कविता खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में April 12, 2014 by जावेद उस्मानी | 1 Comment on खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में -जावेद उस्मानी- खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में पता चला ही नहीं क्या कह गये उबाल में क्या मालूम न था अंजाम बहकने का इस तरह फंस गये हैं सैय्याद अबके अपने ही जाल में किस हद तक और जायेंगे अभी कुछ पता नहीं अभी तो पूरब से निकले सूरज को डुबोते हैं […] Read more » poem on election खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में
कविता बदलता ज़माना April 11, 2014 / April 11, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- बैसाखियों पर चलनेवाले दे रहे हैं लेक्चर कैसे खुद अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाता है ! दूसरों का टांग खींच कर आगे बढ़नेवाले बता रहे हैं आपका आचरण कैसा हो ! दूसरों के कंधों को सीढ़ी बनाकर ऊपर उठने वाले उपदेश दे रहे हैं ! कैसे आकाश की बुलंदियों को छुआ […] Read more » changing soceity बदलता ज़माना
कविता शोर बरपा है अजब April 9, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment सियासती मयख़ाने में कुछ रिंद नहीं पी रहे अबके उनके पैमाने से ठुकरा कर मुदब्बिर का हर जाम ए नज़राना उड़ जाना चाहे बंदी सियासी कैदखाने से गर दस्तूर पुराने टूट गये जाल से परिंदे छूट गये जीने में क़नाअत कर बैठे लालच से बग़ावत कर बैठे कैसे भी ये आग बुझा डालो इरादे पर […] Read more » शोर बरपा है अजब
कविता चुनाव राजनीति आ गया फिर चुनाव April 7, 2014 / April 7, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- लो, आ गया फिर चुनाव ! न जाने इस बार किस -किस की डूबेगी नाव इसी सोच में पड़े नेतागण घूमेंगे अब गांव-गांव पहले जहां यदा-कदा ही पड़ते थे उनके पांव लो, आ गया फिर चुनाव ! आज जब कि बाजार में कई चीजों का बना है अभाव और जो मिल […] Read more » satire on election आ गया फिर चुनाव
कविता चुनाव राजनीति चुनावी मौसम April 5, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment आज कल तो जैसे हर सू है त्यौहार का मौसम वादों और उम्मीदों का इक खुशगवार सा मौसम रौशन तकरीरो की जवां अंगड़ाइयां सियासी तब्बसुम की ये अठ्ठखेलियां आबे गौहर सी सियासती शोखियां बाग़े उम्मीद की गुलनारी मस्तियां सियासी महक से सरोबार हर कोना न कही मातम न किसी बात का रोना लगता ही नहीं […] Read more » election season satiric poem on election चुनावी मौसम
कविता राष्ट्रबंधुजी April 4, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment मिला एक दिन दादाजी से, वह दादा हैं राष्ट्रबंधुजी| बच्चों की खातिर सब करने, आमादा हैं राष्ट्रबंधुजी| नहीं कोई छल छंद दिखावा, बस, सादा हैं राष्ट्रबंधुजी, बच्चों का संसार सुनहरा, एक वादा हैं राष्ट्रबंधुजी| Read more » poem on nation-unity राष्ट्रबंधुजी
कविता राजनीति April 3, 2014 / April 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -राम सिंह यादव- बहुत सारे चेहरे हैं कुछ मुस्कुरा रहे हैं कुछ चिल्ला रहे हैं कुछ भोले से दिख रहे हैं… कुछ चेहरों मे छिपा लोभ है कुछ चेहरों में ठेकेदारी है कुछ तो धर्म के पूरक हैं… काटते, छांटते और बांटते आदमी चिल्लाते हैं वोट दो…. पानी लो, बिजली लो, विकास लो,,, मैं ट्रेन दूंगा, मैं रोड दूंगा, […] Read more » poem on politics राजनीति
कविता प्रेम April 3, 2014 / April 3, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on प्रेम -विजय कुमार- हमें सांझा करना था धरती, आकाश, नदी और बांटना था प्यार मन और देह के साथ आत्मा भी हो जिसमें ! और करना था प्रेम एक दूजे से ! और हमने ठीक वही किया ! धरती के साथ तन बांटा नदी के साथ मन बांटा और आकाश के साथ आत्मा को सांझा […] Read more » poem on affection प्रेम
कविता गरमी मई की जून की April 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आई चिपक पसीने वाली, गरमी मई की जून की| चैन नहीं आता है मन को, दिन बेचेनी वाले | सल्लू का मन करता कूलर , खीसे में रखवाले | बातें तो बस उसकी बातें , बातें अफलातून की | दादी कहतीं सत्तू खाने , से जी ठंडा होता | जिसने बचपन से खाया है, तन […] Read more » poem on summer गरमी मई की जून की
कविता आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए March 30, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए कड़ी राहों से हँसते हुए गुज़रे हम सब के लिए कि हमारे लिए ज़रूरी थी आज़ादी हमारी ! आज़ादी के बाद शहीद हुए हमारे गांधी कि हम नव-आज़ाद लोगों को शायद ज़रूरत न थी उस रहबरी की अब कि वह रोकती मनचाही आज़ादी हमारी ! आज़ादी के […] Read more » Poem on Martyrs आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए
कविता व्यंग्य मिक्सिंग और फिक्सिंग March 27, 2014 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on मिक्सिंग और फिक्सिंग -मिलन सिन्हा- उसने पहले ढंग से जाना गेम का सब ट्रिक्स फिर मैच को अच्छे से किया फिक्स जब शोर हुआ तब राजनीति से किया उसे मिक्स पकड़ा गया फिर भी शर्म नहीं किसी बात का कोई गम नहीं क्योंकि उसे मालूम है यहां मैच को करके मिक्स और फिक्स कैसे मारा जाता है सिक्स […] Read more » satire poem on match fixing मिक्सिंग और फिक्सिंग
कविता अहंकार बलिदान बड़ा है, देह के बलिदान से March 27, 2014 by डॉ. मधुसूदन | Leave a Comment -मधुसूदन- मिट्टी में जब, गड़ता दाना, पौधा ऊपर, तब उठता है। पत्थर से पत्थर, जुड़ता जब, नदिया का पानी, मुड़ता है। अहंकार दाना, गाड़ो तो, राष्ट्र बट, ऊपर उठेगा, कंधे से कंधा, जोड़ो तो, इतिहास का स्रोत, मुड़ेगा। अहंकार-बलिदान, बड़ा है, देह के, बलिदान से, इस रहस्य को,जान लो, जीवन सफल, होकर रहेगा इस अनन्त […] Read more » poem on inspiring human being अहंकार बलिदान बड़ा है देह के बलिदान से