लेख चरित्र निर्माण के बिना दौड़ता जीवन! April 23, 2025 / April 23, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव जिन्दगी के 60 बसंत पंख लगाकर कब फुर्र से उड़ गए पता ही नहीं चला किन्तु एक पुराना वाकया याद आ गया जहा स्कुल से मिले चरित्र प्रमाणपात्र के बाद जीवन में पुलिस से प्रमाणित चरित्र प्रमाण पत्र माँगा गया, मैंने जबाव दिया की जब बिना चरित्र के अब तक गुजर गई तब वे पुलिस वाले जो खुद चरित्रहीन है वे कैसे और क्यों मेरे चरित्र की गारंटी लेंगेl चरित्र मेरा है इसलिए अपने चरित्र की गारंटी मैं खुद ले सकता हूँ, पुलिसवाले गारंटी दे यह बात गले नहीं उतरी थीl मेरे चरित्र के विषय में 100 प्रतिशत गारंटी मेरी मान्य होने चाहिए वाकी जो घटिया चरित्र को छुपाकर में अपने घर परिवार या बाल सखा आदि के साथ रहता हूँ वे मेरे सच्चे मित्र होने के साथ मेरे सुख दुःख के साथी भी है l मेरे विषय में मेरे मोहल्ले पड़ोस या साथ रहने वाले फिफ्टी फिफ्टी मेरे चरित्र का प्रमाण दे तो समझ आती है किन्तु जो पुलिस मुझे न जानते समझते मेरे चरित्र की गारंटी ले तो वैसी ही बात होगी जैसे आज महंगाई ढीठ- हरजाई-जैसी प्रेमिका के रूप में सोने की कीमतों को आसमान पर बिठाले है, भला सोने के उतार चढ़ाव को यह बाजार क्या जाने, जब बाजार भावों को नहीं समझ सकता तो पुलिस जो कहीं भी मेरे न तो आगे है और न पीछे है वह चरित्र की गारंटी कैसे ले सकती है? जरा विचार कीजिये मैं जीवन में कुछ बनना चाहता हूँ किन्तु न तो सरकार बनाने को तैयार है और न ही इस देश में एसी व्यवस्था है की लाखों रूपये की इंजीनियर, ला, प्रोफ़ेसर आदि की डिग्री लेने के बाद आप इंजीनियर, जज या कोई पद पर जा सकेl देश में लाखो डिग्रीधारी है वे […] Read more » चरित्र निर्माण
लेख कर्ज तले दबा अन्नदाता April 22, 2025 / April 22, 2025 by राजेश खण्डेलवाल | Leave a Comment राजेश खण्डेलवाल कभी तेज सर्दी तो कभी भीषण गर्मी, कभी अकाल तो कभी बाढ़, कई बार कीटों का प्रकोप तो कई बार तेज हवाएं। ऐसे ही कारणों से चौपट होती अपनी फसल को देख किसान दु:खी रहता है। कृषि प्रधान भारत में किसान यूं तो अन्नदाता कहलाता है लेकिन वही आज आज भारी कर्ज के बोझ तले दबा है। सरकारें भले ही राहत योजनाओं का ढोल पीटती हों लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ अलग ही नजर आती है। बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि देश के 58 फीसदी किसान कर्जदार हैं। साहूकारों और निजी उधारदाताओं से लिए गए कर्जे के ठोस सरकारी आंकड़े ही उपलब्ध नहीं है। सरकार ने 2014 से लेकर 2025 तक कृषि बजट में 8 गुना तक बढ़ोतरी कर विकास का दावा किया लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी किसान की तकदीर व तस्वीर पहले जैसे ही है। मार्च, 2024 तक महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कर्जदारी रही जहां 1.46 करोड़ किसान 8.38 लाख करोड़ के कर्ज तले दबे हैं। राजस्थान के 1.05 करोड़ किसान 1.74 लाख करोड़ और मध्य प्रदेश के 93.52 लाख किसान 1.50 लाख करोड़ के कर्जदार हैं। जून 2023 तक राजस्थान के किसानों पर वाणिज्यिक, सहकारी और क्षेत्रीय ग्रामीणों बैंकों का 147538.62 करोड़ रुपए कृषि कर्ज बकाया था। राजस्थान में एक किसान परिवार पर औसतन 1.66 लाख का कर्ज है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 18.81 करोड़ किसान परिवारों पर कुल 32,35,747 करोड़ का कृषि ऋण है। यह रकम 2025-26 के कृषि बजट (1,71,437 करोड़) का लगभग 20 गुना है। किसानों को सबसे ज्यादा कर्ज वाणिज्यिक बैंकों से मिलता है। वहीं देश में एक किसान परिवार पर औसतन 1.70 लाख का कर्ज है। केन्द्र और राज्य सरकारें फिलहाल कर्जमाफी के मूड में नहीं हैं। उनकी प्राथमिकता किसान कल्याण योजनाओं पर अधिक ध्यान देना है। केंद्र सरकार ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। किसानों के लिए उन्नत बीजों का इंतजाम कर रही है। ड्रोन टेक्नोलॉजी लेकर आई है। हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी भी कर रही है और खरीद भी बढ़ा रही है। 