चिंतन अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती December 30, 2013 / December 30, 2013 by अभिनव शंकर | 1 Comment on अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती प्रिय अरविन्द केजरीवाल जी, नमस्कार ! पिछले कुछ दिनों से आपको पत्र लिखने के लिए सोच रहा था. पर एक आम आदमी कि परेशानियां तो आप जानते ही है। घर-ऑफिस कि जिम्मेदारियों के बीच समय निकालते निकालते इतने दिन निकल गए। इस देरी का हालांकि फायदा ये हुआ है कि इस बीच आप दिल्ली […] Read more » A letter to Arvind Kejriwal अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती
धर्म-अध्यात्म क्या रिलिजन या मजहब हमारे “धर्म” को परिभाषित कर सकता है ? December 28, 2013 / December 28, 2013 by शिवेश प्रताप सिंह | Leave a Comment -शिवेश प्रताप- संत आगस्तीन एवं अंग्रेजी भाषा के विद्वान टॉम हार्पर और जोसफ कैम्पबेल के अनुसार रिलिजन शब्द दो शब्दों री (पुनः) एवं लिगेयर (बांधना) से बना है जिसका अर्थ है बार बार बांधना या व्यक्ति को ईशु से जोड़ना | क्या किसी पर कोई ईश्वर थोपे जाने का विषय है ? मजहब शब्द इस्लाम में ज़हाबा […] Read more » can religion define 'Dharm' ? क्या रिलिजन या मजहब हमारे “धर्म” को परिभाषित कर सकता है ?
धर्म-अध्यात्म योगवासिष्ठ : एक विलक्षण दार्शनिक ग्रन्थ December 2, 2013 / December 2, 2013 by ममता त्रिपाठी | 6 Comments on योगवासिष्ठ : एक विलक्षण दार्शनिक ग्रन्थ ममता त्रिपाठी योगवासिष्ठ का भारतीय दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । एक ओर जहाँ इस ग्रन्थ में उच्च दार्शनिक विमर्श के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर यह साहित्यिक मञ्जुलता को समाहित करता हुआ चलता है । आख्यान, कथा, कहानियों जैसे सर्वजनग्राह्य माध्यम का सहारा लेकर बहुत ही ललित शैली में दर्शन के गूढ़तम […] Read more »
धर्म-अध्यात्म वेदों में मोक्ष का स्वरुप November 22, 2013 by डॉ.मृदुल कीर्ति | 3 Comments on वेदों में मोक्ष का स्वरुप डॉ. मृदुल कीर्ति मोक्ष, मुक्ति,निर्वाण——की चाहना अर्थात इसके ठीक पीछे किसी बंधन की छटपटाहट भी ध्वनित है. यदि इन शब्दों का अस्तित्व है तो कदाचित इसकी सम्भावना के बीज भी इसी में समाहित है. कर्मों के तीन प्रारूप संचित,प्रारब्ध और क्रियमाण का कर्म चक्र जाल है. कृत कर्मों का प्रारब्ध—–जो अवश्य ही भोगना ही पड़ता […] Read more »
धर्म-अध्यात्म आदि ग्रन्थ में शब्द से अर्थ तक की यात्रा November 1, 2013 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | Leave a Comment डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री आदि ग्रन्थ में कबीर जी की वाणी भी शामिल की गई है । कबीर मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के अग्रणी स्तम्भों में से गिने जाते हैं । उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में तारतम्य बिठाने का भरसक प्रयास किया । इस्लाम को मानने वाले विदेशी आक्रमणकारियों ने , भारत के बहुत बड़े भूभाग […] Read more » आदि ग्रंथ
धर्म-अध्यात्म राम के बिना कैसी दिवाली October 24, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment सुरेश हिन्दुस्तानी भगवान श्रीराम जब असुर रावण वंश का विनाश करके अयोध्या लौटे तो राम के भक्तों ने विजयोत्सव मनाया यानी दीपावली का त्यौहार मनाया। कहते हैं कि यहीं से दीवाली का प्रारम्भ हुआ। भगवान राम का प्राकट्य जिस भूमि पर हुआ वहां दीवाली की चमक आज भी बरकरार है, इतना ही नहीं पूरे भारत […] Read more »
