शाम का वक्त था, सूरज अपनी दिन भर की मेहनत करके घर वापसी की ओर लोट रहा था। ठीक उसी तरह जैसे कोई दिहाडी मजदूर शाम होते ही अपने घर की राह पकडने की ओर आतुर रहता है। कोई 70-72 साल का एक बुजुर्ग अपनी एक टूटी सी साईकिल पर अपने भविष्य की धरोहर, एक 8-9 साल के बालक को लेकर गांव की ओर लौट रहा था। साथ मे 5-7 साईकिल सवारों का एक झुंड सा ओर भी था। उन्हे देखकर आसानी से ये अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये किसी मिल या फैक्ट्री मे काम करते होगें। काम की थकान को अपने हंसी मजाक के सवाल जबाब के साथ उतारने की कोशिश करते हुए चेहरो पर बडी निश्चितंता झलक रही थी। आज शायद तनख्वाह का दिन था तभी शायद वो इतने खुश नजर आ रहे थे। मेरे करीब से गुजरते हुए एक साईकिल सवार ने दूसरे से मजाक करते हुए सिनेमा दिखाने को कहा कि अब तो तनख्वाह भी मिल गयी है अब तो फिल्म दिखाई दो। तब मैने ये अंदाजा लगाया कि शायद आज इन सबको तनख्वाह मिली है। इस भागती दौडती हंसी मजाक वाली भीड मे मेरा ध्यान उस बुजुर्ग की ओर बार बार जा रहा था जिसके चेहरे पर ना तो हंसी का भाव था ओर ना ही कोई खास निश्चिंतता। वह उस बालक को जोकि उसे बाबा कहकर बुला रहा था उससे कुछ ज्ञान ध्यान की बातें समझाते हुए चल रहा था। मेरी रफ्तार सामान्य से थोडी ज्यादा थी ओर उसकी थोडी कम। पर जाने क्यूं पता नही किस जिज्ञासा से मैने भी अपनी रफ्तार उनके बराबर कर ली ओर पूरा ध्यान उनकी बातों पर लगाना शुरु कर दिया। वह बुजुर्ग अपनी उम्र के अनुभवों को उस 8-9 साल के बालक को बांटने मे इतना मशगूल था कि एक बारगी को तो लगा कि शायद मन से वो भी इस बच्चे की तरह ही है।
मुझे ऐसा देखकर बडी ही खुशी हो रही थी । कितना वातसल्य उमड रहा था उनके बीच मे, मै तो यही सोच कर मंत्रमुग्ध सा हो गया था । मुझे याद है बचपन मे मेरे दादा जी जब खेतों पर घुमाने ले जाया करते थे तब वो भी ऐसी मजेदार बाते किया करते थे। वह बालक बार बार कोई ना कोई सवाल पूछता ओर वो बुजुर्ग उसके उन प्यारें सवालों का उसी अंदाज मे जबाब भी देते रहते। कितनी प्रसन्नता ओर कितना सुकून उनकी आंखो मे दिखता था। यकायक ही उस बालक ने पूछा-दादाजी आप मुझे कितना प्यार करते हो ओर इस सवाल के साथ ही उसने अपनी गर्दन उस बुजुर्ग की ओर घुमा दी जो पहले ही उसको दुलार करने के चक्कर मे थोडा झुके हुये थे। उस बूढे आदमी ने उस बच्चे की आंखो मे झांकते हुए जबाब दिया- सबसे ज्यादा। उसके होंठो पर हल्की सी मुस्कराहट आयी ओर उस बच्चे के गाल चूमते हुए फिर कहा- सबसे ज्यादा। बच्चा खुशी से चहक गया उसकी आंखे चमकने लगी ओर प्यार के उस चुम्बन ने उसके आनन्द को ओर बढा दिया। उसे देखकर लग रहा था कि वो कितना खुश है ओर उससे भी ज्यादा खुश वह बुजुर्ग था जो उस बच्चे के साथ होकर बाकी दीन दुनिया को ना जाने कहां छोड कर आ रहा था। गांव आने को ही था नहर अब दिखाई देने लगी थी। नहर से एक डेढ कोस का रास्ता ओर मुश्किल से होगां बूढे आदमी ने साईकिल रोकी ओर अपने कुर्ते की जेब में से कुछ खाने की चीजें उस बच्चे को दी। बच्चे ने बडी तत्परता से उन्हें लिया ओर कहा दादा जी आप जब खाने की चीजें देते हो तो मां डाटती है ओर कहती है खाने के लिए ही दादाजी के साथ आते हो वरना स्कूल तो तुम्हारा कब का छूट जाता है। बूढे आदमी ने भौहें सिकोडते हुए नाराजगी भरी लहजे मे कहा ऐसा क्या। फिर प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा तुम अपनी मां से कहना दादा जी मुझे बहुत प्यार करते है। इसिलिए मै उनके साथ आता हूं। बच्चे ने हामी भरी ओर उठ कर चलने के लिए साईकिल की ओर बढा । बूढे आदमी ने बच्चे को फिर दुलार करते हुए साइकिल पर बैठाया ओर साइकिल गांव की ओर दौडा दी। फिर से वही बातो का सिलसिला ओर वह बच्चा कभी उस बुजुर्ग की बात सुनता तो कभी उतना ही ध्यान अपने खानें की चीजों पर देता। अचानक ही सामने की ओर से एक अनियंत्रित कार जिसका चालक अपना नियंत्रण खो चुका था उस साईकिल सवार से टकरा गया। उस बुजुर्ग ने अपने कौशल से बचानें की बहुत कोशिश की पर फिर भी कार की लपेट मे आ गया ओर धडाम से सडक के एक छोर पर जा गिरा। वह बच्चा भी उसकी पहुंच से दूर एक किनारे पर गिर पडा। चीख-चिल्लाहट की आवाज पर गाडी रूकी ओर गाडी मे से एक नौजवान अपनी अमीरी की बू मे लिपटा हुआ उस बूढे आदमी को दुत्कारता हुआ बोला, क्यों बे देखकर नही चला जाता मरने का ज्यादा ही शौक है। दुनिया से मुक्ति पाने को मेरी ही गाडी मिली है। आस पास के ओर आने जाने वाले मुसाफिर रूकना शुरू हो जाते है ओर उस गाडी वाले के पास बारी -बारी से पहुंचकर कुशल क्षेम पूछते है। उधर वह बूढा आदमी किसी तरह उठकर अपने उस बालक को जो लगभग अचेतन की अवस्था मे था उसे गोद मे लेता है और पुचकार के साथ उसे सामान्य करने की कोशिशमे रहता है। भीड मे से कोई आदमी इसस