2014 में केंद्र सरकार का कृषि बजट 21,933 करोड़ था। 2025-26 में यह बढकऱ 1,71,437 करोड़ हो गया है। अब तक 3.46 लाख करोड़ रुपए किसानों को पीएम किसान योजना के तहत मिल चुके हैं। 100 जिलों में पीएम धन धान्य योजना के तहत कृषि विकास से 1.7 करोड़ किसानों को लाभ होने की उम्मीद है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के 85.86 लाख किसानों पर कुल 2.20 लाख करोड़ का बैंक कर्ज बकाया है। दक्षिण भारतीय राज्यों में किसानों पर बकाया ऋण की स्थिति अलग-अलग है। ऋणग्रस्तता के मामले में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सबसे अधिक प्रभावित हैं जबकि तमिलनाडु में सबसे अधिक ऋण बकाया है। राजेश खण्डेलवाल Read more » Farmers burdened with debt कर्ज तले दबा अन्नदाता
लेख बिल्डिंग से ज़्यादा अब बात मलबे की है — और सरकार ने ये बात अब क़ानून बना दी है। April 22, 2025 / April 22, 2025 by निशान्त | Leave a Comment मयूरी अब अगर आपने कोई बिल्डिंग गिराई या नया प्रोजेक्ट शुरू किया है, तो “क्या करेंगे मलबे का?” इस सवाल का जवाब आपके पास होना चाहिए — और वो भी लिखित में! दरअसल सरकार ने हाल ही में Construction and Demolition Waste Management Rules, 2024 लागू कर दिए हैं, जो 1 अप्रैल 2026 से ज़मीन पर उतरेंगे। ये कानून पुराने 2016 वाले नियमों की जगह लेंगे — इस […] Read more » Construction and Demolition Waste Management Rules बात मलबे की है
लेख धधकती धरती: विकास की दौड़ या विनाश की ओर? April 22, 2025 / April 22, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष योगेश कुमार गोयलन केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का निरन्तर बिगड़ता मिजाज गंभीर चिंता का सबब बना है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनियाभर में दोहा, कोपेनहेगन, कानकुन इत्यादि बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर के […] Read more » Burning Earth: Race for development or towards destruction? धधकती धरती विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल)
लेख पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच सेतु होतीं हैं पुस्तकें ! April 22, 2025 / April 22, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला 23 अप्रैल को हर साल ‘विश्व पुस्तक और कापीराइट दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पुस्तकें ज्ञान का अथाह भंडार होतीं हैं तथा ये किताबें ही होतीं हैं जो हमारे अतीत और भविष्य के बीच एक योजक कड़ी के रूप में काम करतीं हैं। जे.के. रोलिंग ने यह बात कही है कि-‘यदि आपको पढ़ना पसंद नहीं है तो आपको सही किताब नहीं मिली है।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि किताबें और दरवाज़े एक ही चीज़ हैं। आप उन्हें खोलते हैं, और आप दूसरी दुनिया में चले जाते हैं। वास्तव में, किताबें पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच एक सेतु की भूमिका निभाती हैं। यह दिवस यूनेस्को द्वारा स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य साहित्य के विभिन्न रूपों का लुत्फ़ उठाना, पढ़ने की आदतों को बढ़ावा देना और कॉपीराइट के महत्व को उजागर करना है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार सर्वप्रथम वर्ष 1995 में, यूनेस्को ने 