इक़बाल हिंदुस्तानी
ज़ालिम को जा रहा हूं बताने के वास्ते,
मेरा लहू नहीं है बहाने के वास्ते।
मुफ़लिस हैं शेरदिल हैं मगर सो गये हैं जो,
रहबर बनो तो उनको जगाने के वास्ते।
हक़ पे हो मुजाहिद हो तो कोहराम मचादो,
बन जाओगे मिसाल ज़माने के वास्ते।
खुद अपने घर को आज जलाना पड़ा मुझे,
तारीकियों से शहर को बचाने के वास्ते।
हूं बेक़सूर चाहे क़लम सर को कीजिये,
लेकिन ये सर नहीं है झुकाने के वास्ते।
अपना लहू जला दिया मैंने चिराग़ में,
मग़रूर आंधियों को हराने के वास्ते।
महरूम थे जो पांव से वो दौड़ने लगे,
मैं जब चला हूं उनको चलाने के वास्ते।
नोट-मुफ़लिस-गरीब, रहबर-नेता, मुजाहिद-संघर्ष करने वाले,
तारीकियों-अंधेरे, क़लम-काटना, मग़रूर-घमंडी, महरूम-वंचित।।
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