गजल वक्त है प्यार से ज़हनों में उतर जाने का…. February 5, 2013 / February 6, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment ज़िंदगी नाम है ख़तरों से उभर आने का, खुदकशी नाम है डर डर के भी मर जाने का। चुप ना बैठो कि अब हालात से लड़ना सीखो, है तरीक़ा यही हालात संवर जाने का। घर तुम्हारा भी तो उस आग में जल सकता है, शौक़ जिसका है तुम्हें औरों पे बरसाने का। तुम […] Read more » वक्त है प्यार से ज़हनों में उतर जाने का....
गजल गजल- सत्येन्द्र गुप्ता February 2, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment मन लगा यार फ़कीरी में क्या रखा दुनियादारी में ! धूल उड़ाता ही गुज़र गया तो क्या रखा फनकारी में ! वो गुलाब बख्शिश में देते हैं जब भी मिलते हैं बीमारी में ! फिर हिसाब फूलों का लेते हैं वो ज़ख्मों की गुलकारी में ! किस किस को समझाओगे कुछ नहीं रखा लाचारी में […] Read more »
गजल कौन किसको क्या कहे . । February 1, 2013 / February 1, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment कामिनी कामायनी रायगा है उनकी महफिल,है वहाँ दीवाने सब , बेरहम,महरुम बंदे ,बदगुमानी से है भरे । किसको है फुर्सत यहाँ पर ,बज्म का देखे मिजाज सब कहर ढाने को आगे ,सब जहर से हैं भरे । वह शिकस्ता नाव अपनी कब से कोने में खड़ी जाना था उस पर जिनको ,सब के सब डरके […] Read more »
गजल आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है…. January 31, 2013 / January 31, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी बर्क़ ने मेरा जब भी आशियां जलाया है, अज़्म की सदाक़त को और भी बढ़ाया है। हादसा कोई जब भी पेश राह में आया, सो चुके ज़मीरों को मैंने फिर जगाया है। दूर तक अंधेरों की फ़िक्र मैं नहीं करता, आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है। उस चिराग़ […] Read more »
गजल बदनाम सड़क , ,। January 22, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment कामिनी कामायनी भटकते राह मे बर्बादिओ के सुर्ख किस्से हैं , जकड़ लेगा तुम्हें मत जाओ उन बदनाम सड़कों पर । जहां पर जुल्म ढाए थे दरिंदे आशिकों की जात , अभी तक रो रही है आह बन बदनाम सड़कों पर । सिमटती है बहाने से बिलखती सूनी ये गलियां डराता है किसी का दर्द […] Read more »
गजल जां देने लेने से शहादत नहीं मिलती…. January 15, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी फ़िर्क़ो का जाल सिर्फ़ ज़माने में रह गया, इंसान अब असल में फ़साने में रह गया। बेचे उसूल लोगों ने दौलत कमा भी ली, मैं अपने उसूलों को निभाने में रह गया। झूठों ने मेरे क़त्ल का फ़र्मान दे दिया, होंठो पे मैं सच को सजाने में रह गया। अगुवा […] Read more »
गजल इंसां हो दरिंदों को ना फिर मात दीजिये…. January 15, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी आया है नया साल नई बात कीजिये, फिर जिं़दगी की नई शुरूआत कीजिये। ग़म की सियाह रातों से बाहर तो आइये, खु़शियों के उजालों की नई बात कीजिये। ये आग लूट रेप की वहशी सी हरकतें, इंसां हो दरिंदों को ना फिर मात दीजिये। दुनिया भी संवर जायेगी खुद को […] Read more »
गजल आंखें तो उनके पास हैं लेकिन नज़र नहीं…. January 15, 2013 / January 15, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 1 Comment on आंखें तो उनके पास हैं लेकिन नज़र नहीं…. इक़बाल हिंदुस्तानी कैसे वतन जला उन्हें आता नज़र कहीं, आंखें तो उनके पास हैं लेकिन नज़र नहीं। ज़ालिम है कौन हमको भी यह खूब है पता, कुछ मस्लहत है चुप हैं मगर बेख़बर नहीं। सच्ची हो बात तल्ख़ हो लेकिन कहेंगे हम, फ़नकार की क़लम पे किसी का जबर नहीं। हो भाई […] Read more »
गजल अपनी ही आस्तीन में एक सांप है पला….. December 28, 2012 / December 28, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी है रहनुमा मेरा वो मेरे साथ ही चला, रहज़न नहीं मिला कोई किसने मुझे छला। औरों को रोशनी मिले वो इसलिये जला, इंसान वो लगा मुझे दुनिया से यूं भला। झूठा ना फ़रेबी है मगर आइना है वो, इंसान वो ज़माने को यूं ही तो है खला। रोता किसी को […] Read more »
गजल बिखरा पड़ा है हर इक पर्चा मेरी वफ़ा का December 28, 2012 / December 28, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment परमजीत सिंह ! क्या खूब कर रही है चर्चा मेरी वफ़ा का ! वो आये गर हमारे पहलु में पूछ लेंगे ? क्या तुमने बना रक्खा है चेहरा मेरी वफ़ा का ! इक तुम ही मिले हो जो मुझे जानते नहीं ? हर शक्स जानता है किस्सा मेरी वफ़ा का ! सच […] Read more »
गजल बन जाओगे मिसाल ज़माने के वास्ते….. December 21, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी ज़ालिम को जा रहा हूं बताने के वास्ते, मेरा लहू नहीं है बहाने के वास्ते। मुफ़लिस हैं शेरदिल हैं मगर सो गये हैं जो, रहबर बनो तो उनको जगाने के वास्ते। हक़ पे हो मुजाहिद हो तो कोहराम मचादो, बन जाओगे मिसाल ज़माने के वास्ते। खुद अपने घर को […] Read more »
गजल बाहर तकरार देखिये December 13, 2012 / December 13, 2012 by श्यामल सुमन | Leave a Comment बाहर तकरार देखिये कैसा अजीब रिश्ता, व्यवहार देखिये लड़ते हैं, झगड़ते हैं मगर प्यार देखिये रहते नहीं जुदा ये कभी बात मजे की दिल में है प्यार, बाहर तकरार देखिये बाहर में कहते शौहर इक शेर है वही जाते ही घर में बनते हैं सियार देखिये समझौता हुआ ऐसा बेगम से काम […] Read more »