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस के रूप में नामित किया था क्योंकि इस दिन महान् नाटककार विलियम शेक्सपियर, इंका गार्सिलसो-डे-ला-वेगा और मिगुएल डे सर्वेंट्स सहित कई महान लेखकों की मृत्यु हुई थी। इसके अतिरिक्त, उपलब्ध जानकारी के अनुसार यूनेस्को ने वर्ष 1995 में पेरिस में आयोजित अपने महाधिवेशन के कारण भी 23 अप्रैल को ही यह दिन तय किया था। इसमें लेखकों और उनकी अनुकरणीय पुस्तकों को श्रद्धांजलि दी गई तथा उनका स्मरण किया गया था। यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व पुस्तक दिवस पहली बार 7 अक्टूबर, 1926 को मनाया गया था और विसेंट क्लेवेल एन्ड्रेस ने विश्व पुस्तक दिवस मनाने का विचार 1922 में प्रस्तुत किया। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि स्पेन के एक क्षेत्र कैटेलोनिया में, 23 अप्रैल को ला दीदा डे सैंट जोर्डी (सेंट जॉर्ज डे) के रूप में जाना जाता है और इस दिन प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए पुस्तकों और गुलाबों का आदान-प्रदान करना पारंपरिक है। गौरतलब है कि विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस आधिकारिक तौर पर 1955 में मनाया गया था। हालाँकि, इस दिन की शुरुआत 1922 में विसेंट क्लेवेल एंड्रेस द्वारा एक महान स्पेनिश लेखक मिगुएल डे सर्वेंट्स के सम्मान में की गई थी। वास्तव में यह दिवस विभिन्न लेखकों, साहित्यकारों, विद्वानों, विदुषियों, पत्रकारों, प्रकाशकों, साहित्य में रूचि रखने वालों, शिक्षकों, शिक्षार्थियों तथा पुस्तकालयों की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का युग है। इंटरनेट , इ-मेल, सूचना क्रांति का युग है और इस दौर में कापीराइट की आवश्यकता कहीं अधिक हो गई है क्योंकि यह कापीराइट ही है जो कि रचनाकारों की रचनाओं की सुरक्षा करता है। पाठकों को बताता चलूं कि कापीराइट कानून में क्रमशः किसी पेंटिंग, फ़ोटोग्राफ़, चित्रण,संगीत रचनाओं, ध्वनि रिकॉर्डिंग,कंप्यूटर प्रोग्राम, नाटक, फिल्म,किताबों, वास्तुशिल्प का कार्य, कविताओं, कहानियों समेत ब्लॉग पोस्ट या किसी भी प्रकार के साहित्य को शामिल किया जा सकता है। वास्तव में कॉपीराइट, रचनाकार की सुरक्षा करता है ताकि कोई भी व्यक्ति बिना अनुमति के उसकी नकल या इस्तेमाल न कर सके। सरल शब्दों में कहें तो कॉपीराइट, किसी रचना या आविष्कार के बारे में अनन्य रूप से प्रकाशित करने, बेचने, वितरित करने या फिर से बनाने का एक तरह से एक विशेष कानूनी अधिकार है। आज कापी पेस्ट का जमाना है और बहुत से लोग इधर-उधर से किसी साहित्यिक मैटर(सामग्री)को उठाकर हू-ब-हू अपने नाम से इस्तेमाल कर लेते हैं जो कि कापीराइट का सीधा उल्लंघन है। आमतौर पर कापीराइट एक तरफ से ‘बौद्धिक संपदा कानून’ है। हम कह सकते हैं कि ‘कॉपीराइट , साहित्यिक, संगीतमय, नाटकीय या कलात्मक कार्य को पुनरुत्पादित करने, वितरित करने और प्रदर्शन करने का अनन्य, कानूनी रूप से सुरक्षित अधिकार है।’ यह बहुत ही दुखद है कि आज कोई भी व्यक्ति किसी के काम को(साहित्यिक, कलात्मक आदि) को बिना मूल लेखक/कलाकार की अनुमति के उसके(लेखक विशेष) काम को पुनः तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करता है, अथवा इसे प्रकाशित करता है, तथा इसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है, या इसे फिल्माता है, अथवा इसे किसी अन्य रूप में प्रसारित या इसका रूपांतरण आदि करता है, तो इसे किसी भी हाल और परिस्थितियों में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है,यह बहुत ही ग़लत है। आज विभिन्न साहित्यिक कृतियों जैसे कि पुस्तकों, लेखों, कविताओं, उपन्यासों और कंप्यूटर अनुप्रयोग आदि, नाट्य कृतियों जैसे कि नाटक, पटकथाओं