टेलिविज़न बॉलीवुड की दादी July 15, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- विख्यात फिल्म, रंगमंच कलाकार और नृत्यांगना जोहरा सहगल के निधन से भारतीय सिनेमा को बड़ी क्षति पहुंची जिसकी लंबे समय तक भरपाई नहीं हो पाएगी.. जोहरा सहगल ने अपने लंबे करियर में हिन्दी के अलावा अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया था. वो भारतीय सिनेमा की सबसे बुजुर्ग अभिनेत्री थी लेकिन उम्र […] Read more » जोहरा सहगल बॉलीवुड की दादी
साक्षात्कार सिनेमा फिल्मकार मुजफ्फर अली से मनीष कुमार जैसल की बातचीत April 13, 2014 / April 13, 2014 by मनीष जैसल | Leave a Comment हिन्दी फिल्म जगत में मुजफ्फर अली एक लब्ध-प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं. एक संवेदनशील और सरोकारी फिल्म निर्देशक के रूप में उन्होने तीन दशक से ज्यादा का वक्त भारतीय सिनेमा को दिया है. साथ ही अपनी विशिष्ट पहचान भी अर्जित की है. सन १९४४ में लखनऊ के एक राजसी परिवार में जन्मे मुजफ्फर की तालीम और तरबियत […] Read more »
सिनेमा सलमान खान की क्यों नहीं हुई जय हो ? February 1, 2014 / February 1, 2014 by दीपक कुमार | Leave a Comment -दीपक कुमार- 24 जनवरी को जब फिल्म ’जय हो’ रिलीज हुई तो सबके मन में एक ही सवाल था कि यह फिल्म कितनी कमाई करेगी? सबकी नजरें इस बात पर थी कि यह फिल्म ’कृष’ ,’ चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘धूम 3’ को कमाई में पीछे छोड़ती है कि नहीं । मेरे जैसे तमाम लोग इस […] Read more » jai ho movie Salman Khan सलमान खान की क्यों नहीं हुई जय हो ?
मनोरंजन जब कला बन जाए कारोबार! January 12, 2014 / January 12, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- किसी जमाने में जब कला का आज की तरह बाजारीकरण नहीं हो पाया था, तब किसी कलाकार या गायक से अपनी कला के अनायास और सहज प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। शायद यही वजह है कि उस दौर में किसी गायक से गाने की फरमाइश करने पर अक्सर […] Read more » comedy show जब कला बन जाए कारोबार!
खेल जगत खेल संस्थाओं पर हो खिलाड़ियों नियन्त्रण : सुप्रीम कोर्ट का आदेश कितना प्रासंगिक? December 6, 2013 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | Leave a Comment डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ भारत की न्यायपालिका पर अनेक बार खुद शीर्ष अदालत के प्रमुख जज ही भ्रष्ट होने का आरोप लगा चुके हैं। इसके उपरान्त भी लोगों को अभी भी न्यायपालिका में ही उम्मीद की किरण नजर आती है। यह अलग बात है कि न्यायपालिका की ओर से भी न्याय को कसौटी पर कसने […] Read more »
खेल जगत सचिन को भारत रत्न : “न भूतो न भविष्यति” November 26, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on सचिन को भारत रत्न : “न भूतो न भविष्यति” एन.जे.राव क्रिकेट के भगवान् को सब कुछ मिलने के बाद कुछ और मिलना था तो भारत सरकार ने उसकी भी विधिवत घोषणा कर दी| सचिन के चाहने वाले खुश हैं, अच्छी बात है| उन्हें खुश होना भी चाहिए| पर, एक खेल प्रेमी के हिसाब से जब में सोचता हूँ, तो मुझे भारत सरकार का रवैय्या […] Read more »
