आलोचना समाज राम बनाम राम जेठामलानी November 24, 2012 / November 24, 2012 by वीरेंदर परिहार | 7 Comments on राम बनाम राम जेठामलानी वीरेन्द्र सिंह परिहार देश के ख्याति-लब्ध अधिवक्ता और भाजपा के राज्यसभा सासंद रामजेठामलानी का गत दिनों का यह कथन काफी तूल पकड़ चुका है कि राम एक बुरे पति थें। गीता में कृष्ण ने कहा है-बड़े लोग जैसा आचरण करते है,आम लोग उसका अनुकरण करते है। अब जहां तक राम के सीता-निष्कासन का प्रश्न है,वह […] Read more » राम राम जेठामलानी
आलोचना हाँ जी, हाँ जी ही नहीं करते रहें November 13, 2012 / November 12, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on हाँ जी, हाँ जी ही नहीं करते रहें हाँ जी, हाँ जी ही नहीं करते रहें कभी सच भी कहने का साहस जुटाएँ डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 आजकल बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोगों का जमघट लगा हुआ है जो हमेशा हर काम में हाँ जी, हाँ जी करते रहने के आदी हो गए हैं। इन लोगों को इस बात से कोई सरोकार […] Read more »
आलोचना जो लूट सके तो लूट ! July 16, 2012 / July 16, 2012 by जावेद उस्मानी | 1 Comment on जो लूट सके तो लूट ! जावेद उस्मानी भला हो सूचना के अधिकार कार्यकर्ता एस सी अ्रग्रवाल का जिन्होने एक बहुत अहम मुकाम पर ऐसी जानकारी निकाली जिसकी इस समय बहुत जरुरत थी। यह सूचना, इसका संकेत है कि, देश बड़ी तेज़ी से दो वर्गों में बंटता जा रहा है जिसका एक छोर स्वर्ग है तो दूसरा छोर नरक है। जाहिर […] Read more »
आलोचना होने लगी है आशीर्वादों की बारिश July 14, 2012 / July 13, 2012 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य होने लगी है आशीर्वादों की बारिश हर कोई पा लेता है आशीर्वाद आजकल आशीर्वाद देना और पाना सबसे सस्ता और सहज काम हो गया है। आशीर्वाद पाने के लिए उतावले लोगों की जितनी भीड़ है उससे कहीं ज्यादा भीड़ आशीर्वाद देने को व्यग्र बैठे लोगों की है। आशीर्वाद देने और पाने वाले […] Read more » आशीर्वादों की बारिश
आलोचना पाखंडी अध्यात्मवादियों’ को बढ़ावा देने की जनता भी ज़िम्मेदार July 13, 2012 / July 12, 2012 by निर्मल रानी | 2 Comments on पाखंडी अध्यात्मवादियों’ को बढ़ावा देने की जनता भी ज़िम्मेदार निर्मल रानी जिस युग में भारतवर्ष को विश्वगुरु कहा जाता था उस समय भी शायद इस देश में इतने तथाकथित ‘गुरु’ नहीं रहे होंगे जितने कि अब देखे जा रहे हैं। टीवी चैनल्स ने इनकी ‘दुकानदारी’ कुछ ज़्यादा ही बढ़ा दी है। जिसे देखो वही अध्यात्म की अपनी अलग दुकान सजाए बैठा है। इस प्रकार […] Read more »
आलोचना साहित्य में घिसापिटापन और अशोक वाजपेयी की नकली चिन्ताएं June 18, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on साहित्य में घिसापिटापन और अशोक वाजपेयी की नकली चिन्ताएं जगदीश्वर चतुर्वेदी आलोचक अशोक वाजपेयी को यह इलहाम हुआ है कि हिन्दी की गोष्ठियों में घिसापिटापन होता है। सवाल यह है कि उस घिसेपिटेपन से बचने के लिए हिन्दी के प्रायोजकों और गुटबाज लेखकों ने क्या किया ?पहले अशोक वाजपेयी की महान खोज पर ध्यान दें। उन्होंने लिखा है- “हम सभी इसके दोषी हैं। हिंदी […] Read more » अशोक वाजपेयी
आलोचना परवर्ती पूंजीवाद और साहित्येतिहास-भाग-2 May 28, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी उत्तर आधुनिकतावादी विकास का प्रधान लक्षण है व्यवस्थागत भ्रष्टाचार,नेताओं में संपदा संचय की प्रवृत्ति, अबाधित पूंजीवादी विकास,उपभोक्तावाद की लंबी छलांग और संचार क्रांति। इन लक्षणों के कारण सोवियत अर्थव्यवस्था धराशायी हो गयी। सोवियत संघ और उसके अनुयायी समाजवादी गुट का पराभव एक ही साथ हुआ। सामान्य तौर इस पराभव को मीडिया में साम्यवाद […] Read more »
