धर्म-अध्यात्म सूर्य से है जीवन January 4, 2014 / January 4, 2014 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment 14 जनवरी मकर संक्रांति पर विशेष -प्रमोद भार्गव- सूर्य से जुड़े जीवन संबंधी जिन रहस्यों को आज वैज्ञानिक जानने की कोशिश कर रहे हैं, उन रहस्यों का खुलासा हमारे ऋषि-मुनी हजारों साल पहले संस्कृत साहित्य में कर चुके हैं। जीव-जगत के लिए सूर्य की अनिवार्य उपादेयता को पहचानने के बाद ही सूर्य के प्रति […] Read more » 14 January Sun सूर्य से है जीवन
धर्म-अध्यात्म भगवान जब खुश होता है, नालायकों से दूर कर देता है January 4, 2014 / January 4, 2014 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment -डॉ. दीपक आचार्य- जो लोग अपने ईमान, धर्म और सत्य पर चलते हैं, उनके लिए जीवन की कई सारी समस्याओं को ईश्वर अपने आप दूर कर देता है। ईश्वर हमेशा अच्छे लोगों के साथ रहता है और उन्हें हर क्षण मदद भी करता है। हमारी पूरी जिन्दगी में कई सारे काम ऎसे हुआ करते हैं […] Read more » God नालायकों से दूर कर देता है भगवान जब खुश होता है
धर्म-अध्यात्म दशमेश गुरु का खालसा और भारत January 4, 2014 / January 4, 2014 by विनोद बंसल | 2 Comments on दशमेश गुरु का खालसा और भारत -विनोद बंसल- इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुगलों के अत्याचारों से हिन्दू समाज को न सिर्फ़ बचाकर बल्कि उसके संस्कार, संस्कृति व स्वाभिमान की रक्षा करने में गुरू गोविन्द सिंह जी का योगदान अविस्मरणीय है। वे शायद दुनिया के एक मात्र ऐसे महापुरुष हैं जिनकी तीन पीढ़ियों ने देश व धर्म की रक्षार्थ […] Read more » Guru Govind Singh दशमेश गुरु का खालसा और भारत
चिंतन जीवन में हमेशा बनी रहे चुनौती January 4, 2014 / January 4, 2014 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment -डॉ. दीपक आचार्य- आजकल इंसान की फितरत में कुछ ऎसी बातें आ गई हैं जिनकी वजह से उसके कर्मयोग की रफ्तार मंद होती जा रही है। उसे अब न जरूरी काम याद रहते हैं, न वह अपनी इच्छा से कोई ऎसे काम कर पाता है जो समाज और परिवेश के लिए जरूरी हों तथा […] Read more » Challenges should be continued in our Life जीवन में हमेशा बनी रहे चुनौती
चिंतन आम आदमी के हस्तक्षेप का साल December 30, 2013 / December 30, 2013 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment -प्रमोद भार्गव- पुरातन और नूतन के संधि-समय में आम आदमी के हस्ताक्षेप से जो राजनीतिक उपलब्धि दिल्ली में सरकार के रूप में फलीभूत हुई है, वह 2014 में समाज, राजनीति और अर्थ क्षेत्रों में बदलाव का बड़ा आधार बनती दिखाई दे रही है। इस लिहाज से नया साल आम आदमी के लिए उम्मीदों से भरा […] Read more » The year of common men interference आम आदमी के हस्तक्षेप का साल
चिंतन क्या अर्थ है धींगामस्ती भरी इस विदाई और स्वागत का December 30, 2013 / December 30, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment – डॉ. दीपक आचार्य- सारी दुनिया आज 2013 को विदाई देकर घुप्प रात के अंधेरे में कृत्रिम चकाचौंध के बीच नए वर्ष 2014 का स्वागत करने को उतावली, व्यग्र और उग्र बनी हुई है। अपना देश हो या दुनिया भर के मुल्क। सभी जगह पूरे दम-खम के साथ ऎसे आयोजन हो रहे हैं, जैसे कि वर्ष नहीं बल्कि पूरी दुनिया आज […] Read more » End of 2013 and welcome New Year क्या अर्थ है धींगामस्ती भरी इस विदाई और स्वागत का
