व्यंग्य व्यंग्य बाण : भाषण की दुकान December 4, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार अंग्रेजी की एक कहावत के अनुसार खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह कहावत संभवतः बच्चों और युवाओं के लिए बनाई गयी होगी; पर शर्मा जी ने जब से अवकाश लिया है, तब से यह उन पर भी फिट बैठ रही है। उनके इस खालीपन से सबसे अधिक परेशान शर्मानी मैडम हैं। […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : पुस्तक का गर्भकाल December 4, 2012 | 1 Comment on व्यंग्य बाण : पुस्तक का गर्भकाल विजय कुमार प्राणी शास्त्र के विद्यार्थियों को यह बताया जाता है कि किस प्राणी का गर्भकाल कितना होता है ? अंडे से जन्म लेने वाले प्राणियों का विकास मां के पेट के अंदर तथा फिर बाहर भी होता है। जो प्राणी सीधे मां के पेट से जन्मते हैं, उनमें से कोई छह मास गर्भ में […] Read more » पुस्तक
राजनीति व्यवस्था परिवर्तन अर्थात.. ? November 9, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार इन दिनों जिधर देखो व्यवस्था परिवर्तन का शोर है। हर कोई इसका झंडा लिये दूसरों को गरिया रहा है। राहुल बाबा इस मैदान में सबसे नये खिलाड़ी के रूप में उतरे हैं। गत चार नवम्बर, 2012 को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई कांग्रेसी रैली में भाषण देते हुए उन्होंने हर दूसरे वाक्य […] Read more » व्यवस्था परिवर्तन
व्यंग्य व्यंग्य बाण : हाथ मिलाएं, पर ध्यान से October 19, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार लगता है कि अखबार वालों के पास छापने के लिए विषयों की कमी हो गयी है, इसलिए वे न जाने कहां-कहां से लाकर ऊल जलूल बातें त्यौहार के मौसम में पाठकों को परोस देते हैं। शर्मा जी कल बहुत दिन बाद मिले, तो मैंने उत्साहपूर्वक हाथ आगे बढ़ाते हुए उन्हें दीपावली की बधाई […] Read more »
राजनीति मौन मोहन सिंह का मौन भंग October 15, 2012 | 1 Comment on मौन मोहन सिंह का मौन भंग विजय कुमार शर्मा जी कल बहुत दिन बाद मिले, तो चेहरा ऐसा लग रहा था मानो साठ वाट के बल्ब में सौ वाट की चमक आ गयी हो। होठों पर हंसी शरद पूर्णिमा की स्वच्छ चांदनी की तरह चारों ओर छिटक रही थी। मन इतना गद्गदायमान हो रहा था, जैसे बराक ओबामा ने अमरीका में […] Read more »
खान-पान पंचतत्व और खानपान October 8, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार सबसे पहले मैं ये स्पष्ट कर दूं कि मैं कोई चिकित्सक या खानपान विशेषज्ञ नहीं हूं। किस व्यक्ति को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, इस बारे में भी मेरा कुछ अध्ययन नहीं है; पर भोजन और पंचतत्व के संबंध में बुजुर्गों से सुनी हुई कुछ बातें सबमें बांटना चाहता हूं। पंचतत्व अर्थात […] Read more »
विविधा हिन्दुद्रोही मौलाना मोहम्मद अली जौहर September 22, 2012 / September 22, 2012 | 28 Comments on हिन्दुद्रोही मौलाना मोहम्मद अली जौहर विजय कुमार गत 18 सितम्बर, 2012 को रामपुर (उ0प्र0) में मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर एक विश्वविधालय का उदघाटन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया। इस अवसर पर उनके पिता श्री मुलायम सिंह तथा प्रदेश की लगभग पूरी सरकार वहां उपस्थित थी। इस वि0वि0 के सर्वेसर्वा रामपुर से विधायक तथा प्रदेश सरकार में कैबिनेट […] Read more » मौलाना मोहम्मद अली जौहर
विविधा नवीन सोच के धनी : श्री कुप्.सी. सुदर्शन September 15, 2012 | 1 Comment on नवीन सोच के धनी : श्री कुप्.सी. सुदर्शन विजय कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और […] Read more »
विविधा व्यंग्य बाण: हिन्दी ओढ़ें, देवनागरी बिछाएं September 11, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार पिछले दिनों किसी काम से शर्मा जी के घर गया, तो उनकी मेज पर चिट्ठियों और निमन्त्रण पत्रों का ढेर लगा था। उन्होंने मेरी ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और पत्रों से उलझे रहे। – क्या बात है शर्मा जी, बड़े व्यस्त लग रहे हैं ? – हां भई, 14 सितम्बर आ […] Read more » हिंदी दिवस
व्यंग्य व्यंग्य बाण : बातों और वायदों का ओलम्पिक August 19, 2012 / August 20, 2012 | Leave a Comment विजय कुमार शर्मा जी बचपन से ही खेलकूद में रुचि रखते हैं। यद्यपि उन्होंने आज तक किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। इसलिए पुरस्कार जीतने का कोई मतलब ही नहीं; पर कबाड़ी बाजार से खरीदे कप, ट्रॉफी और शील्डों से उनका कमरा भरा है, जिसे वे हर आने-जाने वाले को विभिन्न राज्य और राष्ट्र स्तर […] Read more »
राजनीति व्यवस्था परिवर्तन और वर्तमान आंदोलन August 17, 2012 | 3 Comments on व्यवस्था परिवर्तन और वर्तमान आंदोलन विजय कुमार अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध किया जा रहा अपना आंदोलन समाप्त कर दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी मंडली भी भंग कर दी है। कहना कठिन है कि वे हताश और निराश हैं या कोई और बात है ? यह निराशा किससे है ? स्वयं से या अपनी मंडली से; जनता […] Read more » अन्ना आंदोलन
व्यंग्य राजनीति के अखाड़े में August 9, 2012 | 2 Comments on राजनीति के अखाड़े में विजय कुमार आखिर शर्मा जी ने राजनीति के अखाड़े में उतरने का निश्चय कर ही लिया। वैसे तो अनशन पर बैठने से पहले ही वे इसकी योजना बना चुके थे; पर घोषणा के लिए थोड़ा वातावरण बनाना जरूरी था। इसलिए कुछ दिन अनशन भी करना पड़ा। यह अच्छा हुआ कि अनशन तुड़वाने के लिए दो-तीन […] Read more »