कविता क्रोध May 23, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- क्रोध क्या है? फट जाये तो ज्वालामुखी, दब जाये तो भूकंप! गल जाये वो बर्तन, जिसमें उसे रख दो, तेज़ाब की तरह! क्रोध इतना हो कि, वो जोश दिलादे! क्रोध इतना हो कि, न होश उड़ा दे! जो प्रेरणा बन जाये, उतना क्रोध ही भला। इसलिये, क्रोध की जड़ों को, पकड़ के, थोड़ा […] Read more » क्रोध क्रोध कविता क्रोध पर कविता
कविता हम नदी के दो किनारे May 22, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदी के दो किनारों की तरह, मै और तुम साथ साथ हैं। हमारे बीच ये नदी तो, प्रवाह है, जीवन और विश्वास है। हमारे बीच इसका होना, हमें साथ रखता है, जोड़ता है, न कि दूर रखता है। मानो कि ये नदी हो ही नहीं, तो क्या किनारे होंगे! नदी पहाड़ पर हो […] Read more » कविता जीवन कविता
कविता कमल May 21, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- कमल कुंज सरोवर में जब, ज्योतिपुंज रवि ने लहराया, शीतल समीर ने जल को छूकर, लहरों का इक जाल बिछाया। प्रातः की नौका विहार का, दृष्य ये अनुपम देखके हमने, नौका को कुछ तेज़ चलाया, दूर कमल के फूल खिले थे, उन तक हम न पहुंच सकते थे, दूर से देख कमलों पुष्पों […] Read more » lotus कमल कमल पर कविता
कविता धर्म क्या है? May 15, 2014 / May 15, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- धर्म क्या है? केवल संस्कृति! या फिर एक नज़रिया! या फिर जीने की कला! जो है जन्म से मिला। धर्म जो बांट दे, धर्म जो असहिष्णु हो, तो क्या होगा किसी का भला! व्रत उपवास ना करूं, मंदिरों में ना फिरूं, या पूजा पाठ ना करूं, तो क्या मैं हिंदू नहीं? रोज़ा नमाज़ […] Read more » धर्म धर्म कहता है धर्म पर कविता
कविता हरिद्वार और ऋषिकेश May 14, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- उत्तराखण्ड का द्वार हरिद्वार, यहां आई गंगा पहाड़ों के पार। पहाड़ों के पार शहर ये सुन्दर। सुन्दर शहर उत्तराखण्ड का मान। मंसादेवी, चंडीदेवी के मन्दिर सुन्दर, मंदिर का रास्ता बन गया है सुगम, केबल कार की यात्रा अति मनोरम। हर की पौड़ी शहर का मान, गंगा की आरती, गंगा की भक्ति, ऊपरी गंगा […] Read more » ऋषिकेश हरिद्वार हरिद्वार ऋषिकेश हरिद्वार कविता
कविता गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! May 12, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment -प्रवीण गुगनानी- गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! उस दिन जो संगीत था, बड़ा ही मुखर-मुखर सा। उसमें लिखा था वो सन्देश, जिसे मैं पढ़ नहीं पाया था। तब जब वह समुद्री रेत पर लिखा हुआ था, कुछ ऊंगलिया थी थरथराती-कपकपातीं। जो चली थी उस रेत पर, चली थी, कई मीलों। लिखते हुए ऐसा कुछ, […] Read more » कविता कविता जीवन पर जीवन पर कविता
कविता ऊसर कटोरी, बंज़र थाली May 12, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- ऊसर कटोरी, बंज़र थाली, बदतर बोली, जैसे गाली। सोचो मत बस बोले जाओ, जैसे भी हो, सत्ता कुंजी पाओ! दिवास्वप्न देखो और दिखलाओ, सच्चाई को सौ सौ पर्दो में छुपाओ। पहले उनसे सुनो स्वप्न साकार के, मखमल लिपटे सुन्दर भाषण। फिर देखो समझौतों के हज़ारों, नए पुराने आधे अधूरे आसन! सुनो फिर मज़बूरी […] Read more » कविता गरीबी पर कविता जीवन पर कविता
कविता चूहे की सजा May 9, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- हाथीजी के न्यायालय में, एक मुकदमा आया। डाल हथकड़ी इक चूहे को, कोतवाल ले आया। बोला साहब इस चूहे ने, दस का नोट चुराया। किंतु रखा है कहां छुपाकर, अब तक नहीं बताया। सुबह शाम डंडे से मारा, पंखे से लटकाया। दिए बहुत झटके बिजली के, मुंह ना खुलवा पाया। चूहा बोला दया […] Read more » चूहा चूहे पर कविता
कविता वर्तमान May 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- कौन कहता है, अतीत में मत झांको! कौन कहता है, अतीत से मत सीखो! पर अतीत को अपने, कांधों पर ढोकर, वर्तमान पर अपने, न बोझ बनने दो! कौन कहता है, भविष्य की मत सोचो! कौन कहता है, भविष्य भ्रम है केवल! पर भविष्य की चिंता में, रातों में न करवटें बदलो! भविष्य […] Read more » कविता जीवन पर कविता
कविता दमन की हवा से ही इक दिन… May 2, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- दमन की हवा से ही इक दिन, दहकेंगे श्रम के शोले! हक़ के अंगार से, दफनाये जायेंगे शोषण के गोले! अब भी सुन लो शोषकों, बर्के जिहिंद क्या बोले! इक कौंध में लपक लेने को, अंजाम खड़ा मुंह खोले! वे अपने दम पर लड़ते आये हैं, ताक़तवर से हर युग में! मगर ज़माना […] Read more » poem poem on hope आशा पर कविता कविता
कविता अच्छे लोगों की अच्छाई May 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- अच्छे लोगॊं की अच्छाई चिड़ियों के गीतों को सुनकर, पत्ते लगे नांचने राई| कांव-कांव कौवे की सुनकर, पेड़ों ने कब्बाली गाई| राग बेसुरे सुनकर कोयल, गुस्से के मारे चिल्लाई| फिर भी उसके मधुर कंठ से, कुहू कुहू स्वर लहरी आ ई| अच्छे लोगों में रहती है, बात बात में ही अच्छाई| कभी नहीं […] Read more » birds poem poem कविता चिड़िया कविता
कविता सुमन यहां जलते दिन-रात। May 2, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- सुमन यहां जलते दिन-रात। मिहनत जो करते दिन-रात। वो दुख में रहते दिन-रात। सुख देते सबको निज-श्रम से। तिल-तिल कर मरते दिन-रात। मिले पथिक को छाया हरदम। पेड़, धूप सहते दिन-रात। बाहर से भी अधिक शोर क्यों। भीतर में सुनते दिन-रात। दूजे की चर्चा में अक्सर। अपनी ही कहते दिन-रात। हृदय वही परिभाषित […] Read more » poem poem on life कविता जीवन पर कविता