धर्म-अध्यात्म सृष्टि में मनुष्यों का प्रथम उत्पत्ति स्थान और आर्यों का मूल निवास September 20, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment हमारा यह संसार वैदिक मान्यता के अनुसार आज से 1 अरब 96 करोड़ 08 लाख 53 हजार 115 वर्ष पूर्व बनकर आरम्भ है। इस समय मानव सृष्टि संवत् 1,96,08,53,116 हवां चल रहा है। यह वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ हुआ है। इस सृष्टि सम्वत् के प्रथम दिन ईश्वर ने मनुष्यों को किस स्थान पर […] Read more » Featured आर्यों का मूल निवास मनुष्यों का प्रथम उत्पत्ति स्थान सृष्टि
धर्म-अध्यात्म मूर्ति पूजा विमर्श September 19, 2015 / September 19, 2015 by कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री | 3 Comments on मूर्ति पूजा विमर्श कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री संसार में मूर्ति पूजा का इतिहास ज्ञात करने पर पता चलता है कि जैन-बौद्ध-काल से पूर्व इसका आरम्भ नहीं हुआ था। चीन के प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता और यात्री फाहियान ने सन् 400 ई0 में भारत की यात्रा की थी। उसने देखा था कि पटना में प्रतिवर्ष दूसरे मास के आठवें दिन […] Read more » Featured मूर्ति पूजा मूर्ति पूजा विमर्श
धर्म-अध्यात्म मनुष्य जीवन, स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा September 18, 2015 / September 18, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनुष्य योनि सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। कहा गया है कि ‘सुर दुर्लभ मानुष तन पावा’ अर्थात् देवताओं को भी दुर्लभ है यह मनुष्य शरीर ईश्वर की अहैतुकी कृपा से हम मनुष्यों को प्राप्त हुआ है। प्रायः भद्र पुरुषों का ऐसा नियम है कि जो भी वस्तु हमें उपहार में मिले उसे बहुत सम्भाल कर […] Read more » मनुष्य जीवन स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा
धर्म-अध्यात्म मैत्री का विराट् दर्शन है क्षमापना दिवस September 18, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment गणि राजेन्द्र विजय भारतीय संस्कृति में पर्वों का अत्यधिक महत्व एवं प्रभाव रहा है। समय-समय पर सर्वत्र-दीवाली, होली, रक्षाबंधन, दशहरा आदि अनेक भौतिक पर्व मनाये जाते हैं। किन्तु जैनधर्म त्याग प्रधान धर्म है। इसके पर्व भी त्याग-तप की प्रभावना के पर्व हैं। जैनधर्म में तीन पर्वों को विशेष महत्व दिया जाता है। 1. अक्षय तृतीया, […] Read more » Featured क्षमापना दिवस मैत्री का विराट् दर्शन है
धर्म-अध्यात्म वेदों का ज्ञान और समाज का पुराण वर्णित अन्ध विश्वासों का आचरण September 16, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment सृष्टि की रचना करने के बाद से ईश्वर मनुष्यों को जन्म देता, पालन करता व उनकी सभी सुख सुविधा की व्यवस्थायें करता चला आ रहा है। हमारी यह सृष्टि लगभग 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पूर्व ईश्वर के द्वारा अस्तित्व में आई है। सृष्टि को बनाकर ईश्वर ने वनस्पतियों व प्राणीजगत को बनाया और इसमें […] Read more » Featured अन्ध विश्वासों का आचरण वेदों का ज्ञान
धर्म-अध्यात्म दक्षिण भारत के संत (१६) त्यागराजा September 16, 2015 by बी एन गोयल | Leave a Comment बी एन गोयल जिस व्यक्ति को भारत के शास्त्रीय संगीत में थोड़ी भी रुचि होगी उसे संगीतकार त्यागराज के बारे में अवश्य जानकारी होगी। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो भागों में बांटा जाता है – उत्तरी और दक्षिणी । उत्तरी को हिंदुस्तानी संगीत कहते हैं और दक्षिणी को कर्नाटक संगीत कहा जाता है। कर्नाटक […] Read more » Featured त्यागराजा दक्षिण भारत के संत
