राजनीति ढहता किला परेशान गांधी परिवार June 2, 2015 | 1 Comment on ढहता किला परेशान गांधी परिवार -सत्यव्रत त्रिपाठी- भारतीय जनमानस में एक कहावत सदियों से कही जाती है, जो गरजते हैं वो बरसते नहीं ! अब अगर हम इसे भारतीय राजनीती पर लागू करें तो अनेको उदाहरण हैं । ताजा मामला अमेठी का है । बीच के कुछ कालखंडों को छोड़ दें ,तो आजादी के बाद कांग्रेस या गाँधी परिवार ने जिस तरह पुरे देश […] Read more » Featured गांधी परिवार ढहता किला परेशान गांधी परिवार राहुल गांधी सोनिया गांधी
राजनीति अन्त्योदय को साकार करती मोदी सरकार May 19, 2015 | 2 Comments on अन्त्योदय को साकार करती मोदी सरकार -सत्यव्रत त्रिपाठी- देश की जनता पूर्ववर्ती कांग्रेस के एक दशक के भ्रष्टाचार एवं महंगाई से परेशान होकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा तथा इसकी सहयोगी पार्टियों को ऐतिहासिक समर्थन दिया। नरेंद्र मोदी की सरकार को विरासत में यूपीए सरकार द्वारा कमजोर अर्थव्यवस्था मिली थी। पूर्व आर्थिक सलाहकार के मुताबिक यूपीए सरकार के शासनकाल के […] Read more » Featured अन्त्योदय को साकार करती मोदी सरकार एनडीए सरकार नरेंद्र मोदी मोदी सरकार
जरूर पढ़ें लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता May 14, 2015 / May 14, 2015 | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- गतिशील लोकतंत्र के लिए मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। लोकतांत्रिक मशीनरी को ठीक से चलाने के लिए मतदाताओं की सहभागिता तेल की तरह काम करती है। इसके अलावा मतदातओं की बढ़ी हुई सहभागिता विविध जगहों के लोगों को मुख्यधारा में लाकर सामाजिकरूप से एकीकृत करती है। यह एकीकरण उम्र उदाहरण के तौर पर युवाओं का समाज से एकीकरण लिंग, श्रेणी, क्षेत्र और कई अन्य उप समूहों के बंधनों को तोड़ देता है। इसलिए चुनाव सहभागिता सामाजिक समावेश सुनिश्चित करती है। साथ ही ऐसी नीतियों की ओर उन्मुख करतीहै जो समाज के विभिन्न खंडों और विविध हितों का ध्यान रखती हैं। भारत के संदर्भ में यह अभिकथन इस मायने में ज्यादा महत्व रखता है जहां राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों की तरफ से मतदाताओं को जानबूझकर हिस्सों में बांटना एक आम रणनीति है। कई बारपार्टी और उसके प्रत्याशी अपने वोट बैंक का उल्लेख करते हैं। ये वोट बैंक प्रत्याशियों की तरफ से जाति, धर्म और क्षेत्र की छोटी संकुचित सोच के आधार पर बनाए जाते हैं। वर्तमान की एफपीटीपी व्यवस्था में (झूठ और धोखे के कारण जो कि भारत में व्याप्त हैं) अगर कोईप्रत्याशी अपने क्षेत्र में किसी बेहद छोटे और अमहत्वपूर्ण समूह को अपने पक्ष में कर लेता है तो सीट हासिल करना आसान होता है। इसीलिए प्रत्याशी या राजनीतिक दल एक छोटा मतदाता वर्ग बनाने की रणनीति पर केंद्रित करते हैं या संकीर्ण सोच के आधार पर विशेष वोट बैंकपर निर्भर रहते हैं। यह कोशिश हमारे देश के लोकतंत्र को बर्बाद करने वाली है क्योंकि यह राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को गलत तरीके से बदल देती है। उनका ध्यान बिंदु सभी के विकास के लिए नीतियां बनाने और इसे लागू कराने की जरूरत से बदल जाता है। उपचार केतौर पर वह लोग जो किसी विशेष वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं और अगर उनकी भागीदारी बढ़ाई जाए तो अलग-अलग राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के लिए ये लोग महत्वपूर्ण होंगे और वे संकीर्ण सोच को व्यापक करने को मजबूर होंगे। यह स्पष्ट है कि कई जनतंत्रों में मतदाताओं की सहभागिता लगातार गिरावट की ओर है। कई देश इस गिरावट को रोकने के लिए नए रास्ते निकाल रही हैं। इन सभी प्रयासों का मुख्य उद्देश्य मतदान न करने की प्रवृत्ति कम करना है। यह कई तरीकों जैसे पंजीकरण करने कीप्रक्रिया को कम कष्टकर और कम महंगा बनाने, मतदाताओं का श्रम घटाने जिससे सहभागिता घटती है, चुनावों की बारंबारता और जटिलता घटाने, जागरूकता अभियान चलाकर मतदान को आदत और सामाजिक नियम बनाने से किया जा रहा है। भारत में चुनाव सुधारों के क्षेत्र मेंसक्रिय लोगों ने कई सुझाव दिए हैं। उदाहरण के तौर पर चुनाव सुधार के क्षेत्र के चमकते तारे प्रोफेसर सुभाष कश्यप ने मतदान को संवैधानिक तौर पर हर नागरिक को मौलिक कर्तव्य बनाने का सुझाव दिया है। इसे मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने केलिए प्रोत्साहनों