धर्म-अध्यात्म अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाय October 21, 2014 by प्रणय विक्रम सिंह | Leave a Comment प्रणय विक्रम सिंह दीपावली अर्थात आलोक का विस्तार। पराजित अमावस्या का उच्छवास, घोर अंधकार का पलायन, आलोक सुरसरि का धरती पर अवतरण है दीपावली। आकाश के अनंत नक्षत्र मंडल से धरा की मूर्तिमान स्पर्धा है दीपावली। मनुष्य की चिर आलोक पिपासा के लिए चहुं दिसि आलोक वर्षा है दीपोत्सव का पर्व। अंधकार पर प्रकाश की […] Read more » अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाय
जन-जागरण धर्म-अध्यात्म शुभ-लाभ नहीं होगा, चीन के अशुभ सामान से October 21, 2014 / November 15, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment शुभ-लाभ नहीं होगा, चीन के अशुभ सामान से भारतीय परम्पराओं और शास्त्रों में केवल लाभ अर्जन करनें को ही लक्ष्य नहीं माना गया बल्कि वह लाभ शुभता के मार्ग से चल कर आया हो तो ही स्वीकार्य माना गया है. दीवाली के इस अवसर पर जब हम अपनें निवास और व्यवसाय स्थल पर शुभ-लाभ लिखतें […] Read more » चीन के अशुभ सामान से शुभ-लाभ नहीं होगा
धर्म-अध्यात्म महाभारत – ६ October 20, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment यदि ज्ञान से धृतराष्ट्र का हृदय परिवर्तन संभव होता, तो विदुर के वचनों से कभी का हो गया होता। विदुरजी को यह तथ्य ज्ञात है फिर भी वे बार-बार सत्परामर्श देने से चुकते नहीं हैं। उस रात्रि में धृतराष्ट्र की उद्विग्नता कम होने का नाम ही नहीं लेती। उसे ज्ञान नहीं, सान्त्वना की आवश्यकता थी […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-५ October 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का उत्तर सुनने के बाद संजय के पास कहने को कुछ भी शेष नहीं रहा। वह जाने के लिए प्रस्तुत होता है। अर्जुन उसे विदा करने जाते हैं। सदा कर्म में विश्वास करनेवाले अर्जुन सदैव अल्पभाषी रहे हैं। बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही वे कुछ बोलते थे। संजय के माध्यम से […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-४ October 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment श्रीकृष्ण आरंभ में युद्ध ही एकमात्र समाधान है, ऐसा नहीं मानते। सर्वशक्तिमान होने के बावजूद वे कभी अनायास शक्ति-प्रयोग की बात भी नहीं करते परन्तु उपमा-उपमेय के द्वारा शिष्ट भाषा में सबकुछ कह भी जाते हैं। संजय के माध्यम से वे धृतराष्ट्र को संदेश देते हैं – वनं राजा धृतराष्ट्रः सपुत्रो व्याघ्रा वने संजय […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-३ October 17, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment संजय भी जल्दी हार माननेवाला कहां था। वह ज्ञानी भले ही न हो, जानकार तो था ही। सामान्य जन ज्ञान और जानकारी को एक ही मानते हैं। सत्य और असत्य को पहचानना उतना कठिन नहीं है, जितना ज्ञान और जानकारी में अन्तर समझना। ज्ञान प्राप्त होने के बाद मनुष्य मौन हो जाता है। उसकी […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म धर्मस्थलों का काम वातावरण को स्वच्छ बनाना,प्रदूषित करना नहीं? October 17, 2014 / October 17, 2014 by निर्मल रानी | 3 Comments on धर्मस्थलों का काम वातावरण को स्वच्छ बनाना,प्रदूषित करना नहीं? निर्मल रानी जनता दल युनाईटेड के अध्यक्ष शरद यादव ने पिछले दिनों अपने एक बयान में कहा कि सभी धर्मस्थानों से लाऊडस्पीकर हटा दिए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रद्धालु लोग स्वेच्छा से धर्म स्थलों को जा सकते हैं उन्हें बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यादव ने कहा कि धर्मस्थलों पर लाऊडस्पीकर के इस्तेमाल […] Read more » धर्मस्थलों का काम
धर्म-अध्यात्म महाभारत-२ October 15, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment युधिष्ठिर के धार्मिक एवं शान्तिप्रिय स्वभाव को लक्ष्य करके ही धृतराष्ट्र ने ऐसा संदेश भिजवाया था। मनुष्य जो भी करता है उसे उचित ठहराने की कोशिश अवश्य करता है। इसके लिये वह कभी धर्म का तर्क देता है, कभी सत्य का, कभी परंपरा का, कभी सिद्धान्त का, तो कभी नैतिकता का। वाकपटु मनुष्य असत्य […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-१ October 14, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment महाभारत की रचना महर्षि वेद व्यास ने की। यह भारत का सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ है जिसमें वह सबकुछ है जो इस लोक में घटित हुआ है, हो रहा है और होनेवाला है। यह हमें अनायास ही युगों-युगों से चले आ रहे उस संघर्ष की याद दिलाता है जो मानव हृदय को आज भी उद्वेलित कर […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म श्रीराम के विषय मे उठाने वाले प्रश्नो के उत्तर October 7, 2014 / October 7, 2014 by संजय कुमार (कुरुक्षेत्र) | 2 Comments on श्रीराम के विषय मे उठाने वाले प्रश्नो के उत्तर संजय कुमार श्रीराम जी पर लगाए जाने आरोप कितने सही हैं? क्या श्रीराम जी शूद्र विरोधी थे? क्या उन्होने शंबूक का वध किया था ? क्या उन्होने गर्भवती सीता को छोड़ दिया था? क्या उनका या उनके भाइयों का लवकुश से युद्ध हुआ था? क्या सीता जी धरती मे समा गई थी? इसके अतिरिक्त अन्य […] Read more »
चिंतन हांफती जिंदगी और त्योहार…!! October 1, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा काल व परिस्थिति के लिहाज से एक ही अवसर किस तरह विपरीत रुप धारण कर सकता है, इसका जीवंत उदाहरण हमारे तीज – त्योहार हैं। बचपन में त्योहारी आवश्यकताओं की न्यूनतम उपलब्धता सुनिश्चित न होते हुए भी दुर्गापूजा व दीपावली जैसे बड़े त्योहारों की पद्चाप हमारे अंदर अपूर्व हर्ष व उत्साह भर देती […] Read more » हांफती जिंदगी और त्योहार
धर्म-अध्यात्म जब औघड़-श्राप से मुक्त हुआ था काशी- राजघराना September 14, 2014 by नीरज वर्मा | 1 Comment on जब औघड़-श्राप से मुक्त हुआ था काशी- राजघराना अघोर-परम्परा का उदगम, सृष्टि के निर्माण से ही है ! कहा जाता है कि भगवान शिव इस दुनिया के पहले अघोरी थे ! उत्तर-भारत में भगवान शिव को औघड़-दानी कहने का चलन बरसों पुराना है ! किसी भी समय-काल में , विधाता की सम्पूर्ण शक्ति को समाहित किये, इस पृथ्वी पर हमेशा एक अघोरी मानव-तन […] Read more » .….जब औघड़-श्राप से मुक्त हुआ था काशी- राजघराना