लेख इंसानों की नहीं पशुओं की अधिक चिंता ? March 27, 2023 / March 27, 2023 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री देश भर में बेलगाम आवारा पशुओं के कारण रोज़ाना सैकड़ों हादसे हो रहे हैं। कहीं सड़कों पर पशुओं की वाहनों से टक्कर के कारण बड़ी दुर्घटनायें हो रही हैं। कहीं बिगड़ैल सांड लोगों को अपने कोप […] Read more »
लेख सार्थक पहल भूकंप की तैयारी सिर्फ इमारतों के बारे में नहीं है। March 27, 2023 / March 27, 2023 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment सोशल मीडिया, टीवी चैनलों और अखबारों के जरिए आम लोगों के जान-माल को भूकंप से बचने के लिए सतर्क और सजग किया जा सकता है। भूकंप से जान-माल से बचाव न हो पाने की वजह यह भी है कि भूकंप आने का वक्त और अंतराल के बारे में वैज्ञानिक कुछ बता पाने की हालात में […] Read more » Earthquake preparedness isn't just about buildings.
कला-संस्कृति लेख नव सम्वत् पर संस्कृति का सादर वन्दन करें March 27, 2023 / March 27, 2023 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीयनवरात्र हवन के झोंके, सुरभित करते जनमन को।है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को॥नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं।हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥ 22 मार्च से विक्रम सम्वत् 2080 का प्रारम्भ गया है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार […] Read more » Regards to the culture on the new year
लेख समाज बच्चों को बेचने वाला संवेदनहीन समाज March 27, 2023 / March 27, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग झारखण्ड में एक बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद कथित रूप से साढ़े चार लाख में बेच दिए जाने की शर्मनाक घटना ने संवेदनहीन होते समाज की त्रासदी को उजागर किया है। जहां इस घटना को मां की संवेदनहीनता और क्रूरता के रूप में देखा जा सकता है, वहीं आजादी […] Read more » insensitive society that sells children
लेख समाज ब्राइड ट्रैफिकिंग : कुछ रिश्ते मीठे भी होते हैं March 27, 2023 / March 27, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment सीटू तिवारीपटना, बिहार जानकी देवी और रीता दास रिश्ते में सास–बहु लगती हैं. वो कटिहार के धीमनगर की खेड़िया पंचायत की रहने वाली हैं और अपने गांव के दूसरे परिवारों से इतर, बहुत सुकून में हैं. वजह ये कि उन्होंने अपने घर की बेटियों की शादी बहुत सोच समझ कर की है. जानकी देवी बताती […] Read more » Bride Trafficking
लेख स्वास्थ्य-योग 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य और तमाम बड़ी चुनौतियां March 23, 2023 / March 23, 2023 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (विश्व क्षय रोग दिवस, 24 मार्च पर विशेष आलेख) हर साल, हम पूरे मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज हो जाने से टीबी के निदान और इलाज में बहुत आसानी हुई। जर्मन फिजिशियन रोबर्ट कोच की इस खोज के लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। यही कारण है कि हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में जन-जागरुकता फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए विष्व क्षय रोग दिवस मनाता आ रहा है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज के सौ साल बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार 24 मार्च 1982 को विश्व क्षय रोग दिवस शुरू मनाने की शुरुआत की, तभी से हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है। टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ्य व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। क्षय रोग सुप्त और सक्रिय अवस्था में होता है। सुप्त अवस्था में संक्रमण तो होता है लेकिन टीबी का जीवाणु निष्क्रिय अवस्था में रहता है और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर सुप्त टीबी का मरीज अपना इलाज नहीं कराता है तो सुप्त टीबी सक्रिय टीबी में बदल सकती है। लेकिन सुप्त टीबी ज्यादा संक्रामक और घातक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है। सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी का जीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है, यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ्य व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है, इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुँह पर मास्क या कपडा लगाकर बात करनी चाहिए और मुँह पर हाथ रखकर खाँसना और छींकना चाहिए। अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेंफड़ों को प्रभावित करता है। लक्षणों की बात की जाए तो आमतौर पर लंबे समय तक खांसी, सीने में दर्द, बलगम, वजन कम होना, बुखार आना और रात में पसीना