कविता अक्सर……………….!!! May 3, 2013 / May 3, 2013 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment अक्सर ज़िन्दगी की तन्हाईयो में जब पीछे मुड़कर देखता हूँ ; तो धुंध पर चलते हुए दो अजनबी से साये नज़र आते है .. एक तुम्हारा और दूसरा मेरा…..! पता नहीं क्यों एक अंधे मोड़ पर हम जुदा हो गए थे ; और मैं अब तलक उन गुमशुदा कदमो के निशान ढूंढ रहा हूँ. अपनी अजनबी ज़िन्दगी की जानी पहचानी राहो में ! कहीं […] Read more » poem by vijay kumar sappati
कविता आखिर क्यों ? May 3, 2013 by बीनू भटनागर | 8 Comments on आखिर क्यों ? हम कसाव को बिरयानी, खिलाते रहे- पूरी न्यायिक प्रकिया के बाद, लगाई फाँसी.. उन्होने सरबजीत को, पीट पीट कर मार डाला, मानवाधिकार, की बात करने वाले, सोते रहे। आखिर क्यों ? टाइम्स आफ इण्डिया , अमन की आशा जगाते रहे, अरनव गोस्वामी न्यूज आवर मे पाकिस्तानियों को, पैनल पर लाकर उनकी बकवास सुनते सुनाते […] Read more » poem by binu bhatnagar आखिर क्यों ?
कविता कविता : प्रशासन और दु:शासन May 3, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा जनता आज द्रौपदी बन गयी है पांडवों की ईमानदारी कल की बात हो गयी है कृष्ण का अता-पता नहीं गलत को ही लोग कह रहे हैं सही द्रौपदी का है बुरा हाल फैला है चारों ओर छल -प्रपंच का जाल प्रशासन के कारनामे हैं कमाल, बेमिसाल दु:शासन का बढ़ रहा अत्याचार जिधर देखो, […] Read more » कविता : प्रशासन और दु:शासन
कविता ज़िन्दगी May 3, 2013 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार “राघव” क्या सर्दी और क्या गर्मी, मुफ़लिसी तो मुफ़लिसी है । कांपती और झुलसती ज़िन्दगी चलती तो है , पर भूख की मंज़िल तो बस खुदकुशी है । गंदे चीथड़ों में खुद को बचाती , इंसानी भेड़ियों से इज्ज़त छिपाती । हर रोज जीती और मरती है […] Read more »
कविता गीत कैसे बनाऊँ May 2, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment बेसुरी सी ज़िन्दगी मे, स्वर मै कैसे लगाऊँ। गति ही जब रुक गई हो ताल कौन सी बजाऊँ वीणा के हैं तार टूटे, साज़ सारे मुझसे रूठे, संगीत को कैसे मनाऊँ, आज गीत गा न पाऊँ, कल शायद […] Read more » गीत कैसे बनाऊँ
कविता मुझको “तुम्हारी” ज़रूरत है! April 30, 2013 / April 30, 2013 by विजय निकोर | 3 Comments on मुझको “तुम्हारी” ज़रूरत है! दूर रह कर भी तुम सोच में मेरी इतनी पास रही, छलक-छलक आई याद तुम्हारी हर पल हर घड़ी। पर अब अनुभवों के अस्पष्ट सत्यों की पहचान विश्लेषण करने को बाधित करती अविरत मुझको, कि “पास” हो कर भी तुम व्यथा से मेरी अनजान हो कैसे, या, ख़्यालों के खतरनाक ज्वालामुखी पथ पर कब किस चक्कर, […] Read more » मुझको "तुम्हारी" ज़रूरत है!
कविता धुप पर सवार लय April 29, 2013 / April 29, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment कहीं से एक लय सुनाई दे रही थी और दूर कहीं एक ताल जैसे उस लय को खोजती हुई तेज गर्मियों की धुप पर सवार होकर अपनें अस्तित्व के इकहरे पन को ख़त्म कर लेना चाहती थी. लय और ताल अपनी इस यात्रा में अपनें अस्तित्व को साथ लिए चलते थे किन्तु उनका ह्रदय […] Read more » धुप पर सवार लय
कविता हास्य व्यंग्य कविता : आरोप और आयोग April 28, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा आरोप और आयोग हमारे महान देश में जब जब घोटाला होता है और हमारे मंत्रियों , नेताओं आदि पर गंभीर आरोप लगाया जाता है तब तब सरकार द्वारा पहले तो इसे बकवास बताया जाता है लेकिन, ज्यादा हो-हल्ला होने पर एक जांच आयोग बैठा दिया जाता है आयोग का कार्यकाल महीनों, सालों का […] Read more » आरोप और आयोग हास्य व्यंग्य कविता
कविता अम्माँ April 28, 2013 / April 28, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment बच्चे ज्यों ज्यों हुये सयाने, चीर पुराने अम्माँ के । खेत हुये बेटों के बस कुछ पानी दाने अम्माँ के । सबसे सुंदर कमरे में माँ बहू बनी दर्पण तकतीँ बङी बहू के आते छिन गये ठौर ठिकाने अम्माँ के । पूछ पूछ कर अम्माँ से बाबूजी ईँटें चिनवाते । आँगन में […] Read more » अम्माँ
कविता वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा April 22, 2013 by विजय निकोर | 2 Comments on वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा मेरी तंग उदास गलियों में बिछे घनान्धकार ने अकस्मात जाना पूर्णिमा का चाँद इतना सौम्य, इतना संपन्न क्यूँ है ? मात्र तुम्हारे आने से मेरा संसार इतना दीप्तिमान क्यूँ है ? वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा […] Read more » वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा
कविता राजेन्द्र सारथी के दोहे April 17, 2013 / April 17, 2013 by राजेन्द्र सारथी | Leave a Comment शहरों में वे आ गये, बेच गांव के खेत। धन धूएं – सा उड़ गया, ख्वाब बन गए प्रेत। नए दौर में हो गए, खंडित सभी उसूल। जो जितना समरथ हुआ, उतना वह मकबूल। परिवर्तित इस जगत में, होती है हर चीज। अजर-अमर कोई नहीं, हर गुण जाता छीज। उन्नत वही […] Read more »
कविता कविता -जवान और किसान April 17, 2013 / April 17, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा हरा भरा खेत खलिहान फिर भी निर्धन क्यों हमारे किसान ? देश में नहीं पानी की कमी फिर भी क्यों रहती है सूखी यहाँ – वहाँ की जमीं ? जिसे देखना है वो देखें […] Read more »