हृदयघात और योग

हरिकृष्‍ण निगम

आज यह सर्वविदित है कि लगभग 20 प्रतिशत हृदयघात के उदाहरण हमारे देश में उन लोगों को हो रहे हैं जिनकी आयु 40 वर्ष से कम है। एक सर्वेक्षण में यह अनुमान भी लगाया गया है की जीवन शैली में आमूल-चूल बदलाव के कारण शीघ्र ही वह समय आ सकता है जब अपनी आयु के 30वें वर्ष के बाद ही यह संभावना यथार्थ बन जाएगी। नई खोजों से यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि आज के युवा वर्ग द्वारा तनाव से युक्त होने के लिए दिन प्रतिदिन जिन दवाओं को उपयोग में लाया जा रहा है वह उनकी रूधिर शिराओं को इतना कड़ा बना देता है जहां हृदयघात की संभावना बढ़ जाती है।

वहीं कान्सास स्थित एक अमेरिकी अस्पताल की शोध रिपोर्ट के अनुसार प्रयोगों ने सिध्द कर दिया है कि योग क्रियाओं के द्वारा हृदयघात के अनियमित स्पंदन के प्रकरणों को घटाया जा सकता है। कान्सास विद्यालय के व्याख्याता डॉ. धनंजय लक्कीरेड्डी ने हाल के प्रकशित अध्ययन में प्रयोगों द्वारा सिध्द किया है कि उंचे रक्तचाप और कोलेस्टेरॉल स्तरों के आधे से अधिक कम करने का अचूक योग में हीं है। अध्ययन के अनुसार आट्रियल फिब्रीलेशन, जो अधिक आयु के लोगों में दिल का दौरा पड़ने का मूलकारण है, उसे योग से नियंत्रित किया जा सकता है। तनावमुक्त, मानसिक शांति द्वारा जो मनोस्थिति पैदा की जा सकती है वह इस संभावित खतरे से जुझने की पहली सीढ़ी है। संयमित जीवन और ध्यान पध्दति के केंद्रीभूत करने से आज के जीवन की गलाकाट प्रतिद्वंद्विता, जटिलता तथा अवांछनीय कोलाहल में फंसे लोगों को राह दिखाई जा सकती। अब परिचय में भी इस अनूठे मनोचिकित्सीय सत्रों को हृदयरोग से जुझने की पहली सीढ़ी माना जा रहा है।

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