कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म जारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है, स्वयं पर विजय प्राप्त करना May 11, 2025 / May 11, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment वैशाख पूर्णिमा इस बार 12 मई 2025 को है।इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव मनाया जाता है।इसे ‘बुद्ध पूर्णिमा’, ‘पीपल पूर्णिमा’ और ‘बुद्ध जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि इस दिन का संबंध न केवल भगवान बुद्ध से है, बल्कि यह दिन भगवान विष्णु को […] Read more » 12 मई वैशाख पूर्णिमा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म तीर्थ भारतवर्ष की आत्मा हैं May 3, 2025 / May 3, 2025 by डॉ.वेदप्रकाश | Leave a Comment चार धाम यात्रा शुरू डॉ.वेदप्रकाश तीर्थ भारतवर्ष की आत्मा हैं। प्रयागराज महाकुंभ के बाद चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है। भारतवर्ष के आत्म तत्व, जीवन तत्व, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व एवं समग्रता में यदि भारत को जानना है तो तीर्थ एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। भारतभूमि समग्रता में देवभूमि है। यहां के कण […] Read more » Pilgrimages are the soul of India
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म आदि शंकराचार्य ने हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित किया May 1, 2025 / May 1, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment आदि शंकराचार्य जयन्ती – 2 मई, 2025 – ललित गर्ग- महापुरुषों की कीर्ति युग-युगों तक स्थापित रहती। उनका लोकहितकारी चिंतन, दर्शन एवं कर्तृत्व कालजयी होता है, सार्वभौमिक, सार्वदैशिक एवं सार्वकालिक होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता हैं। आदि शंकराचार्य हमारे ऐेसे ही एक प्रकाशस्तंभ हैं जिन्होंने एक महान हिंदू धर्माचार्य, दार्शनिक, गुरु, योगी, […] Read more » fearless and transparent आदि शंकराचार्य जयन्ती - 2 मई
धर्म-अध्यात्म श्रीकृष्ण-भक्ति के दिव्य एवं अलौकिक प्रतीक हैं सूरदास April 30, 2025 / April 30, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment सूरदास जयन्ती- 2 मई, 2025– ललित गर्ग-इस संसार में यदि सबसे बड़ा कोई संगीतकार है तो वो हैं श्रीकृष्ण। जिस प्रकार से तत्व, रज और तम-इन तीनों गुणों के समन्वय को प्रकृति कहा गया है, उसी प्रकार से गायन, वादन और भक्ति इन तीनों में जो रमा हो, जो पारंगत हो उसे श्रीकृष्ण-भक्त गया गया […] Read more » Surdas is a divine and supernatural symbol of devotion towards Lord Krishna श्रीकृष्ण-भक्ति के दिव्य एवं अलौकिक प्रतीक सूरदास
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म अक्षय तृतीया: समृद्धि, पुण्य और शुभारंभ का पर्व April 29, 2025 / April 29, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है। ‘अक्षय’ का अर्थ होता है—जो कभी क्षय (नाश) न हो। यही कारण है कि यह दिन शुभ कार्यों, दान-पुण्य, निवेश और नए आरंभ के लिए […] Read more » Akshaya Tritiya: A festival of prosperity virtue and beginnings अक्षय तृतीया: समृद्धि पुण्य और शुभारंभ का पर्व
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म शोकाकुल अर्जुन को गीता वाणी से मिली मुक्ति April 29, 2025 / April 29, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित सेना के मध्य सभी सगे सम्बंधियो को महाभारत युद्ध में शामिल देख अर्जुन शोक से ग्रसित हो गया तब श्रीभगवान श्रीकृष्ण उन्हें गीता के ज्ञान द्वारा युद्ध के लिए प्रेरित करते है किन्तु अर्जुन को भगवान् की वाणी सुनायी नहीं पड़ती; किन्तु कृष्ण ने देखा […] Read more » Grief-stricken Arjuna found relief from the words of the Gita गीता वाणी से मिली मुक्ति