और प्रदर्शन के लिए स्क्रिप्ट आदि,संगीतमय कृतियों जैसे कि विभिन्न रचनाओं, धुनों और संगीत आदि, विभिन्न कलात्मक कृतियों जैसे कि पेंटिंग, रेखाचित्रों, फोटोग्राफ, मूर्तियों और वास्तुशिल्पीय कृतियों आदि,सिनेमैटोग्राफ फिल्मों जैसे कि दृश्य कथाओं सहित चलचित्रों, वृत्तचित्रों और वीडियो सामग्री आदि तथा ध्वनि रिकॉर्डिंग जैसे कि किसी गाने, भाषण या किसी भी रिकॉर्ड की गई ध्वनि की ध्वनि रिकॉर्डिंग आदि को बिना मूल लेखक/कलाकार की अनुमति के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत कर दिया जाता है जबकि वह उसका स्वयं का लिखा/बनाया गया नहीं होता है तो यह कापीराइट का सीधा उल्लंघन है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत में, कॉपीराइट अधिनियम 1957 निर्माता को 60 वर्षों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इस अधिनियम का मकसद, लेखकों, प्रकाशकों, और उपभोक्ताओं के बीच संतुलन बनाए रखना है तथा इस अधिनियम में अब तक कई संशोधन भी हो चुके हैं, जिसमें सबसे हालिया संशोधन वर्ष 2012 में हुआ था। विकीपीडिया पर उपलब्ध एक जानकारी के अनुसार ‘2016 के कॉपीराइट मुकदमे में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि कॉपीराइट ‘कोई अपरिहार्य, दैवीय या प्राकृतिक अधिकार नहीं है जो लेखकों को उनकी रचनाओं का पूर्ण स्वामित्व प्रदान करता है, बल्कि इसे जनता के बौद्धिक संवर्धन के लिए कला में गतिविधि और प्रगति को प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। कॉपीराइट का उद्देश्य ज्ञान की फसल को बढ़ाना है, न कि उसे बाधित करना। इसका उद्देश्य जनता को लाभ पहुँचाने के लिए लेखकों और आविष्कारकों की रचनात्मक गतिविधि को प्रेरित करना है।’ बहरहाल,कॉपीराइट(प्रतिलिप्यधिकार) अधिनियम 1957 ‘विचारों के बजाय विचारों की अभिव्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है।’ कॉपीराइट (संशोधन) नियम 2021 को कॉपीराइट के अन्य प्रासंगिक कानूनों के अनुरूप लाने के लिये कार्यान्वित किया गया था। वर्ष 2025 में विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस की थीम ‘रीड योर वे'(अपने तरीके से पढ़ें) रखी गई है। ‘विश्व पुस्तक और कापीराइट दिवस’ पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में अधिकारी किताबें पढ़ें, पुस्तकों का दान करें। पढ़ने से ज्ञान में बढ़ोत्तरी होती है,हम सक्रिय बनते हैं। हमारी शब्दावली का विकास पढ़ने से ही होता है। पढ़ने से हमारा अवसाद और तनाव कम होता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि ‘किताबें दुनिया चलातीं हैं।’ सच तो यह है कि किताबों के पन्नों के बीच ज्ञान की बड़ी शक्ति छुपी होती है और ज्ञान ही असली शक्ति है। वास्तव में, ‘किताबें एक अनोखा पोर्टेबल जादू हैं।’कहना गलत नहीं होगा कि लेखन और पठन हमारे अलगाव की भावना को कम करते हैं। वे हमारे जीवन की भावना को गहरा और व्यापक बनाते हैं। संक्षेप में कहें तो वे आत्मा को पोषण देते हैं।सिसेरो ने कहा है-‘पुस्तकों के बिना एक कमरा आत्मा के बिना शरीर की तरह है।’ सुनील कुमार महला Read more » पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच सेतु होतीं हैं पुस्तकें पुस्तकें
महिला-जगत लेख ‘डिजिटल बलात्कार’ के मायने क्या है? April 22, 2025 / April 22, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में एयरलाइन कर्मचारी का यौन उत्पीड़न करने वाला आरोपित गिरफ्तार हो गया है। वह इसी अस्पताल का कर्मचारी था। उसकी पहचान दीपक कुमार के तौर पर हुई है। वह आईसीयू में तैनात था। उस पर अब ‘डिजिटल रेप’ का आरोप लगा है। डिजिटल रेप सामान्य रेप से अलग आरोप […] Read more » ‘डिजिटल बलात्कार’ के मायने क्या है digital rape
