गजल साहित्य गज़ल ; पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई – सत्येंद्र गुप्ता February 7, 2012 / February 7, 2012 | Leave a Comment पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई। मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई। एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई। Read more » famous gazals gazal gazal by satyendra gupta Gazals गज़ल गज़लें सत्येन्द्र गुप्ता की गज़लें सर्वश्रेष्ठ गज़लें
गजल साहित्य गज़ल ; झुकी तो हया हो गई – सत्येंद्र गुप्ता February 7, 2012 / February 7, 2012 | Leave a Comment झुकी तो हया हो गई झुकी तो हया हो गई उठी तो दुआ हो गई। बढ़ी इतनी दीवानगी मुहब्बत सजा हो गई। तुम्हारे बिना जिंदगी बड़ी बेमज़ा हो गई। अजाब मुस्कराहट तेरी सरापा कज़ा हो गई। हुई तुमसे क्या दोस्ती ये दुनिया खफा हो गई। Read more » famous gazals gazal gazal by satyendra gupta Gazals गज़ल गज़लें सत्येन्द्र गुप्ता की गज़लें सर्वश्रेष्ठ गज़लें
गजल साहित्य गज़ल ; मैखाने में जरा कभी आकर तो देखिये – सत्येंद्र गुप्ता February 7, 2012 / February 7, 2012 | Leave a Comment मैखाने में जरा कभी आकर तो देखिये मैख़ाने में जरा कभी आकर तो देखिये एक बार ज़ाम लब से लगाकर तो देखिये। दुनिया को तुमने अपना बनाया तो है मगर हमको भी कभी अपना बनाकर तो देखिये। तुम हाले दिल पे मेरे हंसोगे न फिर कभी पहले किसी से दिल को लगाकर तो देखिये। जिसकी […] Read more » famous gazals gazal gazal by satyendra gupta Gazals गज़ल गज़लें सत्येन्द्र गुप्ता की गज़लें सर्वश्रेष्ठ गज़लें
गजल साहित्य गज़ल ; हर अदा में कमाल था – सत्येंद्र गुप्ता February 7, 2012 / February 7, 2012 | Leave a Comment हर अदा में कमाल था कोई हर अदा में कमाल था कोई आप अपनी मिसाल था कोई। उसके आशिक थे मिस्ले-परवाना हुस्न से मालामाल था कोई। उससे छुटकारा मिल गया हमको एक जाने बवाल था कोई। वो मिला है न मिल सकेगा कभी एक दिल में ख्याल था कोई। बेचकर खून रोटियाँ लाया भूख से […] Read more » famous gazals gazal gazal by satyendra gupta Gazals गज़ल गज़लें सत्येन्द्र गुप्ता की गज़लें सर्वश्रेष्ठ गज़लें
गजल साहित्य गज़ल ; हवा से न कहना – सत्येंद्र गुप्ता January 29, 2012 / January 29, 2012 | 2 Comments on गज़ल ; हवा से न कहना – सत्येंद्र गुप्ता हवा से न कहना, वो सब को बता देगी तेरा हर ज़ख्म दुनिया को दिखा देगी। तू डूबा हुआ होगा अपने गम में कहीं वो जमाने भर में बहुत शोर मचा देगी। चाहना उसे दिल से एक फासला रखकर शुहरत बिगड़ गई तो हस्ती मिटा देगी। तू दरिया प्यार का है, वो चाँद सूरत है […] Read more » gazal गज़ल हवा से न कहना
गजल साहित्य गज़ल ; जंग लगे हथियारों में – सत्येंद्र गुप्ता January 28, 2012 / January 28, 2012 | Leave a Comment जंग लगे हथियारों में अब नई धार लगानी है नये अंदाज़ में वन्दे-मातरम की आवाज़ सुनानी है। नहीं खेलने देंगे किसी को हम अपने सम्मान से भ्रष्टाचार की होली भी तो हमको ही जलानी है। सशक्त और समर्द्ध राष्ट्र अपना हमें बनाना है इसके लिए हम को कोई नई चाल अपनानी है। घोटालों का ताना […] Read more » gazal Gazalen गज़ल
गजल गजल-सत्येन्द्र गुप्ता December 28, 2011 / December 28, 2011 | 2 Comments on गजल-सत्येन्द्र गुप्ता मेले कीमुलाक़ात नहीं होती जल्दी में कभी दिल से कोई बात नहीं होती। वो जो हो जाती है जेठ के महीने में बरसात वो मौसमे -बरसात नहीं होती। चुराते दिल को तो होती बात कुछ और नज़रें चुराना यार कोई बात नहीं होती। डर लगने लगता है मुझे खुद से उस घडी पहरों जब उन […] Read more » gazal Satyendra Gupta गजल-सत्येन्द्र गुप्ता
गजल गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं December 15, 2011 / December 15, 2011 | 1 Comment on गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं। कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं। हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं। बात का खुलासा होता भी तो कैसे सब […] Read more » gazal Satyendra Gupta गजल सत्येंद्र गुप्ता
गजल गली गली मैख़ाने हो गये November 29, 2011 / December 4, 2011 | 1 Comment on गली गली मैख़ाने हो गये गली गली मैख़ाने हो गये कितने लोग दीवाने हो गये। महक गई न दूध की मूंह से बच्चे जल्दी सयाने हो गये। हम प्याला हो गये वो जबसे रिश्ते सभी बेगाने हो गये। जाम से जाम टकराने के हर पल नये बहाने हो गये। हर ख़ुशी ग़म के मौके पर छलकते अब पैमाने हो गये। […] Read more » Gazals
गजल पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी October 1, 2011 / October 1, 2011 | Leave a Comment पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी फिर एक मुश्किल और बढ़ा दी। पहले ही मसअले क्या कम थे उन्होंने एक नई कहानी सुना दी। फूल कहीं थे सेज कहीं बिछी थी मिलन की कैसी यह रात सजा दी। क्या खूब है जमाने का दस्तूर भी जितना क़द बढ़ा बातें उतनी बढ़ा दी। चीखते फिर […] Read more »
गजल दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे August 6, 2011 / January 4, 2012 | 1 Comment on दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे। बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे। तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे। सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे। दिल […] Read more »
गजल हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं July 27, 2011 / December 8, 2011 | Leave a Comment हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं। आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं। सावन का महीना है मौका तीज का पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं। समां क्या होगा जब आकर कहोगे गोरी अब तो […] Read more » Mehandi हाथों में रची मेहँदी