धर्म-अध्यात्म महिषासुर उत्सव : मूर्खताओं से भरे लोगों की पहल October 17, 2013 / October 17, 2013 by व्यालोक पाठक | 4 Comments on महिषासुर उत्सव : मूर्खताओं से भरे लोगों की पहल व्यालोक पाठक फायलिन नाम का चक्रवात अपनी तबाही और बर्बादी के असर छोड़कर जा चुका है। इसी बीच आंधी और पानी के दरम्यान ही दुर्गापूजा का शोर भी धीमा पड़ चुका है, मूर्तियों का विसर्जन हो गया है और ओडीशा-आंध्र-बिहार में तबाही का अंदाजा लगाया जाने लगा है। मन अजीब सा ‘मेलन्कॉलिक’ हो गया है […] Read more » जेएनयू दुर्गा पूजा महिषासुर उत्सव
धर्म-अध्यात्म महिषासुर के नाम पर विचारधारा की जंग? October 11, 2013 by राजीव रंजन प्रसाद | 5 Comments on महिषासुर के नाम पर विचारधारा की जंग? राजीव रंजन प्रसाद धीमा जहर कैसे फैलाया जाता है और मिथक कथाओं के माध्यम से सर्वदा विद्यमान जातिगत खाइयों को किस तरह चौड़ा किया जा सकता है इसका उदाहरण है इन दिनों महिषासुर पर चलाई जा रही कुछ चर्चाएं। बस्तर में सिपाहियों की शहादत पर दारू छलका कर जश्न मनाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली […] Read more » जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय महिषासुर
धर्म-अध्यात्म इंसान से भी गए बीते हैं वे जो खुद को भगवान समझते हैं October 2, 2013 / October 2, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 2 Comments on इंसान से भी गए बीते हैं वे जो खुद को भगवान समझते हैं डॉ. दीपक आचार्य पिछले कुछ समय से स्वयंभू लोगों की हमारे यहाँ जबरदस्त बाढ़ आयी हुई है। इनमें सभी धंधों, गोरखधंधों, वर्गों, क्षेत्रों और हुनरों वाले लोग हैं जो स्वयंभू बने हुए अपने आपको भगवान से कम नहीं समझते हैं। इनमें कई दीर्घकालीन हैं, कई अंशकालीन और कई सारे किश्तों-किश्ताेंं में भगवान मानने वाले। खूब […] Read more »
जन-जागरण जरूर पढ़ें धर्म-अध्यात्म महत्वपूर्ण लेख धर्मचिन्तन से उद्भूत राष्ट्रचिंतन सदा प्रबल रहा September 21, 2013 / September 23, 2013 by राकेश कुमार आर्य | 6 Comments on धर्मचिन्तन से उद्भूत राष्ट्रचिंतन सदा प्रबल रहा राकेश कुमार आर्य वेद का पुरूष सूक्त बड़ा ही आनंददायक है। वहां क्षर पुरूष प्रकृति जो कि नाशवान है, अक्षर पुरूष-जीव, जिसकी जीवन लीला प्रकृति पर निर्भर है, और जो इसका भोक्ता है, और अव्यय पुरूष पुरूषोत्तम-ईश्वर के परस्पर संबंध का मनोहारी वर्णन है। इसी वर्णन में कहीं राष्ट्र का ‘बीज तत्व’ छिपा है। वेद […] Read more » धर्मचिन्तन से उद्भूत राष्टट्रचिंतन सदा प्रबल रहा
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार गणपति बप्पा मोरया… September 13, 2013 / September 13, 2013 by परमजीत कौर कलेर | Leave a Comment परमजीत कौर कलेर घर का कोई भी शुभ काम करने से पहले उनकी पूजा की जाती है…वो सवांरते हैं सभी के बिगड़े काम…और सभी की करते हैं विघ्न बाधाएं दूर… तभी तो सारा जग जानता है उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से….जी हां हम बात कर रहें हैं गणपति बप्पा यानि कि गणेश जी की…सारा देश […] Read more » गणपति बप्पा मोरया...
टॉप स्टोरी धर्म-अध्यात्म एक प्रश्न! September 11, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on एक प्रश्न! एक प्रश्न !आख़िर दुनिया मे लोगो को धर्म गुरु या आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता ही क्यों महसूस होती है ? पहली बात जो दिमाग़ मे आती है वह है परंमपरा, जिस तरह घर मे किसी देवी देवता को पूजने की परंपरा होती है, वैसे ही कुछ परिवारों मे किसी को गुरु मानकर उन्हे भगवान का […] Read more » एक प्रश्न!