कविता गांधी फिर कब आओगे ? September 23, 2014 by डा. कौशल किशोर श्रीवास्तव | 1 Comment on गांधी फिर कब आओगे ? डा. कौशल किशोर श्रीवास्तव (गांधी जयंती २ अक्टूबर २०१४) मोहनदास कमरचंद जी की, देश प्रेम की आंधी थी। पीछे देश खड़ा मर मिटने, एसी हस्ती गांधी थी। इसीलिये तैयार हुये, नेहरू जाने को जेलो में। मालूम था सिर दे देंगे पीछे सब खेलों खेलों में। मालूम था कि थे पटेल, मौलाना किदवई जान लिये। वल्लभ […] Read more » गांधी फिर कब आओगे
कविता रे देवों के अंश जाग जा……… September 23, 2014 by के.डी. चारण | 3 Comments on रे देवों के अंश जाग जा……… रे देवों के अंश जाग जा……… कौटिक देखे कर्मरत, पर तुझसा दिखा न कोई। इतने सर संधान किये,फिर क्यों तेरी भाग्य चेतना सोई।। आज रौशनी मद्धम-मद्धम, तारों की भी पांत डोलती, खाली उदर में आती-जाती, सांय-सांय सी सांस बोलती, कितने घर चूल्हा ना धधका, सब घर चाकी सोई है। रे ! देवों के अंश […] Read more » रे देवों के अंश जाग जा
कविता हारी नहीं हूँ September 23, 2014 by बीनू भटनागर | 4 Comments on हारी नहीं हूँ 1. हारी नहीं हूँ थकी हूँ हारी नहीं हूँ, थोड़ा सा विश्राम करलूं। ज़रा सी सी दुखी हूँ फिर भी, थोड़ा सा श्रंगार करलूं। श्रंगार के पीछे अपने, आंसुओं को छुपालूं। ख़ुश नहीं हूँ फिर भी, ख़ुशी का इज़हार करलूं। शरीर तो दुख रहा है, फिर भी दर्द को छुपालूँ। भंवर मे फंसी है नैया, […] Read more » हारी नहीं हूँ
कविता आतंकवादी September 20, 2014 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment जन्मा जिस कोख से उसको भी लजाया हूँ , ना जाने कितने मासूमो का खून में बहाया हैं , ना कोई आशा हैं मुझसे ना मैं आशावादी , मैं तो बस एक जेहाद का मारा, नाम आतंकवादी | कर धमाका मार सबको ये मेरा गुरु ज्ञान हैं , जेहाद के खातिर मरे तो सबसे […] Read more »
कविता वर्षों बाद एक नेता को देखा है September 20, 2014 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment वर्षों बाद एक नेता को माँ गंगा की आरती करते देखा है, वरना अब तक एक परिवार की समाधियों पर फूल चढ़ाते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को अपनी मातृभाषा में बोलते देखा है, वरना अब तक रटी रटाई अंग्रेजी बोलते देखा है। वर्षों बाद एक नेता को Statue Of Unity बनाते देखा है, […] Read more » वर्षों बाद एक नेता को देखा है
कविता केवल अमलतास September 19, 2014 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment ऊँघते/ अनमने उदास झाड़ियों के बीच इठलाता अमलतास चिड़ाता जंगल को जंगल के पेड़ों को, जिनके झर गए पत्ते सारे लेकिन पीले पुष्प गुच्छों से आच्छादित अमलतास आज भी श्रंगारित है, उसे नाज है अपने रूप पर अपने फूलने पर, पर क्या – उसका यह श्रंगार स्थायी है/ नहीं शायद इस सनातन सत्य को भूल […] Read more » केवल अमलतास
कविता गुनगुनाती हवा September 19, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | 2 Comments on गुनगुनाती हवा ये गुनगुनाती हवा चुपके से जाने क्या कहकर चली जाती है। वक़्त हो चाहे कोई भी हर समय किसी का संदेशा दे जाती है। सुबह का सर्द मौसम और ठंडी हवा का झोंका किसी की याद दिला जाती है। दोपहर की तपती धूप और हवा की तल्खी दर्द की थपकी दे जाती है। शाम का […] Read more » गुनगुनाती हवा
कविता तीन कवितायें: पानी, खनन और नदी जोङ September 18, 2014 / September 18, 2014 by अरुण तिवारी | 1 Comment on तीन कवितायें: पानी, खनन और नदी जोङ अरुण तिवारी पानी हाय! समय ये कैसा आया, मोल बिका कुदरत का पानी। विज्ञान चन्द्रमा पर जा पहुंचा, धरा पे प्यासे पशु-नर-नारी। समय बेढंगा, अब तो चेतो, मार रहा क्यों पैर कुल्हाङी ? गर रुक न सकी, बारिश की बूंदें, रुक जायेगी जीवन नाङी। रीत गये गर कुंए-पोखर, सिकुङ गईं गर नदियां सारी। नहीं […] Read more » खनन नदी जोङ पानी
कविता बच्चों का पन्ना कविता : प्रतीक September 18, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा यह पेड़ है हम सबका पेड़ है। इसे मत छांटो इसे मत तोड़ो इसे मत काटो इसे मत उखाड़ो इसे फलने दो इसे फूलने दो इसे हंसने दो इसे गाने दो यह पेड़ है हम सबका पेड़ है। इसपर सबके घोसले हैं कौआ का है, मैना का है बोगला का […] Read more » प्रतीक
कविता व्यथा September 17, 2014 / September 17, 2014 by कुलदीप प्रजापति | 2 Comments on व्यथा कल-कल करती बहती नदियाँ हर पल मुझसे कहती हैं , तीर का पाने की चाहत मैं दिन रात सदा वह बहती हैं, कोई उन्हें पूछे यह जाकर जो हमसे नाराज बहुत , मैने सहा बिछुड़न का जो गम क्या इक पल भी सहती हैं | मयूरा की माधुर्य कूकन कानो मैं जब बजती […] Read more » व्यथा
कविता पीड़ा का पिंजरा September 12, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment पीड़ा के पिंजड़े की क़ैदी हूँ, पिंजड़े को तोडकर निकलना चाहती हूँ… पर सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं। जब भी ऐसा करने की कोशिश करती हूँ, पीड़ा बाँध लेती है, जकड़ लेती है। किस जुर्म की सज़ा मे क़ैद हूँ, नहीं पता…… कितने दिन के लिये क़ैद हूँ, ये भी नहीं पता… कुछ […] Read more » पीड़ा का पिंजरा
कविता तौहिनी लगाती है-कविता September 12, 2014 / September 12, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment डॉ नन्द लाल भारती बोध के समंदर से जब तक था दूर सच लगता था सारा जहां अपना ही है बोध समंदर में डुबकी क्या लगी सारा भ्रम टूट गया पता चला पांव पसारने की इजाजत नहीं आदमी होकर आदमी नहीं क्योंकि जातिवाद के शिकंजे में कसा कटीली चहरदीवारी के पार झांकने तक की इजाजत […] Read more » कविता तौहिनी लगाती है