और दंडात्मक कार्रवाई की एक श्रृंखला का भी सुझाव दिया है। उनके अनुसार, हर मतदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पास मतदान का प्रमाणपत्र हो। यह प्रमाणपत्र अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों जैसे गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड आदि के लिएमुख्य प्रपत्र के तौर पर काम करेगा। प्रोफेसर कश्यत खास तौर पर मतदान सहभागिता में शहरी आबादी के घटते रुझान से चिंतित हैं। इसके लिए वह सुझाव देते हैं कि पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ मतदान प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की दशा में ही जारी किए जाने चाहिए। हालांकि वक्त की जरूरत परंपरागत तरीकों के साथ ही तकनीक में हुई प्रगति का निर्वाचन प्रक्रिया में प्रयोग है। इससे मतदान प्रक्रिया में समय और लागत दोनों घटेंगे। ऐसा ही एक विकल्प ई-मतदान है जिसका कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है। यह विकल्प प्रयोग करने वालेकई देशों में मतदाताओं की सहभागिता और आम नागरिकों के उत्साह में काफी अच्छे नतीजे आए हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है, हम भी मतदान सहभागिता में गिरावट के चिंताजनक मुद्दे से लड़ रहे हैं। यद्यपि भारत के चुनाव आयोग ने कई सालों में इस संबंध में प्रशंसनीयऔर गंभीर कदम उठाए हैं लेकिन परिणाम संतुष्टिजनक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, शहरी उच्च मध्य वर्ग नागरिक लगातार राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति उदासनीता दिखा रहे हैं। उनकी सहभागिता भी चिंता का एक विषय है। इसलिए चुनाव क्षेत्र में नए आविष्कारों की तत्काल जरूरत हैजिससे आबादी के इस हिस्से में वोट न डालने की आदत को बड़े पैमाने पर घटाया जा सके। गुजरात के पालिका चुनावों में कुछ क्षेत्रों में ई-मतदान का सहारा लेकर इस संबंध में राह दिखाई गई है। यह मॉडल विशेष तौर पर उच्च मध्यम वर्ग को लक्षित करने में उपयुक्त हो सकता है ताकि इनकी वोट न डालने की आदत खत्म की जा सके और इनको चुनावों में बड़ेपैमाने पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ई-मतदान की उपयुक्तता को तलाशने और अन्य राज्यों में इसे लागू करने या न करने पर गंभीर शोध किए जाने चाहिए। इसे शुरू करने के लिए हम सभी राज्यों के स्थानीय निकाय के चुनावों में इसकी शुरुआत कर सकतेहैं। अगर परिणाम सकारात्मक आएं तो धीरे-धीरे हर तरह के चुनावों में हम इस व्यवस्था का प्रयोग करना चाहिए। काफी जनसंख्या होने के कारण भारत में चुनाव कराना एक बड़ी करसत है। कई बार चुनाव प्रक्रिया बेहद लंबी हो जाती है। कई अवसरों पर यह आम आदमी की कल्पना से भी ज्यादा जटिल हो जाती है। ई-मतदान की अवधारणा पूरी प्रक्रिया में जटिलताओं को खत्म करेगी औरज्यादा मतदाताओं की सहभागिता सुनिश्चित करेगी। Read more » Featured भारत की राजनीति लोकतंत्र लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता
राजनीति छुट्टियों के बहाने वोट बैंक में निवेश May 9, 2015 / May 9, 2015 | 1 Comment on छुट्टियों के बहाने वोट बैंक में निवेश -सत्यव्रत त्रिपाठी– एक तरफ जहां केंद्र में मोदी सरकार विभिन्न दफ्तरों में सरकारी कामकाज के समय को अधिक से अधिक बढ़ाने की दिशा प्रयास कर रही है, वहीं हमारे राज्यों में धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर सरकारी छुट्टियों की संख्या दिनोदिन बढ़ाई जा रही है। यह एक राजनैतिक हथियार बनता जा रहा है […] Read more » Featured छुट्टियों के बहाने वोट बैंक में निवेश राजनीति वोट बैंक
आर्थिकी आंकड़ों और प्रयोगों ने किया भारतीय कृषि का सत्यानाश May 8, 2015 / May 8, 2015 | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- भारत मेंं ऋग्वैदिक काल से ही कृषि पारिवारिक उद्योग रहा है। लोगों को कृषि संबंधी जो अनुभव होते रहे हैं, उन्हें वे अपने बच्चों को बताते रहे हैं और उनके अनुभव पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित होते रहे। उन अनुभवों ने कालांतर मेंं लोकोक्तियों और कहावतों का रूप धारण कर लिया जो विविध भाषा-भाषियों […] Read more » Featured आंकड़ों और प्रयोगों ने किया भारतीय कृषि का सत्यानाश कृषि भारतीय कृषि भूमि
