कविता साहित्य माँ सरस्वती June 25, 2013 by डा.राज सक्सेना | 1 Comment on माँ सरस्वती कण-कण तन का उज्ज्वल करदे | एक नवल तेज, अविकल करदे | माँ सरस्वती आ, कंठ समा, मन-मस्तक को अविरल करदे | वाणी में मधु की, धार बहा | हो सृजनशील, मस्तिष्क महा | हर शब्द बने, मानक जग में, हर रचना को, इतिहास बना | जन की जिव्हा पर, नाम चढ़े, […] Read more » माँ सरस्वती
कविता साहित्य कारनामा June 25, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment उसका किसी से कोई बैर नहीं जो उससे बैर करे उसकी फिर खैर नहीं जो भी करे वह उसमें कोई शोर नहीं पुलिस अगर तफ्तीश करे भी मिले कोई डोर नहीं सुबह देर तक सोता है रात में काम सब करता है बड़े गाड़ियों में घूमता है जब चाहे उड़ता है कपड़े सफ़ेद पहनता है […] Read more » कारनामा
कविता साहित्य नारी June 25, 2013 by कुमार विमल | Leave a Comment प्रभु की अनुपम कृति , अनुपम रचना,वह है नारी, सो जब रचा था प्रभु ने इस कृति को, सोचा सब अर्पण कर दूँ , इसकी खाली आँचल को खुशियों से भर दूँ । सो दिया उन्होंने रूप रंग,सोंदेर्ये , वह सामर्थ ओंर सहनशीलता वह अतुलनीय नारी शक्ति । प्रभु को गर्व हुआ अपनी इस कृति […] Read more » नारी
कविता कविता – शहर का आदमी June 24, 2013 / June 24, 2013 by मोतीलाल | Leave a Comment मैं कागज काला करता रहा कि पानी खतरे के निशान पार कर रहा है लोगों ने पढ़ा किसी के चेहरे लटक गये कोई तनावग्रस्त हो गया कोई ढूँढने लगा सर छुपाने की जगह कुछ ऐसे भी थे पढ़कर फेंक दिया कूड़ेदान में और सो गया पाँव पसारकर बड़े इत्मिनान के साथ । मैं बार-बार लिखता […] Read more » कविता - शहर का आदमी
कविता वृद्ध- कुमार विमल June 24, 2013 / June 24, 2013 by कुमार विमल | 1 Comment on वृद्ध- कुमार विमल वह गुमनाम सा अँधेरा था , और वहाँ वह वृद्ध पड़ा अकेला था , वह बेसहाय सा वृद्ध वह असहाय सा वृद्ध , वह लचार सा वृद्ध । आज चारो तरफ मला था , पर वह वृद्ध अकेला था , चारो तरफ यौवन की बहार थी , पर वहाँ वृद्धावस्था की पुकार थी , […] Read more » वृद्ध वृद्ध- कुमार विमल
कविता रक्स करतीं थालियां June 24, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment डा. राज सक्सेना पी सुरा को मस्त होकर, मस्त फिरतीं प्यालियां | बैंगनों के घर में गिंरवीं, रक्स करतीं थालियां | कौरवों की भीड़, आंखें बन्द कर चलती मिली, नग्नतम् सड़कों पे खुलकर, चल रहीं पांचालियां | एक अच्छी व्यंग्य कविता,को समझ पाए न लोग, एक हज़ल पर देर तक, बजती रही थीं तालियां | […] Read more » रक्स करतीं थालियां
कविता साहित्य कुत्तों को बिस्किट June 22, 2013 by डा.राज सक्सेना | 1 Comment on कुत्तों को बिस्किट खिलवाते कुत्तों को बिस्किट, लाखों भूखे सो जाते हैं | जनता के पैसे से नेता, जीवन भर मौज उड़ाते हैं | भारत में भूखे-नंगों को, दे नहीं पा रहे पानी तक , पाकिस्तानी जल प्लावन में, लाखों डालर दे आते हैं | घर अपना सिंगल कमरे का,सूनी आँखों का सपना है, मंत्री जी पच्चिस लाख […] Read more » कुत्तों को बिस्किट
कविता साहित्य हैरान कर देंगे June 21, 2013 by डा.राज सक्सेना | 2 Comments on हैरान कर देंगे कोई जीते कोई हारे, ये सब हैरान कर देंगे | मतों के दान के बदले, क़हर प्रतिदान कर देंगे | जो हारेंगे वे भरपाई, करेंगे लूट जनता को, जो जीतेंगे वसूली का , खुला मैदान कर देंगे | करेंगे क्षेत्र को विकसित,ये कहते हैं हमेशा सब, जहां मौका मिला,परिवार का उत्थान कर देंगे | कहा […] Read more » हैरान कर देंगे
कविता साहित्य ये आस कभी क्या पूरी होगी ! June 21, 2013 / June 21, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on ये आस कभी क्या पूरी होगी ! कोई भी दल लोकसभा मे, बहुमत नही पायेगा, क्योंकि सभी ने जनता को, कभी न कभी छला है। जनता भी असमंजस मे है, कौन बुरों मे भला है। मौन रहकर मनमोहन ने, राजमाता और राजकुँवर को ही बस पूजा है। दामाद सहित सब मंत्रियों ने, घोटाले पर घोटाले करके, देश को बेचा और लूटा […] Read more » ये आस कभी क्या पूरी होगी !
कविता साहित्य नया सफ़र June 20, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment लगता है जैसे वे कर रहे हों एक तैयारी आज शायद उनकी आ गयी है बारी क्या खोया, क्या पाया ठीक से समझ रहे हैं गुजरा हुआ एक एक पल फिर से जैसे जी रहे हैं कभी ख़ुशी, तो कभी गम के आंसू स्वतः निकल रहे हैं डाक्टरों ने जवाब दे दिया है बेतार माध्यम […] Read more » नया सफ़र
कविता गिद्धों के भाल पर June 19, 2013 / June 19, 2013 by डा.राज सक्सेना | 1 Comment on गिद्धों के भाल पर डा.राज सक्सेना कुर्सी ही श्रेष्ट बन गई, कलि के कराल पर | कितने ही ताज सज गए,गिद्धों के भाल पर | सम्पूर्ण कोष चुक गया बाकी रहा न कुछ, नेता की आंख गढ गई, वोटर की खाल पर | इस गंदगी के खेल को, कहते हैं राज-नीति, आकंठ सन गए सभी , कीचड़ उछाल कर […] Read more »
कविता साहित्य चलते -चलते June 18, 2013 / June 18, 2013 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment मौसम बदला ,तस्वीर बदली, बदल गया इंसान घर के आँगन में पल रहा जुल्म का पकवान नया ,सबेरा होता है रोज फिर भी नही बदला इंसान मन में अजीब लालसा ,लेकर जी रहा इंसान शिक्षा की कसावट बदली टाइप राईटर का ज़माना बदला कलम की स्याही बदली नेता की नेता गिरी गुरु जी की छड़ी […] Read more » चलते -चलते