कविता कविता: माँ May 19, 2010 / December 23, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 8 Comments on कविता: माँ -ललित गिरी प्यारी जीवन दायिनी माँ!, जब मैनें इस जीवन में किया प्रवेश पाया तेरे ऑंचल का प्यारा-सा परिवेश मेरे मृदुल कंठ से निकला पहला स्वर माँ! पूस की कॅंपी-कॅपी रात में, तूने मुझे बचाया। भीगे कम्बल में स्वयं सोकर, सूखे में मुझे सुलाया॥ तब भी नहीं निकली तेरी कंठ से, एक भी आह। क्योंकि […] Read more » Maa माँ
कविता एक गीत/तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! April 22, 2010 / December 24, 2011 by फ़िरदौस ख़ान | Leave a Comment तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई राधा कुंज भवन में जैसे सीता खड़ी हुई उपवन में खड़ी हुई थी सदियों से मैं थाल सजाकर मन-आंगन में जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई होंठ हिले तक नहीं, […] Read more » song
कविता वंदना शर्मा की कविता March 16, 2010 / December 24, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on वंदना शर्मा की कविता याद आता है मुझे वो बीता हुआ कल हमारा, जब कहना चाहते थे तुम कुछ मुझसे, तब मै बनी रही अनजान तुमसे, जाना चाहती थी मैं दूर, पर पास आती गई तुम्हारे, लेकिन धीरे-धीरे होती रही दूर खुदसे, फिर तो जैसे आदत बन गई मेरी हर जगह टकराना जाके यूँ ही तुमसे, जब तक नहीं […] Read more » poem कविता
कविता मैं होली हूँ – सतीश सिंह February 28, 2010 / December 24, 2011 by सतीश सिंह | 1 Comment on मैं होली हूँ – सतीश सिंह सदियों से मैं खुशियों की तस्वीर होली हूँ . अमराई की खुशबू हूँ, सबके दिल की धड़कन हूँ . रंगों का त्यौहार हूँ जो रंगों से कतराए उसके लिए शैतान हूँ जीवन के सफ़र में मैं बरगद की छावं हूँ अमराई की खुशबू हूँ, सबके दिल की धड़कन हूँ . फागुन की मेहरबानियाँ कछुए भी […] Read more » Holi Satish Singh मैं होली हूँ सतीश सिंह होली
कविता राकेश उपाध्याय की दो कविताएं February 25, 2010 / December 24, 2011 by राकेश उपाध्याय | 3 Comments on राकेश उपाध्याय की दो कविताएं 1.ईश्वरत्व के नाते मैंने नाता तुमसे जोड़ा… कल मैंने देखा था तुम्हारी आंखों में प्यार का लहराता समंदर उफ् कि मैं इन लहरों को छू नहीं सकता, पास जा नहीं सकता।। कभी-कभी लगता हैं कि इंसान कितना बेबस और लाचार है सोचता है मन कि आखिर क्यों बढ़ना है आगे, लेकिन कुछ तो है, जो […] Read more » Love प्रेम
कविता कविता : अब हैरान हूँ मैं …. February 12, 2010 / December 25, 2011 by शिवानंद द्विवेदी | 2 Comments on कविता : अब हैरान हूँ मैं …. जीवन की इस भीड़ भरी महफ़िल में, एक ठहरा हुआ सा वीरान हूँ मै, क्यों आते हो मेरे यादों के मायूस खंडहरों में , अब चले जाओ बड़ा परेशान हूँ मै … तुमसे मिलकर ही सजोयी थी चंद खुशियाँ मैंने, पर तुम्हें समझ ना पाया ऐसा अनजान हूँ मैं, बड़ा मासूम बनकर उस दिन जो […] Read more » poem
कविता कविता : मेरी माँ … February 9, 2010 / December 25, 2011 by शिवानंद द्विवेदी | 6 Comments on कविता : मेरी माँ … आज फिर अल्लसुबह उसी तुलसी के विरवा के पास केले के झुरमुटों के नीचे पीताम्बर ओढ़े वो औरत नित्य की भांति दियना जला रही थी ! मै मिचकती आँखों से उसे देखने में रत था , वो साधना वो योग वो ध्यान वो तपस्या, उस देवी के दृढ संकल्प के आगे नतमस्तक थे ! वो […] Read more » Maa मां
कविता रंगीन पतंगें February 8, 2010 / December 25, 2011 by ए. आर. अल्वी | Leave a Comment अच्छी लगती थीं वो सब रंगीन पतंगें काली नीली पीली भूरी लाल पतंगें कुछ सजी हुई सी मेलों में कुछ टंगी हुई बाज़ारों में कुछ फंसी हुई सी तारों में कुछ उलझी नीम की डालों में उस नील गगन की छाओं में सावन की मस्त बहारों में कुछ कटी हुई कुछ लुटी हुई पर थीं […] Read more » Kites पतंग
कविता ए. आर. अल्वी की कविता: गांधी की आवाज़ January 29, 2010 / December 25, 2011 by ए. आर. अल्वी | Leave a Comment फिर किसी आवाज़ ने इस बार पुकारा मुझको खौफ़ और दर्द ने क्योंकर यूं झिंझोड़ा मुझको मैं तो सोया हुआ था ख़ाक के उस बिस्तर पर जिस पर हर जिस्म नयीं ज़िन्दगी ले लेता है बस ख़्यालों में नहीं अस्ल में सो लेता है आंख खुलते ही एक मौत का मातम देखा अपने ही शहर […] Read more » Mahatma Gandhi ए. आर. अल्वी कविता गांधी की आवाज़ महात्मा गांधी
कविता मत आना लौट कर January 28, 2010 / December 25, 2011 by केशव आचार्य | 3 Comments on मत आना लौट कर मत आना इस धरा पर तुम लौट कर, इस विश्वास के साथ कि तुम्हारे तीनों साथी अब भी बैठे होंगे, कान आंख और मुंह बंद कर बुरा ना सुनने, देखने और कहने के लिए, मत आना तुम इस धरा पर लौट कर इस आशा के साथ कि तुम्हारी लाठी अब भी तुम्हारे रास्ते का हमसफ़र […] Read more » poem कविता
कविता कविता: जंगल का ‘गणतन्त्र’ January 27, 2010 / December 25, 2011 by राकेश उपाध्याय | 4 Comments on कविता: जंगल का ‘गणतन्त्र’ लेखक एवं पत्रकार राकेश उपाध्याय स्फुट कविताएं भी लिखते रहते हैं। उनकी कविताएं पूर्व में प्रवक्ता वेब पर प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रवक्ता के लिए उन्होंने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक खास व्यंग्यात्मक कविता रची है। इसे हम अपने पाठकों के अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है कि पाठक गण उनकी रचनाधर्मिता […] Read more » Independence Day कविता गणतंत्र दिवस
कविता मां शारदे मुझे सिखाती January 20, 2010 / December 25, 2011 by स्मिता | 2 Comments on मां शारदे मुझे सिखाती दौर नया है युग नया है हानि-लाभ की जुगत में चारों ओर मची है आपाधापी मां शारदे मुझे सिखाती तर्जनी पर गिनती का स्वर न काफी भारत की थाती का ज्ञान न काफी सिर्फ अपना गुणगान न काफी मां शारदे मुझे सिखाती नवसृजन की भाषा सीखो मानव मुक्ति का ककहरा सीखो भव बंधन के बीच […] Read more » poem कविता मां शारदे