चिंतन लापरवाह नागरिक बनाना चाहते हैं आदर्श राष्ट्र January 2, 2013 by बी.पी. गौतम | Leave a Comment एक से अधिक व्यक्तियों के जुड़ने से एक परिवार बनता है, परिवारों के मिलने से मोहल्ला, नगर और समाज का निर्माण का होता है। इसी क्रम में कुछ गांवों को मिला कर एक विकास खंड बना है, कुछ विकास क्षेत्रों को मिला कर एक तहसील और कई तहसीलों को मिला कर एक जनपद बना है। […] Read more » making a true India
चिंतन समाज उत्तर हर बार औरत को ही क्यों देना पड़ता है? – कुलदीप चंद अग्निहोत्री December 29, 2012 / December 29, 2012 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | 2 Comments on उत्तर हर बार औरत को ही क्यों देना पड़ता है? – कुलदीप चंद अग्निहोत्री दिल्ली में पिछले दिनों चलती बस में कुछ लोगों ने तेईस साल की एक लड़की से बलात्कार किया । केवल बलात्कार ही नहीं बल्कि राक्षसी तरीक़े से उसे शारीरिक चोटें भी पहुँचाई गईं । अब वह लड़की जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है । पुलिस इस समय भी उससे अपनी इच्छानुसार बयान लेना […] Read more »
चिंतन अन्तर्मुखी भले रहें अन्तर्दुखी न रहें November 10, 2012 / November 9, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on अन्तर्मुखी भले रहें अन्तर्दुखी न रहें डॉ. दीपक आचार्य लोग मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी। बहिर्मुखी लोगों के दिल और दिमाग की खिड़कियाँ बाहर की ओर खुली रहती हैं जबकि अन्तर्मुखी प्रवृत्ति वाले लोगों के मन-मस्तिष्क की खिड़कियां और दरवाजे अन्दर की ओर खुले रहते हैं। आम तौर पर अन्तर्मुखी लोेगों को रहस्यमयी और अनुदार […] Read more » अन्तर्दुखी न रहें अन्तर्मुखी रहें
चिंतन सत्य की राह कठिन जरूर है, October 9, 2012 / October 9, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment सत्य की राह कठिन जरूर है, पर है असली आनंद देने वाली डॉ. दीपक आचार्य सत्य जीवन का सर्वोपरि कारक है जिसका आश्रय ग्रहण कर लिए जाने पर धर्म और सत्य हमारे जीवन के लिए संरक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाते हैं और पूरी जिन्दगी इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे प्रत्येक कर्म पर तो […] Read more » path of truth
चिंतन बापू और शास्त्री को जीवन में उतारना October 2, 2012 / October 2, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on बापू और शास्त्री को जीवन में उतारना याद करने से ज्यादा जरूरी है बापू और शास्त्री को जीवन में उतारना डॉ. दीपक आचार्य आज का दिन राष्ट्रपति महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुरशास्त्री के नाम समर्पित है। हम दशकों से कई सारे कार्यक्रमों का आयोजन कर एक दिन इन्हें भरपूर याद कर लिया करते हैं। इस एक दिन में हम दोनों को […] Read more »
चिंतन धर्म-अध्यात्म हम धार्मिक हैं कहां, धर्म का केवल ढोंग ही तो करते हैं! September 15, 2012 / September 15, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी भगवान का डर होता तो क्या उसके बताये रास्ते पर नहीं चलते? तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने हम भारतीयों पर बड़ा सामयिक सवाल उठाया है कि जब हम लोग धार्मिक हैं और भगवान से डरते हैं तो फिर कैसे पूजापाठ के साथ भ्रष्टाचार भी करते हैं? यह बात धर्मगुरू ने लद्दाख़ दौरे के […] Read more » धर्म का केवल ढोंग
चिंतन कर्मधारा में स्पीड ब्रेकर न बनें September 13, 2012 / September 13, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment कर्मधारा में स्पीड ब्रेकर न बनें खुद करें या औरों को करने दें डॉ. दीपक आचार्य आजकल कर्मयोग की धाराएं प्रदूषित होती जा रही हैं। कार्यसंस्कृति का जबर्दस्त ह्रास होता जा रहा है और ज्यादातर लोग धन के मोह में न अपने कर्म से खुश हैं, न संतोषी। सभी को लगता है कि जो मिल […] Read more »
चिंतन शिक्षा-दीक्षा की आदर्श परंपराएं संस्कारहीनता के आगे बौनी हो गई हैं September 10, 2012 / September 9, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 2 Comments on शिक्षा-दीक्षा की आदर्श परंपराएं संस्कारहीनता के आगे बौनी हो गई हैं डॉ. दीपक आचार्य शिक्षा-दीक्षा और संस्कार ये जीवन निर्माण के वे बुनियादी तत्व हैं जो व्यक्तित्व के विकास के लिए नितान्त अनिवार्य हैं और इनके संतुलन के बगैर न शिक्षा का महत्त्व है न संस्कारों का। अकेली शिक्षा-दीक्षा और अकेले संस्कारों से व्यक्तित्व के निर्माण और जीवन निर्वाह की बातें केवल दिवा स्वप्न ही हैं। […] Read more » शिक्षा-दीक्षा की आदर्श परंपराएं
चिंतन जो किसी के नहीं हो सकते,वे हो जाते हैं कभी इनके, कभी उनके September 1, 2012 / September 1, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉं. दीपक आचार्य आज सबसे ज्यादा भरोसा जिस पर से उठने लगा है वह है आदमी। पहले का आदमी नीयत का जितना साफ-सुथरा, सहज और शुद्ध-बुद्ध होता था, उतना आज का आदमी नहीं। उस जमाने का आदमी मन-वचन और कर्म से एकदम स्पष्ट था, उसकी वाणी और आचरण में साम्यता थी और वो जो कहता […] Read more »
चिंतन पीढ़ियाँ करती हैं जयगान सृजन के इतिहास का August 31, 2012 / August 31, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ . दीपक आचार्य रचनात्मक प्रवृत्तियाँ और सृजन धर्म हमेशा सर्वोपरि महत्त्व रखता है और यही वह कारण है जो समाज और परिवेश को युगों और सदियों तक जीवन्त बनाये रखते हुए यादगार रहता है। बात चाहे बुनियादी जरूरतों की सहज उपलब्धता की हो या सुख-सुविधाओं और स्वाभिमानी जीवन निर्वाह के लिए जरूरी संसाधनों की। […] Read more »
चिंतन न करें उत्सवी परम्पराओं की हत्या August 29, 2012 / August 29, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य न करें उत्सवी परम्पराओं की हत्या सामाजिक सांस्कृतिक हों या परिवेशीय भारतीय संस्कृति की तमाम परंपराएं वैज्ञानिकता की कसौटी पर इतनी खरी और ऋषि-मुनियों द्वारा परखी हुई हैं कि जब तक उनका अवलम्बन होता रहेगा, तब तक मानवी सृष्टि को किसी भी बाहरी आपदाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। बात धार्मिक, आध्यात्मिक, […] Read more »
चिंतन पराभव के दिनों का आगमन August 25, 2012 / August 27, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य सज्जनों से दूरी का मतलब है पराभव के दिनों का आगमन हमारा जीवन सिर्फ अपनी आत्मा और शरीर से ही संबंध नहीं रखता है बल्कि हमारे आस-पास रहने वाले लोग और परिवेशीय हलचलें भी हमारे जीवन से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं में निर्णायक साबित होती हैं और इन्हीं के आधार पर हमारे […] Read more »