आना शामिल हो सकते हैं। कभी-कभी पल्मोनरी टीबी से संक्रमित लोगों की खांसी के साथ थोड़ी मात्रा में खून भी आ जाता है। लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। अगर टीबी का जीवाणु फेंफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेंफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेंफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। फेंफड़ों के अलावा दूसरे अंगों में होने वाली टीबी को सामूहिक रूप से एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) अधिकतर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक आम होता है। एचआईवी से पीड़ित लोगों में, एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में पाया जाता है। आज के समय पर सामान्य टीबी का इलाज कोई चुनौती नहीं है। अगर कोई भी व्यक्ति सामने टीबी का मरीज है तो वह 6-8 महीने टीबी का उपचार लेकर स्वस्थ्य हो सकता है। आज के समय पर सबसे बड़ी चुनौती है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज की, जो कि दो प्रकार की होती है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी और एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश अनुसार नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजीस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (लीवोफ्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और बेडाक्वीलाइन/लीनाजोलिड ड्रग का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा 2 वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। आज के समय पर ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए तीन प्रकार की रेजीमेन- एचमोनो पोली रेजीमेन (6 या 09 माह), शॉर्टर रेजिमेन (9-11 माह) और आॅल ओरल लोंगर रेजीमेन (18-20 माह) का उपयोग किया जा रहा है। नयी टीबी ड्रग बेडाक्वीलाइन का उपयोग भी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर और एक्सडीआर) के उपचार में किया जा रहा है, बेडाक्वीलाइन दवा टीबी की अन्य दवाओं के साथ छः माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाती है। जिन भी मरीजों को देश में बेडाक्वीलाइन दवा दी जा रही है वह सरकार द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराई जा रही हैं। शोध में पता चला है कि बेडाक्वीलाइन ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की इलाज की दर को बढ़ा रही है। लेकिन बेडाक्वीलाइन ड्रग भी हर मरीज को नहीं दी जा सकती है इसके भी अपने दायरे हैं। डेलामानिड दवा भी दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए नयी दवा है। हमारे भारत देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी मरीजों की संख्या है। भारत देश का लगभग 27 प्रतिशत टीबी बीमारी के मामले में पूरे विश्व में योगदान है। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज भी भारत देश में है। अगर टीबी मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय टीबी मरीज साल में कम से कम 15 नए मरीज पैदा करता है। एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज से होने वाला सक्रमण भी एमडीआर और एक्सडीआर ही होता है जो कि एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है। इसलिए जरूरी है कि खासकर एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीजों कि विशेष निगरानी की जानी चाहिए और उनके संपर्क में रहने वाले लोगों की भी जांच करायी जानी चाहिये, जिससे कि एमडीआर और एक्सडीआर टीबी मरीज दूसरे एमडीआर और एक्सडीआर मरीज पैदा नहीं कर सकें। आज सरकार द्वारा राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत टीबी कि रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों पर तमाम प्रयास किये जा रहे है और सरकार टीबी की रोकथाम में बडी तेजी से आगे बढ रही है। आज जरुरत है कि जमीनी स्तर पर काम करने की जिससे कि सरकार के प्रयासों को सफलता में बदला जा सके। अगर उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश, भारत देश में टीबी बीमारी के मामले में सबसे ज्यादा योगदान करता है। उत्तर प्रदेश में टीबी की रोकथाम के लिए आगरा में राज्य क्षय रोग प्रशिक्षण और प्रदर्शन केंद्र काम कर रहा है इसके साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश में 75 जिला टीबी केंद्र हैं। लगभग 1000 के आसपास टीबी यूनिट्स हैं। लगभग 2000 से ज्यादा डेसिग्नेटेड माइक्रोस्कोपी केंद्र हैं। इसके अलावा (नेशनल रेफरेन्सेस लेबोरेटरी) एनआरएल नेशनल जालमा इंस्टिट्यूट फॉर लेप्रोसी एंड अदर मायकोबैक्टीरियल डिसीसेस, आगरा भी टीबी उन्मूलन के लिए काम कर रहा है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में दो आईआरएल (इंटरमीडिएट रिफरेन्स लेबोरेटरी) आगरा और लखनऊ हैं। ये आईआरएल कल्चर डीएसटी लैब के साथ-साथ पूरे प्रदेश में निरीक्षण (सुपरविजन और ऑन साइट मूल्यांकन) का