आलोचना परवर्ती पूंजीवाद और साहित्येतिहास- भाग-1 May 28, 2012 / May 28, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on परवर्ती पूंजीवाद और साहित्येतिहास- भाग-1 जगदीश्वर चतुर्वेदी हिंदी साहित्य का प्रचलित इतिहास अधूरा है। रामचन्द्र शुक्ल का इतिहास हो या हजारीप्रसाद द्विवेदी का लिखा इतिहास हो। इन दोनों में अधूरापन साफ नजर आता है। इसके बाबजूद छात्रों को हम यही पढ़ाते हैं कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मुकम्मल इतिहास लिखा था। इतिहास के अधूरेपन का पहला प्रमाण है इसमें स्त्री […] Read more »
आलोचना जनसत्ता का प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम और के. विक्रम राव का सफेद झूठ / जगदीश्वर चतुर्वेदी May 25, 2012 / June 28, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on जनसत्ता का प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम और के. विक्रम राव का सफेद झूठ / जगदीश्वर चतुर्वेदी जगदीश्वर चतुर्वेदी जनसत्ता अपनी प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम में एक कदम आगे बढ़ गया है. उसने के.विक्रम राव का जनसत्ता के 13मई 2012 के अंक में “न प्रगति न जनवाद, निपट अवसरवाद” शीर्षक से लेख छापा है। यह लेख प्रगतिशील लेखकों और समाजवाद के प्रति पूर्वग्रहों से भरा है। यह सच है राव साहब की लोकतंत्र […] Read more » के. विक्रम राव जनसत्ता प्रगतिशील मार्क्सवाद वैचारिक अश्पृश्यता
आलोचना महत्वपूर्ण लेख ‘नामवर सिंह आलोचक कम और साहित्य के प्रौपेगैण्डिस्ट ज्यादा नजर आते हैं’ May 10, 2012 / June 6, 2012 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on ‘नामवर सिंह आलोचक कम और साहित्य के प्रौपेगैण्डिस्ट ज्यादा नजर आते हैं’ जगदीश्वर चतुर्वेदी हाल ही में राजकमल प्रकाशन के द्वारा नामवर सिंह के विचारों,आलोचना निबंधों ,व्याख्यानों और साक्षात्कारों पर केन्द्रित 4 किताबें आयी हैं। चार और आनी बाकी हैं। इन किताबों का ‘कुशल’ संपादन आशीष त्रिपाठी ने किया है। ये किताबें आधुनिक युग में विचारों की भिड़ंत के सैलीबरेटी रूप का आदर्श नमूना है। सैलीबरेटी आलोचना […] Read more » आलोचना नामवर सिंह
आलोचना रानी को कौन कहे कि अग्गा ढक May 8, 2012 / May 8, 2012 by एल. आर गान्धी | 2 Comments on रानी को कौन कहे कि अग्गा ढक एल.आर.गाँधी महामहिम अपनी २३वी विदेश यात्रा के साथ अपनी अंतिम घुमक्कड़ जिज्ञ्यासा पूरी कर लेंगी और इसके साथ ही राष्ट्राध्यक्षों में सबसे अधिक विदेश यात्रु महामहिम का कीर्तिमान अपने नाम कर लेंगी . महामहिम पर अब तक करीबन २०६ करोड़ रूपए, इस घुमाकड़ जिज्ञासा को पूरे करने पर सरकार के खर्च आये. राजमाता के मित्त्व्ययता […] Read more »
आलोचना आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा… May 8, 2012 / May 8, 2012 by संजय स्वदेश | 1 Comment on आ केहू खराब नइखे, सबे ठीक बा… संजय स्वदेश जब भी किसी राज्य की सरकार बदलती है, समाज की आबो-हवा करवट लेती है। भले ही इस करवट से कांटे चुभे या मखमली गद्दे सा अहसास हो, परिर्वतन स्वाभाविक है। बिहार में नीतीश से पहले राजद का शासन था। जब लालू प्रसाद का शायन काल आया था तब भी कमोबेश वैसे ही सकारात्मक […] Read more » police and humanity police and society