चिंतन संवेदनशीलता के स्तर December 30, 2013 / December 30, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on संवेदनशीलता के स्तर -बीनू भटनागर- संवेदनशीलता होना अर्थात किसी के परेशानी मे कष्ट होना अच्छी बात है, पर कोरी संवेदनशीलता से किसी को लाभ नहीं होता, कोरी सवेदनशीलता से मेरा तात्पर्य है कि किसी की परेशानी मे आप कुछ न करें या न पा रहे हों तो भी दुखी बने रहें। आप किसी से जितना जुड़े होते […] Read more » access of sensibility संवेदनशीलता के स्तर
चिंतन अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती December 30, 2013 / December 30, 2013 by अभिनव शंकर | 1 Comment on अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती प्रिय अरविन्द केजरीवाल जी, नमस्कार ! पिछले कुछ दिनों से आपको पत्र लिखने के लिए सोच रहा था. पर एक आम आदमी कि परेशानियां तो आप जानते ही है। घर-ऑफिस कि जिम्मेदारियों के बीच समय निकालते निकालते इतने दिन निकल गए। इस देरी का हालांकि फायदा ये हुआ है कि इस बीच आप दिल्ली […] Read more » A letter to Arvind Kejriwal अरविन्द केजरीवाल के नाम एक पाती
धर्म-अध्यात्म क्या रिलिजन या मजहब हमारे “धर्म” को परिभाषित कर सकता है ? December 28, 2013 / December 28, 2013 by शिवेश प्रताप सिंह | Leave a Comment -शिवेश प्रताप- संत आगस्तीन एवं अंग्रेजी भाषा के विद्वान टॉम हार्पर और जोसफ कैम्पबेल के अनुसार रिलिजन शब्द दो शब्दों री (पुनः) एवं लिगेयर (बांधना) से बना है जिसका अर्थ है बार बार बांधना या व्यक्ति को ईशु से जोड़ना | क्या किसी पर कोई ईश्वर थोपे जाने का विषय है ? मजहब शब्द इस्लाम में ज़हाबा […] Read more » can religion define 'Dharm' ? क्या रिलिजन या मजहब हमारे “धर्म” को परिभाषित कर सकता है ?
धर्म-अध्यात्म योगवासिष्ठ : एक विलक्षण दार्शनिक ग्रन्थ December 2, 2013 / December 2, 2013 by ममता त्रिपाठी | 6 Comments on योगवासिष्ठ : एक विलक्षण दार्शनिक ग्रन्थ ममता त्रिपाठी योगवासिष्ठ का भारतीय दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । एक ओर जहाँ इस ग्रन्थ में उच्च दार्शनिक विमर्श के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर यह साहित्यिक मञ्जुलता को समाहित करता हुआ चलता है । आख्यान, कथा, कहानियों जैसे सर्वजनग्राह्य माध्यम का सहारा लेकर बहुत ही ललित शैली में दर्शन के गूढ़तम […] Read more »
धर्म-अध्यात्म वेदों में मोक्ष का स्वरुप November 22, 2013 by डॉ.मृदुल कीर्ति | 3 Comments on वेदों में मोक्ष का स्वरुप डॉ. मृदुल कीर्ति मोक्ष, मुक्ति,निर्वाण——की चाहना अर्थात इसके ठीक पीछे किसी बंधन की छटपटाहट भी ध्वनित है. यदि इन शब्दों का अस्तित्व है तो कदाचित इसकी सम्भावना के बीज भी इसी में समाहित है. कर्मों के तीन प्रारूप संचित,प्रारब्ध और क्रियमाण का कर्म चक्र जाल है. कृत कर्मों का प्रारब्ध—–जो अवश्य ही भोगना ही पड़ता […] Read more »
धर्म-अध्यात्म आदि ग्रन्थ में शब्द से अर्थ तक की यात्रा November 1, 2013 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | Leave a Comment डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री आदि ग्रन्थ में कबीर जी की वाणी भी शामिल की गई है । कबीर मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के अग्रणी स्तम्भों में से गिने जाते हैं । उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में तारतम्य बिठाने का भरसक प्रयास किया । इस्लाम को मानने वाले विदेशी आक्रमणकारियों ने , भारत के बहुत बड़े भूभाग […] Read more » आदि ग्रंथ