मीडिया लेख समाज अजमेर से इंस्टाग्राम तक: बेटियों की सुरक्षा पर सवाल April 22, 2025 / April 22, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment शिक्षा या शिकारी जाल? पढ़ी-लिखी लड़कियों को क्यों नहीं सिखा पाए हम सुरक्षित होना? अजमेर की छात्राएं पढ़ी-लिखी थीं, लेकिन वे सामाजिक चुप्पियों और डिजिटल खतरों से अनजान थीं। हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं, सुरक्षा भी सिखाए। और परवरिश सिर्फ आज्ञाकारी बनाने के लिए नहीं, संघर्षशील और सचेत नागरिक बनाने […] Read more » बेटियों की सुरक्षा पर सवाल
लेख पुस्तकें कल्पवृक्ष भी है और कामधेनु भी है April 22, 2025 / April 22, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व पुस्तक दिवस-23 अप्रैल, 2025-ललित गर्ग-विश्व पुस्तक दिवस जिसे विश्व पुस्तक कॉपीराइट दिवस भी कहा जाता है, पुस्तक-संस्कृति को बल देने और पढ़ने की प्रवृत्ति के आनंद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाने वाला एक विश्व उत्सव है। हर साल 23 अप्रैल को दुनिया भर में पुस्तकों के दायरे को पहचानने, उसे प्रोत्साहन देने […] Read more » Books are both Kalpavriksha and Kamadhenu विश्व पुस्तक दिवस-23 अप्रैल
लेख विधि-कानून जब जज ही कानून के घेरे में होंतो भरोसे की दीवारें हिलती हैं April 21, 2025 / April 21, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अशोक कुमार झा देश की न्याय व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बहुत गहरा होता है। जब सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब इंसान न्यायपालिका की ओर देखता है, एक अंतिम उम्मीद के साथ लेकिन जब उसी संस्था पर सवाल खड़े होने लगेंगे तो सोचिए, आम आदमी का भरोसा कहां जाकर टिकेगा? हाल ही में कुछ जजों के […] Read more » उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
लेख मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता है शाश्वत ! April 21, 2025 / April 21, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment हाल ही में जम्मू-कश्मीर में बादल फट जाने से बहुत तबाही मची।सच तो यह है कि प्रकृति समय-समय पर मानव को अपना प्रकोप दिखा रही है और कहीं न कहीं मानव को आगाह कर रही है कि अभी भी यदि हमने अपने पर्यावरण और प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में हमें […] Read more » The relationship between man and nature is eternal मनुष्य और प्रकृति
लेख मानव सभ्यता को बचाने के लिये पृथ्वी संरक्षण जरूरी April 21, 2025 / April 21, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व पृथ्वी दिवस -22 अप्रैल 2025-ललित गर्ग- प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन से निपटने और जैव विविधता संकट को रोकने के लिए कार्रवाई का एक क्रांतिकारी आह्वान है पृथ्वी दिवस जो पूरे विश्व में 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पृथ्वी या सृष्टि के संरक्षण और स्थिरता के लिए जागरूकता पैदा करना इसलिये आवश्यक […] Read more » पृथ्वी संरक्षण विश्व पृथ्वी दिवस -22 अप्रैल
लेख महाकाव्य और खयाली इतिहास अध्याय – 15 April 20, 2025 / April 22, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू (डिस्कवरी ऑफ इंडिया की डिस्कवरी) डॉ राकेश कुमार आर्य महाकाव्य रामायण और महाभारत के साथ-साथ पुराणों के बारे में लिखते हुए नेहरू जी ने अपना मत प्रकट किया है। वे लिखते हैं कि- “इनमें सच्ची घटनाएं और गढ़े हुए किस्से इस तरह एक दूसरे में मिल गए हैं कि दोनों […] Read more » इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू महाकाव्य और खयाली इतिहास