
ओ सोये हुये नादानों जागो,
ओ भारत की संतानों जागो
परिवर्तन का सूर्य उगा है,नीदं भगाओ लम्बी न तानों।
ओ माझी तूफान से लड़ने वालों
देश सारा ड़ूब रहा है उसे बचालो ।
तोड़. सभी रूढ़ियों की कच्ची रस्सी
इन रस्सियों को, आज जरा आजमालो ।
परिवर्तन का तूफान उठा है, पतवार उठाओं बाधमान तानों।
सगाई मगनी छोड़.छुटटी
बंद से बहुत रही आपस में कुटटी
बाहर करते आये मन-मरजी
घर में भले रहे नाराजी।
अपना घर तो सँभाल न पाये, दूजा घर क्यों तोड़ने की ठानों॥
अहंकार की झूठी शान ने
गरीब कमजोरों को नहीं छोड़ा है
पंच-परमेश्वर पंचायत ने
भ्रष्ट चरित्र को ओढ़ा है।
पंचायत की मर्यादाओं को, आज बचाओ ओ परवानों।
दूध के लिये बच्चे अकुलाते
शराब पीकर तुम मस्ताते
नाच रही है घर-घर में भूख
तुम नवाब बने इतराते खूब।
नवाब बनने से पहले, बनो श्रमिक घर इन्द्रासन तानों।
दगावाज मक्कारों ने
खूब बंबड़र मचाया है
निर्माण करो फौजी अरमानों को
इससे जुल्म का ठेकेदार घबराया है
राह के काँटे हटा के यारो, फूल बिछाने की तुम ठानों।
खिसियानी बिल्ली सी तुनक मिजाजी छोड़ो,
उछलकूद बंदरवाजी छोड़ो,
देश तोड़.ने वालों के सिर फोड़ो
परिवर्तन के हर अटके रोड़े तोड़ो।
भेड़िया नहीं शेर बनो तुम, बनो फौलादी जंगवानो।
इंसानियत की लाश बिछायी
आज धर्म के ठेकेदारों ने
संवेदनाओं में आग लगायी
घर के भेदी मक्कारों ने
आग बुझाओ दिल को मिलाओ,संगठित होने का प्रणठानों।
अक्ल के अंधे अज्ञानियों को
तुमने ताज पहनाया है
ज्ञानी बैठा सुबक रहा है
जोर उसने अपना आजमाया है।
जरा तो चेतो अज्ञानियों से,ज्ञान को सबल बनाओ ओ ज्ञानवानों।
नेतृत्व यहाँ बीमार पड़ा है
कुछ अलग बनाओ अपना तकाजा
कहीं अर्थी न उठानी पड़. जाये
पीव उसमें मिलाओ अपना खून ताजा।
समय तुम्हें पुकार रहा है,निष्ठा लाओ ओ नेतृत्ववानो।