धर्म-अध्यात्म ईश्वर व जीवात्मा के यथार्थ ज्ञान में आधुनिक विज्ञान भ्रमित है। September 13, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on ईश्वर व जीवात्मा के यथार्थ ज्ञान में आधुनिक विज्ञान भ्रमित है। आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने मनुष्य का जीवन जहां आसान व सुविधाओं से पूर्ण बनाया है वहां अनेक समस्यायें एवं सामाजिक विषमतायें आदि भी उत्पन्न हुई हैं। विज्ञान व ज्ञान से युक्त मनुष्यों से अपेक्षा की जाती है कि वह जिस बात को जितना जाने उतना कहें और जहां उनकी पहुंच […] Read more » Featured आधुनिक विज्ञान
धर्म-अध्यात्म सभी चार आश्रमों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ गृहस्थाश्रम September 11, 2015 / September 11, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment वैदिक जीवन चार आश्रम और चार वर्णों पर केन्द्रित व्यवस्था व प्रणाली है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास यह चार आश्रम हैं और शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण यह चार वर्ण कहलाते हैं। जन्म के समय सभी बच्चे शूद्र पैदा होते हैं। गुरूकुल व विद्यालय में अध्ययन कर उनके जैसे गुण-कर्म-स्वभाव व योग्यता होती है […] Read more » Featured गृहस्थाश्रम सभी चार आश्रमों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ
धर्म-अध्यात्म स्वामी दयानन्द और हिन्दी September 10, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment भारतवर्ष के इतिहास में महर्षि दयानन्द पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने पराधीन भारत में सबसे पहले राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए हिन्दी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण जानकर मन, वचन व कर्म से इसका प्रचार-प्रसार किया। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि हिन्दी शीघ्र लोकप्रिय हो गई। यह ज्ञातव्य है कि हिन्दी को स्वामी दयानन्द जी […] Read more » स्वामी दयानन्द स्वामी दयानन्द और हिन्दी हिन्दी
धर्म-अध्यात्म संसार में मनुष्यों के कर्तव्य संबंधी ज्ञान-विज्ञान का सर्वोत्तम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश September 9, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment कबीर दास जी ने सत्य की महिमा को बताते हुए कहा है कि ‘सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप, जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप’ वस्तुतः संसार में सत्य से बढ़कर कुछ नहीं है। ईश्वर, जीव व प्रकृति सत्य हैं अर्थात् इनका संसार में अस्तित्व है। बहुत से सम्प्रदायों व स्वयं को ज्ञानी […] Read more » Featured सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म देश के कर्णधार हमारे शिक्षक व शिष्य कैसे हों? September 9, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on देश के कर्णधार हमारे शिक्षक व शिष्य कैसे हों? शिक्षा देने व विद्यार्थियों को शिक्षित करने से अध्यापक को शिक्षक व शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शिष्य कहा जाता है। आजकल हमारे शिक्षक बच्चों को अक्षर व संख्याओं का ज्ञान कराकर उन्हें मुख्यतः भाषा व लिपि से परिचित कराने के साथ गणना करना सिखाते हैं। आयु वृद्धि के साथ साथ बच्चा भाषा, कविता, […] Read more » देश के कर्णधार हमारे शिक्षक शिष्य कैसे हों
धर्म-अध्यात्म ईश्वर, वेद, राजर्षि मनु व महर्षि दयानन्द सम्मत शासन प्रणाली September 8, 2015 / September 8, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य महर्षि दयानन्द ने सप्रमाण घोषणा की थी कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है एवं यही धर्म व सभी सत्य विद्याओं के आदि ग्रन्थ होने से सर्वप्राचीन एवं सर्वमान्य हैं। यदि ऐसा है तो फिर वेद में देश की राज्य व शासन व्यवस्था कैसी हो, इस पर भी विचार मिलने ही चाहियें। महर्षि दयानन्द […] Read more » Featured ईश्वर महर्षि दयानन्द सम्मत शासन प्रणाली राजर्षि मनु वेद