कहानी साहित्य लधुकथा(पुस्तकवध्द) June 15, 2013 / June 15, 2013 by नरेंद्र भारती | 1 Comment on लधुकथा(पुस्तकवध्द) आज रविवार था ,विजय को भी दफतर से अवकाश था । सोचा परिवार सहित बाजार घूमने चलें । विजय की पत्नी नेहा व बच्चे भी जल्दी से तैयार हुए और गाड़ी में बैठकर चल दिए । विजय की पत्नी नेहा व बेटी स्नेहा ने शापिगं की । खरीदारी करने के बाद विजय एक बुकस्टाल पर […] Read more » पुस्तकद्ध
कहानी एक थी माया ………….!!! June 13, 2013 / June 13, 2013 by विजय कुमार सप्पाती | 3 Comments on एक थी माया ………….!!! मैं सर झुका कर उस वक़्त बिक्री का हिसाब लिख रहा था कि उसकी धीमी आवाज सुनाई दी, “अभय, खाना खा लो” ,मैंने सर उठा कर उसकी तरफ देखा, मैंने उससे कहा ,” माया , मै आज डिब्बा नहीं लाया हूं ।” दरअसल सच तो यही था कि मेरे घर में उस दिन खाना नहीं बना था । गरीबी का वो ऐसा दौर था कि बस कुछ पूछो […] Read more » एक थी माया
कहानी साहित्य बलिदान-विनय साहू June 12, 2013 by विनय साहू | Leave a Comment थाने में एनकाउंटर में मारे गए अमजद की लाश रखी हुई है। उसी के बगल पुलिस की रोबदार वर्दी में मोहनीश बैठा हुआ था। हमेशा चुस्त फुर्त रहने वाले ,पुलिस विभाग का शेर कहलाने वाले मोहनीश के चेहरे पर न ही वो रोब था, न वो हिम्मत ,ये मोहनीश की ज़िन्दगी का पहला एनकाउंटर नहीं […] Read more » बलिदान
कहानी मैं तो आपकी हूं पापा May 23, 2013 / May 23, 2013 by शिखा श्रीवास्तव | Leave a Comment अरे! सुनती हो निक्को की मम्मी, लड़के वालों ने अपनी निक्को को पसंद कर लिया है। कितना परेशान से थे दो साल से। चलो भगवान ने हमारी सुन ली।’ घर के बड़े दरवाजे से दीनानाथ तेज कदमों और चेहरे पर ढेर सारी खुशियों को समेटे बाहर से ही यह खुशखबरी सुनाते हुए आए। क्या बात […] Read more » story by shikha srivastav मैं तो आपकी हूं पापा
कहानी बच्चों का पन्ना झुन्ने और शन्नो April 22, 2013 / April 22, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बसंत उभार पर था|और जब यह शहंशाह उभार पर होता है तो फिर क्या कहनें| जागते हुये भी लोगों को रंगीन और हसीन सपने आने लगते हैं|चारों तरफ बहार ,क्या जंगल क्या गांव और क्या शहर,मजे ही मजे|पीली सरसों, गेहूं की पकती हुईं बालियां और आम […] Read more » झुन्ने और शन्नो
कहानी ..ओवो ये ज़द्म्ये वलाख… March 18, 2013 / March 18, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on ..ओवो ये ज़द्म्ये वलाख… (दिसइस द लास्ट ट्रेन ….) कहीं पढ़ा था युद्ध कहीं भी हो मारी तो औरत ही जाती है|संयुक्त युगोस्लाविया का अंग क्रोअशिया –तेरह शताब्दियों का कबीलाई इतिहास लिए वर्षों से अपनी स्वायत्तता की मांग करता रहा |कभी वह आस्ट्रो-हंगरियन गंठजोड़ का अंग बना तो कभी अपनी संस्कृति ,भाषा की रक्षा के लिए लड़ता रहा, सपना […] Read more »
कहानी चमनलाल की मौत March 15, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on चमनलाल की मौत चमनलाल मर गए। वैसे तो एक दिन उन्हें मरना ही था। हर कोई मर जाता है । इस फानी दुनिया का और जीवन का यही दस्तूर है , सो जैसे सब एक न एक दिन मर जाते है , वैसे ही वो भी एक दिन मर गए। वैसे कोई ख़ास बात तो नहीं थी उनके […] Read more »
कहानी “देश-परदेश” March 13, 2013 / March 13, 2013 by निधि चौधरी | 3 Comments on “देश-परदेश” निधि चौधरी एयरपोर्ट पर उतरते ही देश की जानी-पहचानी बयार ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया । सौंधी-सौंधी पुरवाई मेरी रगों में बहने लगी । इसी एयरपोर्ट से दुल्हन के वेश में रवानगी हुई थी मेरी, सुन्दर सपनों के दहेज के साथ । अब जब लौटी हूँ तो मांग का सिंदूर, हाथों की चूड़ियां, […] Read more »
कहानी कहानी / सामञ्जस्य November 30, 2012 by गंगानन्द झा | Leave a Comment मानिक बन्द्योपाध्याय भीतर और बाहर से गम्भीर होकर उस दिन प्रमथ घर लौटा। बहुत दिनों के बाद आज वह गहरी शान्ति महसूस कर रहा है, परम मुक्ति का स्वाद आज उसे मिला है। सोचविचार कर, भावना चिन्ता कर मन स्थिर कर पाने के बाद ही आश्चर्यजनक रूप से उसका मन शान्त हो गया है। आज […] Read more »
कहानी बग़ीचा (लघुकथा) October 21, 2012 / October 21, 2012 by बीनू भटनागर | 5 Comments on बग़ीचा (लघुकथा) श्री भास्कर चतुर्वेदी को हमेशा से फूलों व फलों के बग़ीचों से बहुत लगाव था। सेवानिवृत्त होने के बाद उनका ये शौक जुनून बन गया था। उनके बंगले के चारों ओर ज़मीन थी जिसे उन्होने बहुत व्यव्थित तरीके से संवारा था। छोटे से शहर मे उनके बग़ीचे की बहुत चर्चा थी। आरंभ मे उन्होने विशेषज्ञों […] Read more »
कहानी बस थोड़ी सी समझदारी-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 26, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment धरमपुरा के राजा शिवपाल सिंह परोपकारी दयालु और अपनी प्रजा के बड़े हितैषी थे|आम जनता के कष्ट और दुख दर्द जानने के लिये वे सप्ताह में एक बार जनता दरवार लगाया करते थे|किंतु उनके दरवार का तरीका बिल्कुल अलग था|वह लोगों को राज महल बुलाने के बदले स्वयं जनता के घर उनसे मिलने जाते थे|ऐसे […] Read more » बस थोड़ी सी समझदारी
कहानी कल्याणी का कोप September 22, 2012 / September 25, 2012 by सुधीर मौर्य 'सुधीर' | Leave a Comment सुधीर मौर्य ‘सुधीर’ जसिरापुर और नसिरापुर दो गावं. इन दोनों गावं को विभाजित करके बहती हुई कल्याणी नदी. रात को जब इन गावों में बसे लोग दिन में खेत में किये गए हाड़तोड़ मेहनत की थकान खटिया पर लेट कर दूर कतरे उस समय कल्याणी की बहती धरा के कल-कल की ध्वनि उन थके-हारों किसानो […] Read more » Story