कविता कैद मिली तो क्या हुआ? January 13, 2014 / January 13, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जिसको जितना ज्ञान कम, अधिक बोलते लोग। ज्ञानीजन बोले नहीं, सुमन दुखद संयोग।। कैद मिली तो क्या हुआ, होता खूब प्रचार। मंत्री होते कैद में, सुमन चले सरकार।। नाकाबिल साबित सुमन, पर देखो अभिमान। कम से कम मंत्री बने, नालायक सन्तान।। सूरत पे मुस्कान है, भीतर भरा तनाव। युग परिवर्तन का सुमन, देखो नित्य प्रभाव।। […] Read more » poem कैद मिली तो क्या हुआ?
कविता प्रेम नहीं मजबूर January 12, 2014 / January 12, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- सुमन प्रेम की राह में, कांटे बिछे अनेक। दर्द हजारों का मिले, चुभ जाता जब एक।। त्याग प्रेम का मूल है, मगर सहित सम्मान। करता हंसकर के सुमन, अपना जीवन-दान।। प्रेम गली में क्यों सुमन, खड़ी मिले दीवार। सदियों से क्यों चल रहा, दुनिया का व्यवहार।। भीतर चाहत प्रेम की, बाहर करे […] Read more » poem प्रेम नहीं मजबूर
कविता प्रकृति की मौलिकता January 11, 2014 / January 11, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दो-दो फुट दिन में जुड़वा दें, दो फुट की बढ़वा दें रात| किसी तरह से क्यों न बापू, बड़े-बड़े कर दें दिन रात| छोटे-छोटे दिन होते हैं, छोटी-छोटी होती रात| ना हम चंदा से मिल पाते, ना सूरज से होती बात| नहीं जान पाते हैं अम्मा, क्या होती तारों की जात| ना ही हमें पता […] Read more » poem प्रकृति की मौलिकता
कविता महात्मा वेदपाल प्रभु शरणाश्रित को नमन January 9, 2014 / January 9, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’- 1. ईश्वर दास के लाला लाल, था नाम महात्मा वेद पाल। जनवरी दस को जन्म लिया था, ईश्वर का गुणगान किया था। प्रभु शरणाश्रित बन किया कमाल॥ शत्-शत् नमन हे ईश्वर लाल 2. हंसमुख थे बहु भोले-भाले, गोरे रंग के थे, दिलवाले। नम्र-शील जिनका स्वभाव, तेजस्वी मुख पर प्रभाव। मस्त-व्यस्त हृदय विशाल॥ […] Read more » poem महात्मा वेदपाल प्रभु शरणाश्रित को नमन
कविता कुबड़ी आधुनिकता January 9, 2014 / January 9, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -दीप्ति शर्मा- मेरा शहर खांस रहा है सुगबुगाता हुआ कांप रहा है सडांध मारती नालियां चिमनियों से उड़ता धुआं और झुकी हुयी पेड़ों की टहनियां सलामी दे रहीं हैं शहर के कूबड़ पर सरकती गाड़ियों को, और वहीं इमारत की ऊपरी मंजिल से कांच की खिड़की से झांकती एक लड़की किताबों में छपी बैलगाड़ियां देख […] Read more » poem कुबड़ी आधुनिकता
कविता जीवन में आगे ही बढ़ें January 8, 2014 / January 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment वो तूफ़ान में फंसी, हमारी डूबती नैया एक लकड़ी के सहारे, हम किनारा ढूँढ़ने निकले वो डरावनी अंधेरी रात, जंगल में फंसे थे जब कहीं चमके कई जुगनू, उसी की रौशनी में हम रस्ता ढूँढ़ने निकले। वो ऊंची सी खड़ी चट्टान, काई में फिसलते पांव हमे जाना था उसके पार, एक रस्सी के सहारे ही हम गंतव्य तक पंहुचे। एक […] Read more » poem जीवन में आगे ही बढ़ें
कविता टॉप स्टोरी शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो December 31, 2013 / December 31, 2013 by हिमकर श्याम | Leave a Comment हिमकर श्याम व्यथित मन में मधु रस घोलो शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो झोली में ले कर ख्वाब नया देखो आया है साल नया अरमानों की गठरी खोलो शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो जो बीत गया सो बीत गया वह दुःख का गागर रीत गया उम्मीदों का दर फिर खोलो शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो […] Read more » शुभ-मंगल सब मिलकर बोलो
कविता पहचान कहाँ खो गए December 31, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा जिन्हें ढूंढ़ रही थी आँखें वो कहाँ चले गए जिन्हें देख रही थी आँखें वो पहचान कहाँ खो गए जिन रास्तों पर चलने की सीख गुरुजनों के दी थी वे रास्ते क्यों अब सुनसान पड़ गए जिन पर चलने से किया था मना वे रास्ते क्यों अब भीड़ से पट गए परवरिश में […] Read more » पहचान कहाँ खो गए
कविता कब आओगे गुरु गोविंद सिंह?? December 31, 2013 / December 31, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment विमलेश बंसल आओ हम सब याद करें, गुरु गोविंद के बलिदान को। जिसने हिंदू धर्म की खातिर, किया न्योछावर प्राण को॥ वंदे मातरम् 1.माता गुजरी, पिता गुरु, तेगबहादुर के घर में। जन्म हुआ सोलह सौ छ्यासठ, खेले पटना शहर में। नौ वर्ष में गुरु की गद्दी, मिल गई वीर जवान को॥ जिसने हिंदू धर्म…… वंदे […] Read more » कब आओगे गुरु गोविंद सिंह??
कविता हो गया है विहान री December 28, 2013 / December 28, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on हो गया है विहान री 1. हो गया है विहान री सखि,हो गया है अब विहान री, तू नींद छोड़ कर जाग री। पंछियों का कलरव गूंज रहा, सूरज देहरी को पूज रहा। तू अब तक सोई है री सखि, आंखों में लिये ख़ुमार री। चल उठ पनघट तक जाना है, दो चार घड़े जल लाना है, मै छाछ कलेवा बनालूं […] Read more » poem कविता हो गया है विहान री
कविता महर्षि दयानंद की अमर कहानी December 28, 2013 / December 28, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’- मो- 8130586002 Vimleshbansalarya69@gmail.com हम सब मिल शीश झुकायेंगे, गुरु देव दयानंद दानी को। उस वैदिक वीर पुरोधा की, गायेंगे अमर कहानी को॥ 1.अट्ठारह सौ इक्यासी की, फ़ाल्गुन कृष्णा दशमी तिथि को, गुजरात प्रांत टंकारा में, था जन्म लिया मूलक मिति को। शंकर से शंकर […] Read more » Maharshi Dayanand महर्षि दयानंद की अमर कहानी
कविता कविता : एक थी आरुषि November 26, 2013 by बीनू भटनागर | 1 Comment on कविता : एक थी आरुषि एक थी आरुषि हंसती खिलती एक सुकुमारी, माता-पिता की संतान वो प्यारी, एक रात न जाने कौन कंही से आकर, उसको मार गया। मां बाप को उसकी मौत पर, रोने का अवसर भी न मिला। बिन जांचे परखे ही पुलिस ने बेटी का चरित्र हनन किया। जो भी सबूत मिले उनसे,… पिता को ही आरोपी […] Read more »