काम भी करती हैं। दोनों आगरा और लखनऊ आईआरएल के साथ-साथ अन्य कल्चर डीएसटी लैब (एएमयू अलीगढ, बीएचयू बनारस, मेरठ और गोरखपुर) भी काम कर रही हैं। इसके अलावा कई डीएसटी लैब्स विकासशील अवस्था में है। इसी प्रकार की व्यवस्था देश के हर राज्य में है। यह सब व्यवस्था देश को टीबी मुक्त बनाने में लगी हुई है। सरकार विभिन्न जगहों पर काफी पैसा खर्च करती है उसी प्रकार राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को सफल बनाने के लिए कर रही है, लेकिन आज भी निचले क्रम के एनटीईपी, एनएचएम और आउटसोर्सिंग के अंतर्गत काम कर रहे कर्मचारियों को काफी कम वेतन मिलता है। यह वेतन विसंगति देष के हर राज्य में है। इस वेतन विसंगति को दूर करने के लिये केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को प्रयास करने की जरुरत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चल रहे राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) में सम्पूर्ण देश में हजारों लैब टैक्नीशियन और अन्य कर्मचारी संविदात्मक सेवा के तहत काम कर रहे हैं। ये सभी लैब टेक्नीशियन राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत चल रहीं नेशनल रेफरेन्स लेबोरेटरी, इंटरमीडिएट रेफरेन्स लेबोरेटरी, डिजाइनेटेड माइक्रोस्कोपी सेंटर्स, विभिन्न कल्चर एंड डीएसटी लैब्स और हजारों प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में काम कर रहे हैं। इन लैब्स में सभी लैब टेक्नीशियनों को मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के एक्सटेंसीवेली ड्रग रेजिस्टेंस स्ट्रेन को भी डील करना पड़ता है, जो कि अत्यंत खतरनाक है। सम्पूर्ण देश में हजारों लैब टैक्नीशियन अपनी जान का जोखिम उठाकर देश को 2025 तक टीबी मुक्त भारत करने कि दिशा में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। इस जोखिम भरे काम के बदले में संविदात्मक सेवा के तहत काम कर रहे लैब तकनीशियन को काफी कम मासिक वेतन मिलता है। जिससे उनके पारिवारिक खर्चे भी पूरे नहीं होते। साथ-साथ लैब टैक्नीशियन को लैब में काम करते समय और मरीज के संपर्क में आते समय टीबी से संक्रमण का खतरा रहता है। इसलिये समस्त कर्मचारियों का सरकार द्वारा स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा कराया जाना चाहिये। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत काम कर रहे संविदात्मक लैब टेक्नीशियन या अन्य संविदा कर्मचारियों के लिए सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे कि उन्हें भी नियमित कर्मचारियों की भांति टीबी की चपेट में आने पर या मृत्यु हो जाने पर पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद मुहैया कराने और परिवार में से किसी एक परिजन को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान हो। जिससे कि संविदात्मक लैब टेक्नीशियन और अन्य संविदा कर्मचारियों या उनके परिवार का भविष्य अंधकारमय न हो। सरकार को इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए संविदात्मक लैब टेक्नीशियन या अन्य संविदा कर्मचारियों के हित में एक ऐसी नीति बनानी चाहिये, जिससे राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत काम कर रहे सभी संविदा कर्मचारियों के मानवाधिकारों की रक्षा हो। आज सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 500 रुपये पोषण के लिए दे रही है, इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है यह भी सरकार का टीबी मुक्त भारत कि दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स कि लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित जो दिशा निर्देश जारी किये है ये कदम भी राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को मजबूती प्रदान करते हैं, इन दिशा निर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर्स को टीबी के मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होगी। साथ ही साथ मेडिकल स्टोर वालों को टीबी मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होना। अगर इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा की कार्यवाही हो सकती है। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामजिक संस्थाओं को निक्षय मित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे कि टीबी के मरीजों को सही से पोषण और उनका सही से ख्याल रखा जा सके। इसके साथ ही सरकार को विभिन्न टीमों के माध्यम से साल के 365 दिन सक्रिय क्षय रोग खोज अभियान चलाकर इसे जन-आन्दोलन बनाना चाहिये। इस सक्रिय क्षय रोग खोज अभियान में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, विभिन्न एनजीओ और सामजिक संस्थाओं या संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए। जिससे कि देश के कौने-कौने से टीबी के मरीजों का पता लगाया जा सके और उसे सही समय पर उपचार दिया जा सके। तभी देश 