प्रमोद भार्गव

प्रमोद भार्गव

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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।

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लेखक - प्रमोद भार्गव - के पोस्ट :

राजनीति

ईमानदारी और पारदर्शिता की कसौटी पर भाजपा

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प्रधानमंत्री को इस लेखे-जोखे का दायरा थोड़ा बड़ा रखना चाहिए था। घर में जमा जो कालाधन होेता है, उसे नेता हो या अधिकारी अपने बीबी-बच्चों के खातों में भी जमा रखते हैं। इस नजरिए से नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे सांसद और विधायकों के साथ-साथ, उन पर आश्रित पत्नी और बच्चों के खातों की जानकारी का खुलासा करने का भी आदेश देते ? अच्छा यह भी होता है कि प्रधानमंत्री यह आग्रह देश के सभी दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से करते ? क्योंकि अवसर और परिस्थितियां व्यक्ति को साधु से शैतान बनाने में देर नहीं करतीं ? संसद में सांसदों से सवाल पूछने के बदले में नोट लेते एक स्टिंग आॅपरेशन में जो सांसद दिखाए गए थे, वे सभी दलों के थे।

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विधि-कानून विविधा

न्यायपालिका और सरकार में टकराव उचित नहीं

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प्रमोद भार्गव केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच एक बार फिर जजों की नियुक्तियों को लेकर टकराव सतह पर आया है। इस बार सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीष टीएस ठाकुर ने न्यायालयीन ट्रिब्यूनलों की खस्ताहाल स्थिति को भी उजागार किया है। अखिल भारतीय केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट के इसी कार्यक्रम में उपस्थित विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद […]

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विविधा

शिकंजे में आतंकवाद का उपदेशक : जाकिर नाइक

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इस्लाम के अलावा जाकिर दुनिया की हरेक उपासना पद्धति का विरोधी है। वह भगवान गणेश के सिर पर हाथी के सिर के प्रत्यारोपण विधि का उपहास उड़ाता है। अन्य हिंदु देवी-देवताओं के खिलाफ भी उसकी टिप्पणियां बेहद अपत्तिजनक है। मूर्ति-पूजा का भी मजाक उड़ाता है। वह ‘मैरी क्रिसमस‘ कहने के भी विरुद्ध है। वह दुनिया के मुसलमानों से अपील करता है कि उन्हें अल्लाह के अलावा अन्य किसी से मदद नहीं मांगनी चाहिए। पैगंबर से भी नहीं। इस विभाजनकारी विचार के चलते ही, सुन्नियों के सूफी, शिया और अमिदिया समुदायों के प्रति नफरत गहराई है।

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राजनीति

अखाड़ा न बने संसद

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इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने कालाधन, भ्रश्टाचार एवं आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए हजार-पांच सौ के नोट बंद करके जो निर्णायक पहल की है, वह स्वागत योग्य है। लेकिन नेक फैसले पर अमल की जो तमाम मुश्किलें पैदा हो रही हैं, उनका प्रबंध नोटबंदी लागू करने से पहले कर लिया गया होता तो शायद न तो देश में इतनी छुट्टे व नए नोटों के लिए मारी-मारी हो रही होती और न ही विपक्ष को जनता से सीधा जुड़ा इतना बड़ा मुद्दा मिला होता। इसलिए इस मुद्दे पर हंगामा खड़ा होना कोई हैरानी की बात नहीं है। फिर हमारे सांसदों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे सांसदों की है, जो खुद नोटबंदी से आफत अनुभव कर रहे होंगे ? यह नोटबंदी ठीक उस वक्त की गई है, जब उत्तरप्रदेश व पंजाब समेत पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। ऐसे में इस नोटबंदी ने संभावित प्रत्याशि और दल-प्रमुखों की नींद हराम कर दी है।

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