धर्म-अध्यात्म अक्षय तृतीया: जीवन को समृद्ध और सार्थक बनाने का पर्व April 29, 2025 / April 29, 2025 by संदीप सृजन | Leave a Comment –संदीप सृजन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि जिसे अक्षय तृतीया या आखा तीज कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है। यह अक्षय तृतीया का नाम ‘अक्षय’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘जो कभी नष्ट न हो’ या ‘शाश्वत’। इस दिन किए गए शुभ कार्य, दान, पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक कृत्यों को अक्षय फलदायी माना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं में भी इसका विशेष स्थान है। भारत की विभिन्न धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं में अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है। हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का दिन कई पौराणिक और धार्मिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। इस दिन को सतयुग और त्रेतायुग के प्रारंभ का दिन भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त, इस तिथि से जुड़े कई कथानक और मान्यताएँ इसे और भी पवित्र बनाती हैं। अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। परशुराम, जो अपने पराक्रम और धर्म की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के नर-नारायण अवतार की तपस्या भी अक्षय तृतीया के दिन से जुड़ी है। इस दिन बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं, जो हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। यह घटना इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना अक्षय तृतीया के दिन से शुरू की थी। इसके साथ ही, इस दिन गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण भी हुआ था। इसलिए, इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा का आतिथ्य स्वीकार किया था। सुदामा ने श्रीकृष्ण को साधारण चावल (अक्षत) भेंट किए, जिसे भगवान ने बड़े प्रेम से ग्रहण किया और सुदामा को अपार धन-समृद्धि प्रदान की। इस कथा के कारण, अक्षय तृतीया को दान और आतिथ्य का विशेष महत्व दिया जाता है। जैन धर्म में अक्षय तृतीया जैन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ऋषभदेव ने एक वर्ष तक कठोर तपस्या की और इस दिन हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने उन्हें इक्षु रस (गन्ने का रस) पिलाकर उनका पारणा (उपवास खोलना) कराया। यह घटना जैन समुदाय में ‘वर्षी तप’ के रूप में जानी जाती है। इस दिन जैन तीर्थ पालिताणा (गुजरात) और हस्तिनापुर (मेरठ) में विशेष आयोजन होते है। जैन धर्म के अनुयायी उपवास, दान, और पूजा करते हैं। कई जैन मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं, और भक्त इक्षु रस का दान करते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व अक्षय तृतीया का दिन शुभ कार्यों के लिए अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। इस दिन बिना किसी मुहूर्त के विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नए व्यवसाय की शुरुआत, और अन्य महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शुरू किए गए कार्यों का फल स्थायी और शुभ होता है। भारत के कई हिस्सों में, विशेषकर राजस्थान, गुजरात, और उत्तर प्रदेश में, अक्षय तृतीया को विवाह के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन हजारों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। सामाजिक स्तर पर, यह दिन परिवारों और समुदायों को एकजुट करने का अवसर प्रदान करता है। व्यापारी वर्ग के लिए अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। इस दिन नए व्यवसाय की शुरुआत, दुकान का उद्घाटन, और निवेश जैसे कार्य किए जाते हैं। सोने और चाँदी की खरीदारी भी इस दिन बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि यह धन-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। अक्षय तृतीया को दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन जल, अन्न, वस्त्र, और धन का दान करने की परम्परा है। सामाजिक दृष्टिकोण से, यह दिन समाज में समानता और सहायता की भावना को बढ़ावा देता है। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान की जाती हैं। कृषि और ग्रामीण परम्पराएँ भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में, अक्षय तृतीया का संबंध कृषि और प्रकृति से है। इस दिन किसान अपने खेतों में पूजा करते हैं और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। उत्तर भारत में, विशेषकर राजस्थान और मध्य प्रदेश में, इस दिन ‘आखा तीज’ के रूप में खेतों में सामूहिक उत्सव मनाए जाते हैं। किसान अपने बैलों और कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं, और सामुदायिक भोज का आयोजन करते हैं। अक्षय तृतीया सामाजिक एकता और उत्सव का प्रतीक भी है। इस दिन लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान के कुछ हिस्सों में लोक नृत्य और गीतों के साथ उत्सव मनाया जाता है। भारत की विविध सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं के कारण, अक्षय तृतीया को अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। अक्षय तृतीया भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है, जो धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिन न केवल भक्ति और पूजा का अवसर प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक एकता, परोपकार, और शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक भी है। हिन्दू, जैन, और अन्य समुदायों में इस पर्व का अलग-अलग रूपों में उत्सव मनाया जाता है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। चाहे वह भगवान परशुराम की पूजा हो, सुदामा-कृष्ण की मित्रता का स्मरण हो, या जैन धर्म में वर्षी तप का आयोजन, अक्षय तृतीया हर रूप में अक्षय फलदायी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्चे मन से किए गए कार्य और दान कभी नष्ट नहीं होते बल्कि वे हमारे जीवन को समृद्ध और सार्थक बनाते हैं। संदीप सृजन Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म समरसतावादी समाज के निर्माता थे भगवान परशुराम April 29, 2025 / April 29, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment भगवान परशुराम जयंती अक्षय तृतीया ३० अप्रैल के अवसर पर:- प्रमोद भार्गव समरसतावादी समाज निर्माण का दायित्व उन लोगों के हाथ होता है, जिनकी मुट्ठी में सत्ता के तंत्र होते हैं। अतएव जब परषुराम के हाथ सत्ता के सूत्र आए तो उन्होंने समाजिक […] Read more » भगवान परशुराम
धर्म-अध्यात्म ईसा मसीह : अहिंसा, करुणा और सत्य के अमर प्रतीक April 17, 2025 / April 17, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment गुड फ्राइडे (18 अप्रैल) पर विशेष Read more » ईसा मसीह
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राम भक्त हनुमान सिखाते हैं जीवन जीने की कला April 11, 2025 / April 11, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (हनुमान जयंती विशेष, 12 अप्रैल 2025) संदीप सृजन हनुमान जी भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। रामायण के इस महान पात्र को न केवल एक शक्तिशाली योद्धा और भक्त के रूप में जाना जाता है, बल्कि वे एक ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व भी हैं जो हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। […] Read more » हनुमान हनुमान जयंती
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म आंजन धाम : हनुमान जी की जन्मस्थली April 11, 2025 / April 11, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment हनुमान जयंती विशेष, 12 अप्रैल 2025) कुमार कृष्णन हनुमान भारत वर्ष के लोकदेवता हैं। चंडी, गणपति और शिवलिंग की तरह वे भी उस भारतीयता के प्रसव क्षणों में उदित हुए हैं जो आर्य एवं आर्येतर अर्थात आदि निषाद किरात, द्रविड़ और आर्य के चतुरंग समन्वय से उत्पन्न हुई हैं। अपने विकसित रूप में यह भारतीय […] Read more » Anjan Dham: Birthplace of Hanuman हनुमान जयंती
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म प्राकृतिक उपचार की विधि है यज्ञोपवीत संस्कार April 7, 2025 / April 7, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव यह प्रबंध सनातन संस्कृति में ही निहित है, जिसमें प्रत्येक संस्कार को शारीरिक उपचार के प्राकृतिक शोध से जोड़कर समाज के प्रचलन में लाया गया है। इन्हीं में ही एक है यज्ञोपवीत अर्थात उपनयन या जनेऊ संस्कार। वैदिक काल में स्थापित इस संस्कार से तात्पर्य वेदों के पठन, श्रवण तथा अध्ययन-मनन से है। इन लक्ष्यों […] Read more » यज्ञोपवीत संस्कार