टॉप स्टोरी विविधा नौकरशाही को लोकशाही में बदलने की चुनौती April 29, 2015 | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसलटेंसी की ताजा रिपोर्ट में भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस, ये तीन देश एशिया के सबसे भ्रष्ट और निकृष्ट नौकरशाही वाले देश घोषित किए गए हैं। कहा गया है कि इन देशों की नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) असक्षम एवं लालफीताशाही से बंधी हुई है। वहीं सिंगापुर तथा हांगकांग की नौकरशाही को सबसे […] Read more » Featured नौकरशाही नौकरशाही को लोकशाही में बदलने की चुनौती लोकशाही
आर्थिकी जन-जागरण वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): टैक्स सुधारों के माध्यम से विकास का एक इंजन April 28, 2015 / April 28, 2015 | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- भारत में सबसे बडे कराधान सुधारों में से एक – वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) – सभी राज्य अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत और समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए तैयार है। जीएसटी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए एक एकल, एकीकृत भारतीय बाजार बनाएगा। जीएसटी 2016/01/04 से लागू किया जाना निर्धारित है। केंद्र […] Read more » Featured जीएसटी टैक्स सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): टैक्स सुधारों के माध्यम से विकास का एक इंजन
राजनीति राजनैतिक चंदा : भ्रष्टाचार का लाइसेंस April 21, 2015 / April 21, 2015 | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी विकासशील प्रजातंत्र में सशक्त राजनीतिक दलों को प्रतियोगितापूर्ण जनतांत्रिक राजनीति का माहौल बनाना जरूरी होता है। पार्टी को इसमें टिके रहने, मुकाबला करने और जनतांत्रिक गतिविधियों से जुड़े रहने और चुनाव प्रचारों के लिए धन की जरूरत होती है।इन दिनों राजनीतिक फंड और पार्टी के लिए दान लेना समस्या बन गई है। पार्टियों […] Read more » Featured चुनाव प्रचार भ्रष्टाचार राजनीतिक दल राजनैतिक चंदा : भ्रष्टाचार का लाइसेंस
धर्म-अध्यात्म भोले बाबा के त्रिशूल की महिमा March 2, 2015 / March 2, 2015 | Leave a Comment आप देश के किसी हिस्से में जाइए। छोटे-छोटे मंदिर हों, गुफा या कंदरा। भोले बाबा का त्रिशूल आपको दिख ही जाएगा। इसकी पूजा-अर्चना भी होती है। दरअसल, त्रिशूल त्रिदेवों में एक, सृष्टि के संहारक महादेव शंकर का अस्त्र है। इसे धारण करने से ही शिव का शूलपाणि भी कहा जाता है। वैसे, त्रिशूल से मतलब […] Read more » त्रिशूल की महिमा
पर्व - त्यौहार सवा मॉस बृज की छटा… चारों ओर मचे हुडदंग March 1, 2015 | Leave a Comment बसंत की बेला आती है, आम के बौरों के शाखों पर मुस्काने के साथ। पेड़ सूखे पत्ते उतार देता है। नए और स्निग्ध पत्तों को जगह देने के लिए। सर्द हवाएं सुगंधित और मखमली झोंको में बदल जाती हैं। लेकिन दीन-दुनिया से अलग ब्रज की अलग परिपाटी है। बसंत आते ही ब्रज की आबोहवा में […] Read more » बृज की छटा
जन-जागरण टॉप स्टोरी प्राथमिक सेवाओं को आधुनिक बनाने वाला रेल बजट February 27, 2015 | 2 Comments on प्राथमिक सेवाओं को आधुनिक बनाने वाला रेल बजट सत्यव्रत त्रिपाठी रेल को देश के विकास की रीढ़ कहा जाता है। रेलवे लगभग 14 लाख कर्मचारियों के साथ दुनिया में सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला विभाग है। यह एकमात्र ऐसा व्यवसाईक संस्थान है जिसके पास ना सिर्फ अपने माल की बिक्री( रेल टिकेट एवं माल ढूलाई ) समय से पहले होती है बल्कि 30 […] Read more » प्राथमिक सेवाओं को आधुनिक बनाने वाला रेल बजट
आर्थिकी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): टैक्स सुधारों के माध्यम से विकास का एक इंजन February 23, 2015 / February 23, 2015 | 1 Comment on वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): टैक्स सुधारों के माध्यम से विकास का एक इंजन सत्यव्रत त्रिपाठी भारत में सबसे बडे कराधान सुधारों में से एक – वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) – सभी राज्य अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत और समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिए तैयार है। जीएसटी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए एक एकल, एकीकृत भारतीय बाजार बनाएगा। जीएसटी 2016/01/04 से लागू किया जाना निर्धारित है। केंद्र […] Read more » Goods and Sales tax gst जीएसटी