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कहा जाये तो भारत देश के लिये 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य एक बहुत बडी चुनौती है। लेकिन कहा जाता है कि सकारात्मकता और कड़ी मेहनत से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही विश्व को टीबी मुक्त करने के लक्ष्य 2030 से 5 साल पहले 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तय किया गया लक्ष्य है। अगर देश का प्रधानमंत्री देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करता है तो निश्चित रूप से आने वाले सालों में सरकार टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में और कड़े कदम उठाएगी और ये कदम 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने कि दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को टीबी मुक्त भारत की दिशा में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की समय-समय पर कमियों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे कि इन कमियों को मजबूती में बदला जा सके और भारत देश में टीबी के अंतिम मरीज तक पहुंचा जा सके। और समय अनुसार 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। लेखक – ब्रह्मानंद राजपूत Read more » The goal of a TB-free India by 2025 and the many challenges ahead विश्व क्षय रोग दिव
लेख आवारा मवेशियों की समस्या का हल ज़रूरी है March 23, 2023 / March 23, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment देवेन्द्रराज सुथार जालोर, राजस्थानदेशभर में आवारा मवेशियों की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है. जहां एक ओर आवारा मवेशी सड़क हादसों का सबब बन रहे हैं, तो दूसरी ओर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. आज शहर हो या गांव, आवारा मवेशियों के आतंक से कोई अछूता नहीं हैं. इनके यत्र-अत्र-सर्वत्र घूमने से आमजन का अपने घर […] Read more » The problem of stray cattle needs a solution
लेख शख्सियत समाज अमर शहीद हेमू कालाणी सिंध प्रांत के युवाओं में देशप्रेम का भाव जगाते रहे March 23, 2023 / March 23, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment अखंड भारत का सिंध प्रांत वैसे तो सूफियाना अंदाज एवं आध्यात्म के लिए जाना जाता है, परंतु, सिंध प्रांत में व्यापार भी बहुत उन्नत स्तर पर होता रहा है एवं प्राचीन भारत में सिंध प्रांत के निवासी सामान्यतः सुखी, समृद्ध एवं सम्पन्न रहे हैं। साथ ही, भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से […] Read more » अमर शहीद हेमू कालाणी
कला-संस्कृति लेख नव सम्वत् पर संस्कृति का सादर वन्दन करें March 23, 2023 / March 23, 2023 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय नवरात्र हवन के झोंके, सुरभित करते जनमन को। है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को॥ नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं। हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥ 22 मार्च से विक्रम सम्वत् 2080 का प्रारम्भ गया है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार के होते हैं, जिनमें […] Read more » नव सम्वत्
लेख सतत विकास की सार्थकता है स्वच्छ जल March 20, 2023 / March 20, 2023 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह जल, प्रकृति द्वारा मानवता के लिए एक अनमोल उपहार है। तभी तो कहा गया है प्यासे को पानी पिलाना सबसे बड़ी मानवता है। ऋग्वेद (18:82:6) में वर्णित है कि जल में सभी तत्वों का समावेश है। जल में सभी देवताओं का वास है। जल से पूरी सृष्टि, सभी चर और अचर […] Read more »
लेख बिहार की धरोहर : पर्यटन और रोजगार सृजन का साधन March 20, 2023 / March 20, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment सौम्या ज्योत्सना मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार हमारी धरोहर, हमें अपने जड़ों से जोड़ती है और जड़ों का मजबूत होना बेहद जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी विरासत और संस्कृति के बारे में न केवल जाने बल्कि उसकी महत्ता से भी परिचित हो जाए. धरोहरों की महत्ता न केवल भारत में है बल्कि दुनिया भर में इस पर काफी गंभीरता […] Read more » Heritage of Bihar: Tourism and means of employment generation
मीडिया लेख फेक न्यूज और दुष्प्रचार भारतीय समाज में नई चुनौतियाँ March 20, 2023 / March 20, 2023 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment हर किसी की यह जिम्मेदारी है कि वह फेक न्यूज और गलत सूचना के संकट से लड़े। इसमें फेक न्यूज के लिए वित्तीय प्रोत्साहन को कम करने से लेकर आम जनता के बीच डिजिटल साक्षरता में सुधार तक सभी आयाम शामिल हैं। आज देश में कई एजेंसियों ने फेक न्यूज़ का सच लोगों तक लाने […] Read more » Fake News and Disinformation New Challenges in Indian Society