कविता साहित्य आंसू निकल पड़े July 4, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment लेने सबाब तीर्थ का, घर से निकल पड़े | केदार-बद्री धाम के, दर पे निकल पड़े | सब ठीक चल रहा था,मौसम भी साफ था, कुछ बादलों के झुण्ड,बरसने निकल पड़े | दीवानगी-ए-अकीदत पे जरा गौर तो करें, ठहरे जरा सी देर मगर,फिर से चल पड़े | लाखों का वो हुजूम जो,चल तो रहा था,पर- […] Read more » आंसू निकल पड़े
कविता साहित्य जीवन का लक्ष्य July 3, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मैं, मैं हूँ तुम, तुम हो वह भी, वह ही है यह सत्य है जानते हैं हम सब यह सब . पर, इतना ही जानना -समझना क्या जीवन का लक्ष्य है ? या यह भी जानना-समझना-मानना कि कहीं-न-कहीं एक दूसरे में हैं हम अन्यथा वाकई अधूरे हैं हम ! Read more » जीवन का लक्ष्य
कविता साहित्य बादलों पर गीतों के टुकड़े July 2, 2013 by प्रवीण गुगनानी | 1 Comment on बादलों पर गीतों के टुकड़े नहीं होती बात जब कुछ कहने को मैं यूँ ही कोई गीत गुनगुना देता हूँ । बादल अक्सर उड़ते हुए यहाँ वहाँ पकड़ लेते हैं मेरे गीतों के टुकडों को और बैठा लेते है अपने ऊपर । बादलों को अच्छा लगता होगा गीतों को लेकर उड़ना शायद उन्हें भी पता होगा कि इससे कुछ […] Read more » बादलों पर गीतों के टुकड़े
कविता साहित्य देवभूमि मे बादल फटे July 2, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment देवभूमि में बादल फटे, यात्री बाढ़ में फंसे, प्रलय सा मच गया, देखो, हाहाकार। भागीरथी और अलखनन्दा में, भीषण जल प्रवाह, बस और कारें ऐसे बहीं, जैसे कग़ज़ की नाव, बाढ़ प्रकोप से उजड़ गये, उत्तरकाशी व देवप्रयाग, बद्री नाथ तो बच गये, उजड़े केदार नाथ, सारी बस्ती बह गई, रह गये भोलेनाथ। गंगा तट […] Read more » देवभूमि मे बादल फटे
कविता साहित्य समारोह July 1, 2013 by कुमार विमल | Leave a Comment आज शहर में एक समारोह हैं, इस पावन पुनीत मांगलिक बेला पर, नेता भी आए, अभिनता भी आए, सज्जन भी आए, अपराधी भी आए । अरे देखो वहाँ महफ़िल सजी है, नए आभूषण, नए परिधान, नए फैशन, नए रिवाज , ऐसा लगता है मनो भव्यता की कुश्ती छिडी है । आधुनिकता के रंग […] Read more » समारोह
कविता साहित्य दर्द और दहशत July 1, 2013 / July 1, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment उसने देखा है गाय और भैसों को ट्रक और ट्रेक्टर से ले जाते हुए उसने देखा है भेड़ और बकरी को टैम्पू और तांगे पर ले जाते हुए उसने देखा है मेमने को बोरे में डाल कर साइकिल से ले जाते हुए उसने देखा है मुर्गियों को रिक्शे- ठेले पर ले जाते हुए और हर […] Read more » दर्द और दहशत
कविता मैं शायर तो नही July 1, 2013 / July 7, 2013 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment शहर की और निकल पड़ा हूँ ….. मुझमें कोई खास बात नही है मुझमे कोई अंदाज नही है मैं एक अनजान हूँ अनपढ़ हूँ नही आता शब्दों को सहेजना फिर भी राही हूँ … पगड़ी में चलना सिखा शहर की गलियों से अनजान हूँ गाँव की गलियों […] Read more » मैं शायर तो नही
कविता साहित्य जीवन संघर्ष June 29, 2013 by बीनू भटनागर | 4 Comments on जीवन संघर्ष वेदना के किसी क्षण में, कोई शुभ संदेश आये, अंधियारी रातों मे जैसे, जुगनू कोई चमक जाये। रात पूर्णिमा की हो या, हो अमावस का अंधेरा, दुख दर्द सब समेट लूँ, होने वाला है सवेरा। मुरझाई सी बगिया है , धूप की चकाचौंध से, रात होने से पहले ही, पानी डालूँ हर पौध में। सींच […] Read more » जीवन संघर्ष
कविता साहित्य ताजगी June 28, 2013 by मिलन सिन्हा | 2 Comments on ताजगी सुबह की ठंडी हवा दूर नदी में निरंतर बहती जलधारा आकाश में तैरते छोटे सफ़ेद -काले बादल उड़ते छोटे- बड़े पक्षी दूर तक फैली हरियाली झोला उठाए, कलरव करते बच्चों का पाठशाला जाना गाय- बकरियों का उनके साथ-साथ आसपास चलना युवा किसान का अपने चौड़े कंधे पर हल रखकर बैलों के पीछे-पीछे खेत की ओर […] Read more » ताजगी
कविता साहित्य कैसे कहूँ June 27, 2013 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment बड़ी मुश्किल से मौका मिला दिल को सुकून मिला बरसों की एक आज मुलाक़ात हुई दूर बैठे देखता रहा .. करीब इतना बैठा की मन नही भरा कुछ मन में कशिश रह गई तेरे होंठो को छूने की तडप रह गई मौसम ,कुछ खास था यांदो की जज्बात था तुम ,अकेली थी पर ,डर का […] Read more » कैसे कहूँ
कविता साहित्य एक अनाम के नाम June 27, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment रससिक्त छंद कुछ कविता के, कर रहा समर्पण प्रिय तुमको | चाहो, उर मे रख, दुलरा कर, संरक्षित कर लेना इनको | यूं तो तुम स्वंय अकल्पित हो, ऐसा प्रिय रूप, तुम्हारा है | लगता है स्वंय , विधाता ने, रच-रच कर तुम्हें संवारा है | है अंग सुगढ, हर सांचे सा, हर […] Read more » एक अनाम के नाम
कविता साहित्य सत्याग्रह का अस्त्र June 26, 2013 by मिलन सिन्हा | 2 Comments on सत्याग्रह का अस्त्र मौसम प्रतिकूल टूट गयी सड़कें बह गया पुल आम जनता है पस्त अधिकांश नेता – अधिकारी अपने में मस्त दिखने में सब भद्र पर सवाल वही कहाँ है पीड़ितों – गरीबों का सही हमदर्द बड़ा हादसा हो जाता है जब आते है अपनी सुविधा से सफेदपोश सारे जहाज और गाड़ियों में लदकर , लकदक सहानुभूति […] Read more » सत्याग्रह का अस्त्र