कविता अट्टहास सुन रहे हो काल का???? September 3, 2015 by राम सिंह यादव | Leave a Comment इस धरती को जीने योग्य कैसे बनाएँ? अट्टहास सुन रहे हो काल का???? अबूझ गति खंड की जो क्षण का वेग है।।।।।। अनसुलझे किस्सों में हिन्दू – मुसलमान हैं……….. असंख्य धर्म हैं अनंत मर्यादाएं हैं………. सब जीवंत हैं और सब मृत भी……… शिव के शाश्वत ब्रह्मांड में युगों से लिखी लहरियाँ […] Read more » Featured अट्टहास सुन रहे हो काल का????
कविता मौन का संगीत September 3, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जो लिखे थे आँसुओं से, गा सके ना गीत। अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।। दग्ध जब होता हृदय तो लेखनी रोती। ऐसा लगता है कहीं तुम चैन से सोती। फिर भी कहता हूँ यही कि तू मेरा मनमीत। अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।। खोजता हूँ दर-ब-दर कि […] Read more » Featured poem by shyamal suman मौन का संगीत
कविता घर मेरा है नाम किसी का September 1, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment घर मेरा है नाम किसी का और निकलता काम किसी का मेरी मिहनत और पसीना होता है आराम किसी का कोई आकर जहर उगलता शहर हुआ बदनाम किसी का गद्दी पर दिखता है कोई कसता रोज लगाम किसी का लाखों मरते रोटी खातिर सड़ता है बादाम किसी का जीसस, अल्ला […] Read more » Featured घर मेरा है नाम किसी का
कविता विविधा मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला August 19, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे , दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में एक तेरा ही तो साया ; मेरे साथ होता है मेरे मौला मेरा सब कुछ अब तू […] Read more » मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
कविता विविधा स्वामी विवेकानंद August 19, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment आज भी परिभाषित है उसकी ओज भरी वाणी से निकले हुए वचन ; जिसका नाम था विवेकानंद ! उठो ,जागो , सिंहो ; यही कहा था कई सदियाँ पहले उस महान साधू ने , जिसका नाम था विवेकानंद ! तब तक न रुको , जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो … कहा था […] Read more » स्वामी विवेकानंद
कविता विविधा रूपांतरण August 17, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on रूपांतरण एक भारी वर्षा की शाम में अकेले भीगते हुए … .. और अंधेरे आकाश की ओर ऊपर देखते हुए .. जो की भयानक तूफ़ान के साथ गरज रहा था और .. आसपास कई काले बादल भी छाए हुए थे मैंने प्रभु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया की ; अधिक से अधिक ,ऐसी भारी बारिश […] Read more » रूपांतरण
कविता प्रवक्ता न्यूज़ विविधा ||| आओ सजन ||| August 14, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन ! तेरे दर्शन को तरसे है ; मेरे भीगे नयन ! घर , दर सहित सजाया है ; अपने मन का आँगन !! आओ सजन , अब तो मेरे घर आओ सजन !!! तू नहीं तो जग , क्यों सूना सूना सा लगता है ! तू […] Read more » आओ सजन
कविता विविधा जोगन August 5, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे ! तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !! मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे ! तेरी बंसुरिया की तान बुलाये मोहे सब द्वारे छोड़कर चाहूं सिर्फ तोहे तू ही तो है सब कुछ रे , हे श्याम मेरे ! […] Read more »
कविता ||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम || August 3, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on ||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम || कोई पूछे की मैं हूँ कौन लोग कहते है की बावरा हूँ तेरी मोहब्बत में लोग कहते है की आवारा फिरता हूँ तेरी मोहब्बत में लोग कहते है की जुनूने साये में रहता हूँ तेरी मोहब्बत में ;सच कहता हूँ की क़यामत आये और मैं तुझसे मिल जाऊं तुझमे मिल जाऊं एक बार एक पर्वत […] Read more » सूफी फकीरों के नाम
कविता विविधा ||| आहट ईश्वर की ……!!! ||| August 3, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment ये कैसी अजनबी आहट है .. कौन है यहाँ , किसकी आहट है ये … जो मन में नए भाव जगा रही है . ये तो तुम हो मेरे प्रभु…. हे मेरे मनमंदिर के देवता कबसे तुझसे मिलने की प्यास थी मन में . आज एक पहचानी सी आहट आई तो देखा की तुम थे […] Read more » ||| आहट ईश्वर की ......!!! |||
कविता गन्दी बस्ती July 31, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी थी । खुशबुएं वहां की मदहोश कर रहीं थीं । पर एहसास होता था घोर बेचारगी का टूटती सांसे जैसे फ़साने बना […] Read more » गन्दी बस्ती
कविता आने दो दुनिया में July 13, 2015 / July 13, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो प्रतिमा शुक्ला बन रहा हैं एक जीवन आने को तैयार है एक जीवन सोच रहीं है उस पल को जब लेगी मां हाथों में जाग्रत होगा उसका मातृत्व बन जायेगी वह ममता की मूरत अचानक हुई कुछ हलचल शायद थी मशीनों की ध्वनि सहम गयी वह टूट गया उसका सपना पूछ रही है वह मां […] Read more »