खेल जगत क्रिकेट का भगवान या हॉकी का जादूगर November 20, 2013 / November 20, 2013 by भगवंत अनमोल | Leave a Comment भगवंत अनमोल आजकल बहस इस बात पर हो रही है कि सचिन और ध्यानचंद में से किसे सबसे पहले भारत रत्न देना चाहिए। इस बात से तो किसी को ऐतराज नहीं होगा कि सचिन भारत रत्न के हकदार नहीं है, बस मामला तूल इस बात पर पकड़ रहा है कि किसे पहले भारत रत्न मिलना […] Read more »
खेल जगत …बनना तो बस किक्रेटर बनना!! November 20, 2013 / November 20, 2013 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on …बनना तो बस किक्रेटर बनना!! तारकेश कुमार ओझा बड़ा होकर तुम क्या बनोगे… जैसे सवाल जैसे हमारे लिए बने ही नहीं थे। क्योंकि हम अपने पैरेंटस के लिए लायबलिटीज या थोड़ा शालीन शब्दों में कहें तो हेल्पिंग हैंडस जैसे थे। स्कूल में पढ़ने के दिनों से हमें माता – पिता का सहारा बनने की सलाह लोगों से बिना मांगे मुफ्त […] Read more »
खेल जगत इतिहास पर वर्तमान की जीत? November 18, 2013 by अब्दुल रशीद | 1 Comment on इतिहास पर वर्तमान की जीत? अब्दुल रशीद सचिन तेंदुलकर यक़ीनन एक महान खिलाड़ी हैं,और उनका क्रिकेट के लिए दिया गया योगदान बहुमूल्य है। संन्यास या रिटायरमेंट एक नियति होता है जिससे नए पीढ़ी को मौक़ा मिलाता है। सचिन जैसे महान खिलाड़ी के संन्यास लेने पर लोगों का भावुक होना लाजमी है,लेकिन भावनाओं में बहकर इतिहास के महान व्यक्तिव को नज़रअंदाज […] Read more »
खेल जगत खेल प्रशासन में गड़बड़ियों के निहितार्थ October 26, 2013 / October 28, 2013 by हिमांशु शेखर | Leave a Comment भारत में खेलों के प्रशासन में जो गड़बडि़यां हैं, वे गाहे-बगाहे सामने आती रहती हैं। कई मामले ऐसे भी आए हैं जिनमें खिलाडि़यों को अपने इशारे पर नचाने के लिए खेलों के प्रशासक कई तरह के तिकड़म करते हैं। ताजा मामला ज्वाला गट्टा का है। भारत में क्रिकेट जैसे खेलों में इतना पैसा है कि […] Read more » Featured खेल प्रशासन
सिनेमा एक थे मन्ना डे October 26, 2013 / October 26, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कौन कहता है कि मन्ना डे अब नहीं रहे? उनकी सुरीली आवाज़ फ़िजाओं में अनन्त काल तक तैरती रहेगी। बेशक उन्हें उनके समकालीन गायक मुकेश, मो. रफ़ी और किशोर की तरह लोकप्रियता नहीं मिल पाई, लेकिन उनका क्लास और उनकी गायकी हर दृष्टि से अपने समकालीनों से बेहतर थी। मन्ना डे मुकेश, रफ़ी, किशोर या […] Read more » एक थे मन्ना डे
सिनेमा सिनेमाः विकृतियों का सुपर बाजार October 25, 2013 / October 25, 2013 by संजय द्विवेदी | 2 Comments on सिनेमाः विकृतियों का सुपर बाजार संजय द्विवेदी जब हर कोई बाजार का ‘माल’ बनने पर आमादा है तो हिंदी सिनेमा से नैतिक अपेक्षाएं पालना शायद ठीक नहीं है। अपने खुलेपन के खोखलेपन से जूझता हिंदी सिनेमा दरअसल विश्व बाजार के बहुत बड़े साम्राज्यवादी दबावों से जूझ रहा है। जाहिर है कि यह वक्त नैतिक आख्यानों, संस्कृति और परंपरा की दुहाई […] Read more »