Category: धर्म-अध्यात्म

चिंतन धर्म-अध्यात्म

सभी मनुष्यों के करणीय पाचं सार्वभौमिक कर्तव्य

| Leave a Comment

मनुष्य का जन्म माता-पिता व सृष्टिकर्ता ईश्वर के द्वारा होता है। ईश्वर द्वारा ही सृष्टि की रचना सहित माता-पिता व सन्तान का जन्म दिये जाने से ईश्वर प्रथम स्थान पर व माता-पिता उसके बाद आते हैं। आचार्य बालक व मनुष्य को संस्कारित कर विद्या व ज्ञान से आलोकित करते हैं। अतः अपने आचार्यों के प्रति भी मनुष्यों का कर्तव्य है कि वह अपने सभी आचार्यों के प्रति श्रद्धा का भाव रखंे और उनकी अधिक से अधिक सेवा व सहायता करें।

Read more »

चिंतन धर्म-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द के जीवन के अन्तिम प्रेरक शिक्षाप्रद क्षण

| Leave a Comment

स्वामी दयानन्द जी का जीवन आदर्श मनुष्य, महापुरुष व महात्मा का जीवन था। उन्होने अपने पुरुषार्थ से ऋषित्व प्राप्त किया और अपने अनुयायियों के ऋषित्व प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। एक ऋषि का जीवन कैसा होता है और ऋषि की मृत्यु किस प्रकार होती है, ऋषि दयानन्द का जीवनचरित उसका प्रमाणिक दस्तावेज हैं जिसका अध्ययन व मनन कर सभी अपने जीवन व मृत्यु का तदनुकूल वरण व अनुकरण कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि पूर्व अध्ययन किये हुए ऋषि भक्तों को इसे पढ़कर मृत्यु वरण के संस्कार प्राप्त होंगे। इसी के साथ यह चर्चा समाप्त करते हैं। ओ३म् शम्।

Read more »

कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख साहित्‍य

स्वास्तिक शास्वत और विश्वव्यापी सनातन प्रतीक

| Leave a Comment

अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।'

Read more »

कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म

मंगलिक कार्य आरम्भ होने का दिन है ‘‘देवोत्थान एकादशी’’

/ | Leave a Comment

प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी के दिन भीष्म पंचक व्रत भी शुरू होता है, जो कि देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक चलता है। इसलिए इसे इसे भीष्म पंचक कहा जाता है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ या पुरूष बिना आहार के रहकर यह व्रत पूरे विधि विधान से करते हैं। इस व्रत के पीछे मान्यता है कि युधिष्ठर के कहने पर भीष्म पितामह ने पाँच दिनो तक (देवोत्थान एकादशी से लेकर पांचवें दिन पूर्णिमा तक) राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था।

Read more »