार आपसी भाईचारा धीरे-धीरे कम होता जा रहा है जो की हमारे उत्तराखंड को लाईलाज बीमारी […] Read more » Utrakhand उत्तराखंड
कविता साहित्य कविता – वह आया है March 18, 2012 / March 18, 2012 | Leave a Comment मोतीलाल मैँने उसे देखा है अभी-अभी इन्हीँ आँखोँ से वह आया है हमारे इस शहर मेँ और खड़ा है बाहर धुँध से भरे कोहरे मेँ वह आना चाहता है हमारे घरोँ मेँ और दो क्षण सुस्ताना चाहता है थकान से चूर उसकी देह अब नहीँ उठ पाती है और नहीँ ठहरती है आँखेँ किसी […] Read more » poem Poems कविता कविता - वह आया है
आलोचना आईपीएस की लाश पर हवन March 16, 2012 / March 16, 2012 | Leave a Comment डॉ. हिमांशु द्विवेदी अब क्या लाशों पर सियासत छत्तीसगढ़ का भी संस्कार बनेगी। आजाद भारत मेंं शालीन राजनीति की परम्परा का झंडाबरदार रहा यह प्रांत गत तीन दिनों से जिस प्रकार के घटनाक्रम से गुजर रहा है, वह भविष्य को ले कर गंभीर सवाल खड़ा करता है। देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा से संबद्ध अधिकारी […] Read more » IPS Officer Rahul Sharma आईपीएस
राजनीति भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश का सबक March 13, 2012 / March 13, 2012 | 5 Comments on भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश का सबक राष्ट्रीय राजनीति के लिए सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव उत्तरप्रदेश का ही होता है, इसमे संभवतः किसी को कोई संदेह नहीं होगा. और यह चुनाव भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं रहे. यहाँ यह समझना आवश्यक है कि भाजपा जब देश में कही नहीं थी तब भी उत्तरप्रदेश में थी. आज जबकि भाजपा 8 […] Read more » Bhajpa UP उत्तरप्रदेश भाजपा
लेख भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा ही संसार का कल्याण संभव March 12, 2012 | 1 Comment on भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा ही संसार का कल्याण संभव सुरेश गोयल धूप वाला भारतवर्ष को ऋषि-मुनियों की भूमि व देव भूमि कहा जाता है जिसके विशेष कारण है कि इस देव भूमि में लाखों हजारौं वर्षों में एक विशेष संस्कृति फलीफूली है और बढ़ी है। इसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एक सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। इन्हीं विशेष संस्कृति को हिन्दुत्व कहा जाता […] Read more » Indian Culture indian culture value भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों संसार का कल्याण
लेख यारो जग बौराया… March 11, 2012 / March 13, 2012 | Leave a Comment संजय बिन्नाणी साथियो! आप मानें या न मानें, समझें या न समझें, लेकिन यह सच है कि इन दिनों भारत और भारतीय मन-मिजाज वैसे ही बौराया हुआ है, जैसे आम का पेड़। कारण है, ऋतुवसन्त में फगुनई हवा; जिसके असर के चलते मन- मधुकर हुआ, मधु-पान की लालसा लिए डोलता फिर रहा है। रसपान की […] Read more » Holi vasant season ऋतुवसन्त फगुनई हवा
पर्व - त्यौहार बहकें बहकी होली में … March 7, 2012 | Leave a Comment संजय बिन्नाणी रस, रंग, स्वाद, गंध और स्पर्श, पाँचों ही तत्वों की प्रमुखता हमारे जीवन में है। शरीर, स्वास्थ्य और आहार का आधार यही हैं। होली हमारी संस्कृति का ऐसा एकमात्र त्योहार है, जिसमें इन पाँचों तत्वों का ऐसा समावेश है कि किसी एक को भी बाद दिया तो होली का रंग फीका पड़ सकता […] Read more » Holi Holi festival बहकें बहकी होली में होली