कविता हास्य व्यंग्य कविताएं : शिष्टाचार, भाईचारा, मौज July 19, 2013 / July 19, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा शिष्टाचार माल सब साफ़ किया विकास के नाम पर विनाश किया भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार है कहो न प्यार है. भाईचारा ‘भाईचारा’ का शानदार नमूना देखिये घर का चारा खानेवाला खा रहा अब ‘भाई’ का ‘चारा’ देखिये. मौज […] Read more » भाईचारा मौज हास्य व्यंग्य कविताएं : शिष्टाचार
कविता व्यंग्य कविता : मजाक July 16, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा मजाक मंत्री जी ने कहा, “पांच वर्ष के बाद देश में कोई भी अनपढ़ नहीं रहेगा।” अगर सचमुच ऐसा हो पाया तो सारा देश उनका आभारी रहेगा। पर, फिलहाल तो हमारे अनेक नेताओं /शिक्षकों को फिर से पढ़ना पड़ेगा, ‘ कुपढ़ ‘ नहीं, वाकई शिक्षित होना पड़ेगा। क्यों कि, शिक्षा को उन्होंने ही […] Read more » मजाक
कविता सांध्य किरणें July 13, 2013 / July 13, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment रोशनी की कुछ लंबी बीमार किरणें बड़ी देर से शाम से आज दामन में दर्द लपेटे, खिड़की पर पड़ी कमरे में अन्दर आने से झिझक रही हैं। यह कोमल सांध्य किरणें पीली, जाने कौन-सी व्यथा घेरे है इनके मृदुल उरस्थल को आज ! कोई दानव ही होगा जो कानों में सुना गया है इनको दु:ख […] Read more » सांध्य किरणें
कविता कविता : जरूरी तो नहीं July 10, 2013 / July 10, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा तुम जो चाहो सब मिल जाये, जरूरी तो नहीं तुम जो कहो सब ठीक हो, जरूरी तो नहीं। दूसरों से भी मिलो, उनकी भी बातें सुनो वो जो कहें सब गलत हो, जरूरी तो नहीं। सुनता हूँ यह होगा, वह होगा,पर होता नहीं कुछ जो जैसा कहे, वैसा ही करे, जरूरी […] Read more » कविता : जरूरी तो नहीं
कविता अव्यक्त चाँद July 8, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment अपनी पूरी व्याकुलता और बैचेनी के साथ किसी पूर्णिमा में चाँद उतर आता था साफ़ नर्म हथेली पर अपनी बोल भर लेनें की क्षमता के साथ. चाँद अभिव्यक्त भी न कर पाता था अपनें आप को कि उसकी मर्म स्पर्शी आँखों में होनें लगती थी स्पर्श की कसैली सुरसुराहट दबे पाँव उसकी व्याकुलता भी […] Read more » अव्यक्त चाँद
कविता कविता : जीवन दर्शन July 8, 2013 / July 8, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा अपने मन को जोड़ो हर जन से . न तोड़ो किसी का दिल अपने धन से . मत बनो तंग दिल सबके साथ रहो घुल मिल . हों ऐसे विचार जो बन सके कर्म का आधार […] Read more » कविता : जीवन दर्शन
कविता विचार तेरे शहर के July 7, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जब भी गये बंद मिले द्वार तेरे शहर के , करते हम कैसे भला दीदार तेरे शहर के । अमुआ के बाग में उल्लुओं का बसेरा है , ठीक नहीं लगते हैं आसार तेरे शहर के। दिलों पर खंजर के निशां लिये मिले लोग , तूं ही बता कैसे करें एतबार तेरे […] Read more » विचार तेरे शहर के
कविता साहित्य अयोध्या में July 6, 2013 by मोतीलाल | Leave a Comment सरयु बहती थी अयोध्या में आज भी बहती है रहते थे लोग वहाँ आज भी रहते हैं गलियाँ और सड़कें वहाँ तब भी थी आज भी हैं मंदिर से घंटी और मस्जिद से अजान तब भी सुनाई देती थी आज भी सुनाई देती है । बावजूद इनके आज कहीं दिखता नहीं राम का मंदिर […] Read more » अयोध्या में
कविता साहित्य चौराहे पर खड़े हम July 5, 2013 / July 5, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment जिसके सहारे था, उसी ने मुझे बेसहारा किया साहिल ने भी अब मुझसे किनारा किया । दिन गुजर गया, पर किसी ने खबर न ली शाम को उसने मुझे दूर से इशारा किया । खट्टी-मीठी यादों का नाम है मेरी जिंदगी यादों के सहारे ही हमने अबतक गुजरा किया । जो कुछ […] Read more » चौराहे पर खड़े हम
कविता साहित्य प्रेम की माला July 5, 2013 by डॉ.अलका अग्रवाल | Leave a Comment कच्चे धागे प्रेम के, थोड़ा खिचतें ही बिखर जाएँ, चढ़ाओं इस पर धार विश्वास की ताकि पक्के हो जाए। पहनों इसको ध्यान से कहीं उलझन न कोई पड़ जाए, सुलझाओं फिर धैर्य से ताकि सिकुड़न न पड़ पाए।। प्रेम की डोर को तानों उतना ही कि टूटने न पाये, जुड़ने को पड़ी गांठ से फिर […] Read more » प्रेम की माला
कविता साहित्य एक पुत्र गाँव छोड़ रहा था July 4, 2013 / July 4, 2013 by कुमार विमल | Leave a Comment हाँ , एक पुत्र आज गावँ छोड़ रहा था, भविष्य की तलाश में शहर की ओर दौड़ रहा था , और पिता पुत्र की आँखों में भाग्योदय देख रहा था , हाँ ! एक पुत्र आज गावँ छोड़ रहा था । माँ का आशीर्वाद, पिता का प्यार अपनो का अरमान, छोटो का सम्मान सब उसको […] Read more » एक पुत्र गाँव छोड़ रहा था
कविता साहित्य न आयीं तू मेरे सपनों में , न आयीं तू मेरे नगमों में July 4, 2013 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment जलता रहा मैं दीपक बनकर ……… न जाने किस विश्वास पर दिन -रात मैं राह तकता रहा जलता रहा मैं दीपक बनकर ………. पर न आयीं तुम हवाएं बनकर जल गये मेरे अरमा सारे मन कि अगन प्यास बनकर रह गयी तन भी मेरे साथ न दिया मिट गये सपने सारे जल गये लम्हें प्यारे […] Read more » न आयीं तू मेरे नगमों में न आयीं तू मेरे सपनों में